ओ.पी. पाल
संसद की सुरक्षा को चाक चौबंद करने के लिए बॉडी स्कैनर स्थापित करने वाली उस महत्वाकांक्षी परियोजना को स्वयं सांसदों के विरोध के सामने फिलहाल रोकना पड़ रहा है, जिसके लिए केंद्र सरकार ने देश की आंतरिक सुरक्षा की व्यापक कार्ययोजना में देश की सर्वोच्च पंचायत संसद की सुरक्षा के मुददेनजर हर प्रवेश करने वाले व्यक्ति के पूरे शरीर की जांच के लिए बॉडी स्कैनर और वाहन स्कैनर लगाने की कवायद तेजी के साथ की थी। ऐसे में संसद ही इस सुरक्षा प्रणाली को पलीता लगाने का काम कर रहे हैं!
संसद में 2001 के आतंकी हमले के बाद की गई सुरक्षा व्यवस्था को और भी अधिक चाक चौबंद बनाने की दिशा में केंद्र सरकार ने सरकारी स्वामित्व वाली भारत इलेक्ट्रानिक्स लिमिटेड से बॉडी स्कैनर का शीघ्र से शीघ्र प्रदर्शन करने को कहा था। लोकसभा सचिवालय ने हालांकि इस सुरक्षा प्रणाली को बजट सत्र से ही शुरू करने का प्रयास किया था, लेकिन उसके बाद लोकसभा उपाध्यक्ष करिया मुंडा की अध्यक्षता वाली संसद परिसर सुरक्षा समिति ने इससे पहले समिति ने सांसदों के एक प्रतिनिधिमंडल को इन उपकरणों की व्यवहायर्ता का अध्ययन करने के लिए विभिन्न देशों में भी भेजने का सुझाव दिया था जिसे बाद में टाल दिया गया, लेकिन इसके बावजूद बॉडी स्कैनर की जानकारी होने के बाद स्वयं सांसद अपनी निजता की सुरक्षा के नाम पर बॉडी स्कैनर लगाए जाने का विरोध कर रहे हैं। यही कारण है कि संसद में बॉडी स्कैनर लगाने के लिए जितनी तेजी से प्रक्रिया शुरू की जा रही थी उसे सांसदों के विरोध को देखते हुए फिलहाल एक झटके में टालने पर विवश होना पड रहा है। अब सरकार ने इस सुरक्षा प्रणाली से सांसदों और वरिष्ठ नौकरशाहों को छूट देने का निर्णय लिया है। दरअसल बॉडी स्कैनर सुरक्षा प्रणाली के तहत प्रवेश करने वाले हरेक व्यक्ति को एक सात मीटर के एक बॉक्स से गुजरना पड़ता है, जिससे उसके पूरे शरीर का ऐक्सरा मॉनीटर पर आ जाता है, जिसे सांसद निजता के लिए अच्छा नहीं मानते। हालांकि संसद भवन पर 2001 में हुए आतंकी हमले के बाद समूचे परिसर में सुरक्षा व्यवस्था लगातार कड़ी से कड़ी होती जा रही है। ऐसी स्थिति में फिलहाल संसद और सांसदों की सुरक्षा को पुख्ता करने वाली जांच प्रक्रिया में बॉडी स्कैनर लगाए जाने की महत्वाकांक्षी परियोजना को खुद सांसदों के विरोध के सामने पलीता लगाया जा रहा है, लेकिन माना जा रहा है कि सरकार संसद की सुरक्षा व्यवस्था को चाक चौबंद करने के लिए सांसदों और वरिष्ठ नौकरशाहों के अलावा संसद परिसर में प्रवेश करने वाले अन्य लोगों की जांच के लिए इस महत्वकांक्षी योजना को आगे बढ़ाएगी? यदि लोकसभा सचिवालय के सूत्रों की माने तो वह चाहता है कि सांसद खासतौर पर संसद सत्र चालू होने के दौरान खुद को बॉडी स्कैनरों की जांच के दायरे में आकर एक आदर्श मिसाल कायम करें। सुरक्षा समिति से