शुक्रवार, 23 जुलाई 2010

आतंकवाद:अमेरिका बदले अपनी नीतियां

ओ.पी. पाल
भारत में 26/11 आतंकी हमले को लेकर भले ही अमेरिका पाकिस्तान पर दबाव बनाने की बात करता हो, लेकिन पाकिस्तान या अफगानिस्तान के मामले में जिस प्रकार की अमेरिकी नीतियां बनाई जा रही हैं, वह आतंकवाद से निपटने में नाकाफी हैं और नही मौजूदा नीतियों से अमेरिका तालिबान को समाप्त कर पाएगा? दरअसल पाकिस्तान को अपने साथ रखना इसलिए भी अमेरिका की मजबूरी है कि उसे इस बात का डर है कि कहीं पाकिस्तान पूरी तरह चीन की गोद में न चला जाए। यही कारण है कि अमेरिका यह सब जानते हुए भी कि पाकिस्तान आतंकवाद और तालिबानी संगठन अलकायदा जैसे कट्टरपंथी संगठनों का समर्थन और उनके लिए मददगार है, फिर भी अफगान में जारी अपने संघर्ष को दृष्टिगत रखते हुए पाकिस्तान को आर्थिक और हथियारों जैसी सहायता को लगातार बढ़ा रहा है।
भारत-पाक मामलों के विशेषज्ञ कमर आगा का कहना है कि अमेरिका की नीति रही है कि भारत और पाकिस्तान को चीन से दूर रखने के लिए वह दोनों पडोसी दशों से संबन्ध बनाए हुए है। भारत से ज्यादा अमेरिका पाकिस्तान पर निर्भर है, क्योंकि अफगानिस्तान जहां वह तालिबान के खिलाफ संघर्ष कर रहा है उसके अन्य पडोसी देशों इरान, इराक ताकिस्तान जैसे मुल्कों से संबन्ध नहीं है। अमेरिका समय-समय पर यह भी आरोप लगाता रहा है कि ओसामा बिन लादेन और अफगानी तालिबान के नेता मुल्ला उमर पाकिस्तान में ही शरण लिए हुए है। यहां तक अमेरिका यह भी कह चुका है कि पाकिस्तान ही आतंकवादी बाजार का केंद्र है। यह सब कुछ जानते हुए भी अमेरिका की पाक नीति लगतार सुदृढ़ हो रही है और पाकिस्तान पर इस दबाव का कोई प्रभाव होने वाला नहीं है। जहां तक मुंबई आतंकी हमले के आतंकवादियों का सवाल है उसके लिए भारत के कहने पर ही अमेरिका आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए पाकिस्तान पर दबाव बनाता है, लेकिन अमेरिका के पाक पर इस दबाव में दम नजर नहीं आता। हाल ही में जैसा कि अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता पीजे क्राउली ने मुंबई हमले के आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करना समूचे क्षेत्र और खुद पाकिस्तान की सुरक्षा के लिए यह बेहद जरूरी बताया है, लेकिन आतंकवाद के मुद्दे खासकर मुंबई आतंकवादी हमले की जांच और दोषियों को कठघरे में खड़ा करने में पाकिस्तान कोई ठोस कार्रवाई करेगा ऐसा इसलिए भी नहीं लगता क्योकि भारत इस आतंकी हमले से जुड़े तमाम सबूत पाक को सौँप चुका है, लेकिन अभी तक पाकिस्तान की ओर से ऐसा कोई संकेत नहीं आया कि वह आतंकवाद के मामले में गंभीर है। यह पहला मौका नहीं है कि अमेरिका ने पाकिस्तान पर मुंबई हमले को लेकर दबाव बनाया हो, इससे पहले भी अमेरिका पाकिस्तान को आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए कह चुका है। आगा मानते हैं कि भारत और पाकिस्तान के संबन्ध पहले से ही कडवाहट से भरे हैं और लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी हेडली ने मुंबई आतंकी हमले पर जिस प्रकार आतंकी संगठनों और पाकिस्तान प्रशासन के गठजोड़ का खुलासा किया है उससे भी पाकिस्तान आतंकवाद पर चौतरफा घिरा है। यदि पाकिस्तान आतंकवाद के प्रति गंभीर होता तो वह मुंबई हमलों की साजिश में शामिल रहे हाफिज सईद और जकीउर्रहमान व अबू हमजा जैसे आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाए उन्हें बचाने का प्रयास न करता। यदि अफगानिस्तान मे तालिबान या आतंकवाद के खिलाफ अमेरिका बेहद गंभीर है तो उसे अपनी नीतियों खासकर पाकिस्तान के लिए अपनाई जा रही नीतियों में परिवर्तन करना होगा। अमेरिका को अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करके अफगानिस्तान से लगे ईरान व इराक जैसे मुल्कों से भी सम्बन्ध बनाने की जरूरत है। बिना पडोसियों को विश्वास में लिए अमेरिका न तो अफगानिस्तान और नहीं पाकिस्तान में छिपे तालिबानियों के खिलाफ जारी संघर्ष को सफल बना पाएगा? अमेरिका की एक खास नीति यह भी रही है जब वह भारत के साथ बात करता है तो पाकिस्तान के खिलाफ बोलता है और फिर पाकिस्तान जाकर अमेरिका पाकिस्तान के ही गुण गाता नजर आता है। शायद यही कारण है कि पाकिस्तान एक तो भारत के प्रति हमेशा आक्रमक नजर आता है और फिर वह जो भी करता है उसमें अमेरिका का दबाव का असर कहीं दूर तक भी नजर नहीं आता। कमर आगा का कहना है कि अमेरिका यह कहने में भी कभी पीछे नहीं रहा कि आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष में पाकिस्तान की मदद करना अमेरिका की नीति का अंग है। इसी बहाने अमेरिका, पाकिस्तान को हर तरह की मदद देकर उसे चीन से दूर रखने का प्रयास कर रहा है, लेकिन इसके विपरीत जिस प्रकार से पाकिस्तान की चीन से नजदीकी बढ़ती जा रही है वह जगजाहिर है। मसलन कि अमेरिका भी जानता है कि आतंकवाद से लड़ना आसान नहीं है और अमेरिका ने यदि अफगानिस्तान में तालिबान के संघर्ष की बागडौर पाकिस्तान को सौंपने का प्रयास किया तो वह अमेरिका के लिए ही नहीं बल्कि दुनियाभर के लिए एक बड़ी गलती होगी। यह इसलिए कहना पड़ रहा है कि अमेरिका इस प्रकार की नीति बना रहा है। इसलिए जरूरी है कि अमेरिका अपने निजी स्वार्थ को त्यागकर नीतियों को संजीदा तरीके से बदलने पर विचार करे और आतंकवाद के मुद्दे पर गंभीर होते हुए पाकिस्तान पर शिकंजा कसे तो इस समस्या का समाधान विश्व समुदाय के सहयोग से निकला जा सकता है।

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