ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने भी आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को नसीहत देते हुए इस बात को दोहराया है कि यह कभी बर्दाश्त नहीं होगा कि वह भारत और अफगानिस्तान या दुनिया के किसी अन्य देश में आतंकवाद को बढ़ावा दे। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री की इस नसीहत में कितना दम है यह तो ब्रिटेन के अधिकारियों ने यह कहकर जाहिर कर दिया है कि प्रधानमंत्री कैमरन का मकसद पाकिस्तान पर आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाना नहीं है। ऐसे में सवाल उठता है कि पाकिस्तान आतंकवादी गतिविधियों का केंद्र साबित होने के बावजूद अमेरिका या फिर ब्रिटेन आतंकवाद के मामले पर पाकिस्तान के खिलाफ खुलकर क्यों नहीं बोलना चाहते। विशेषज्ञ मानते हैं कि जिस नीति से अमेरिका व ब्रिटेन जैसे देश आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ना चाहते हैं उसके लिए नसीहत या दबाव के बजाए खासकर पाकिस्तान के प्रति अपनी नीति बदलने की जरूरत है।
भारत के दौरे पर आए ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेंविड कैमरन का जैसे ही बंगलूरू से आतंकवाद पर पाकिस्तान को नसीहत देने वाला एक बयान आया तो पाकिस्तान ने भी तत्काल प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि पाकिस्तान आतंकवाद से लड़ने के लिए प्रतिबद्ध है। पाकिस्तान के विदेश वि•ााग के प्रवक्ता अब्दुल बासित का कैमरन के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहना था कि पाक मानता है कि इस तरह की रिपोर्टों को अनावश्यक तवज्जो नहीं दी जानी चाहिए और न ही इससे अन्य मुद्दों से ध्यान भटकाने की जरूरत है। हालांकि अब्दुल बासित ने कैमरन पर पलटवार करते हुए यह भी कहा कि पाकिस्तान की जमीन का इस्तेमाल किसी भी तरह की आतंकी गतिविधि को संचालित करने के लिए नहीं होने दिया जाएगा, इसलिए पाकिस्तान को बेवजह चिंता की जरूरत नहीं है। जैसे ही पाकिस्तान की पलटवार प्रतिक्रिया आई तो ब्रिटेन भी अपने बयान से पलटता नजर आया और कहा जाने लगा कि प्रधानमत्री कैमरन का संदेश था कि पाकिस्तान को आतंकवादी संगठनों के कामकाज के बंद करने के लिए और प्रयास करने की जरूरत है। यदि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कैमरन के बयान को देखें तो उन्होंने कहा कि वे चाहते हैं कि पाकिस्तान में मजबूत लोकतंत्र हो, लेकिन हम ऐसे किसी विचार का अनुमोदन नहीं कर सकते कि पाकिस्तान दोहरी नीति अपनाए, जिसमें भारत, अफग़ानिस्तान या दुनिया के किसी भी हिस्से में आतंकवाद को निर्यात करने की अनुमति दी जाए। उनका यह भी तर्क रहा कि जो लोकतांत्रिक सरकारें विकसित दुनिया का हिस्सा बनना चाहतीं हैं उनका आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले गुटों से कोई संबंध नहीं होना चाहिए। हालांकि उन्होंने यह भी साफ किया है भारत के पाकिस्तान और अफगानिस्तान से संबंधों का ब्रिटेन से कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन दोनों पड़ोसी देशों में स्थिरता और आतंकवाद से निजात पाने की भारत की ख़्वाहिश का ब्रिटेन समर्थन करता है। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसा नहीं है कि अमेरिका या ब्रिटेन आतंकवाद को खत्म करना नहीं चाहते, बल्कि ये दोनों देश अफगान में तालिबान के खिलाफ अपने संघर्ष में भारत और पाकिस्तान दोनों देशों को अपने साथ रखना चाहते हैं। यही कारण है कि ये पाकिस्तान पर आतंकवाद को खत्म करने या आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए उतना दबाव नहीं डाल पा रहे हैं जितना होना चाहिए। भारत-पाकिस्तान संबन्धों के जानकार कमर आगा का कहना है कि अमेरिका और ब्रिटेन पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए इसलिए भी हिचकिचा रहे हैं कि यदि पाकिस्तान पर ज्यादा जोर डाला गया तो वह चीन की गोद में जाकर बैठ सकता है। इसलिए इस बात की आवश्यकता है कि अमेरिका और ब्रिटेन तथा जो आतंकवाद के खिलाफ लड़ रहे यूरोपियन देश हैं उन्हें अपनी नीति में आमूलचूल परिवर्तन करने की जरूरत है। कमर आगा मानते हैं कि पिछले कुछ सालों से यूरोपियन देशों में इतना बदलाव तो आया कि वह अब पाक का नाम लेकर आतंकवाद के खिलाफ बोलने लगे हैँ अन्यथा उससे पहले ऐसा कभी नहीं देखा गया। मुंबई के 26/11 के आतंकी हमले के बाद भारत ने भी पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए विश्व समुदाय से आग्रह किया ताकि पाकिस्तान में बैठे लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठनों के खिलाफ पाकिस्तान ठोस कार्यवाही कर सके, लेकिन पाकिस्तान ऐसा कोई सबूत सामने नहीं ला सका, जिसके कारण यह कहा जा सके कि पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए गंभीर है। पाक मामलों के विशेष प्रो. कलीम बहादुर का कहना है कि यह दुनिया जानती है कि अमेरिका या ब्रिटेन जिस नीति से आंतकवाद या तालिबान के खिलाफ लड़ना चाहते हैं वह कभी सफल नहीं हो सकेंगे, क्योंकि लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकवादी संगठन और अलकायदा या तालिबान अपना गहरा गठजोड़ कर चुके हैं। उनका यह भी मानना है कि ऐसे में जब इन आतंकी संगठनों को पाक आर्मी के अफसरों और खुफिया एजेंसी आईएसआई का भरपूर सहयोग मिलने का खुलासा दिन-प्रतिदिन होता जा रहा हो तो अमेरिका और ब्रिटेन को पाकिस्तान पर हवाई दबाव बनाने के बजाए ठोस कार्ययोजना और नीति के साथ आगे आने की जरूरत है।
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