जुड़े एक अधिकारी का कहना है कि सांसदों के विरोध के कारण ही समिति की पिछले दिनों हुई बैठक में बॉडी स्कैनर लगाए जाने के संबंध में कोई फैसला नहीं हो सका, लेकिन व्हीकल स्कैनर लगाए जाने की दिशा में कुछ प्रगति हुई है। यह भी संभव है कि शुरुआत में बॉडी स्कैनर उन प्रवेश द्वारों पर ही लगाए जाएं, जहां से आम नागरिकों का प्रवेश संसद परिसर में होता है। संसद की त्रिस्तरीय सुरक्षा के महत्वपूर्ण अंग वाच एंड वार्ड के अधिकारी मानते हैं कि संसद में रोजाना और विशेषकर सत्र के चालू रहने पर लाखों फाइलें और टनों दस्तावेज परिसर में आते हैं, जिनकी मैनुअल जांच करना आसान नहीं है, इसलिए संसद में व्हीकल स्कैनर लगाए जाने की जरूरत पिछले काफी समय से महसूस की जा रही थी। यदि बात की जाए कि बॉडी स्कैनर सुरक्षा प्रणाली क्या है तो फुल बॉडी स्कैनर कहलाने वाली इन मशीनों को वैज्ञानिकों ने तकनीकी दृष्टि से दो वर्गों में बांटकर देखा है, जिसमें एक वे जो एक्स-रे किरणें पैदा करती हैं और दूसरी वे जो टेराहेटर्स फ्रीक्वेंसी वाली माइक्रोवेव तरंगों का उपयोग करती हैं। एक्स-रे किरणों वाले बॉडी स्कैनरों को 9/11 हमले के बाद सबसे अधिक अमेरिका में आजमाया जा रहा है, लेकिन उन में और मेडिकल एक्स-रे मशीनों में एक बड़ा अंतर है। जर्मनी की फ्र्राउनहोफर सोसायटी के हाई फ्रीक्वेंसी और राडार तकनीक संस्थान के हेलमुट एसन मानते हैं कि ये एक्स रे मशीनें बहुत ही कम विकिरण के साथ काम करती हैं। यह हानिकारक तो बिल्कुल नहीं हैं और उनकी विकिरण मात्रा उससे भी कम होती है, जो एक सामान्य टेलीविजन सेट का पिक्चर ट्यूब एक घंटे में पैदा करता है। लेकिन यह सत्य है कि जांच के दौरान इनसे ऐसी तस्वीरें बनती हैं, जो लोगों को निर्वस्त्र या नंगा दिखाती हैं। यही कारण है कि इसका खासकर इस्लामिक देशों ने महिलाओं की जांच की दृष्टि से विरोध किया है।बॉडी स्कैनर कितने अचूक?
ऐसे में सवाल है कि बॉडी स्कैनर क्या हर तरह के हथियार और बम अचूक ढंग से पहचान और दिखा सकते हैं? तो वैज्ञानिक मानते हैं कि आजकल के आतंकवादी तरल विस्फोटकों की इतनी कम मात्रा लेकर चलते हैं कि उसे कंडोम या इंजेक्शन के सीरिंज तक में छिपाया जा सकता है, जैसाकि पिछले दिनों संदिग्ध नाइजीरियाई आतंकवादी अब्दुलमुतल्लब ने दुनिया को एक अजीब धर्मसंकट में डाल दिया था। इसमें जांच की प्रक्रिया कुछ ऐसी है कि जो कुछ भी प्लास्टिक जैसा है, उसे पकड़ पाना बहुत मुश्किल है। जिन स्कैनरों की बात चल रही है, वे इसे आधार मान कर बने हैं कि हमरी त्वचा, हमारे शरीर और किसी दूसरी वस्तु के विद्युतचुंबकीय गुणों के बीच काफी अंतर है। यह दूसरी वस्तु जितनी ही ठोस होगी, उतनी ही आसानी से पकड़ में आयेगी। झीने प्लास्टिक ओर प्लास्टिक के विस्फोटकों के मामले में बात का बनना मुश्किल है। यदि इस सुरक्षा प्रणाली का प्रयोग करके सरकारें ऐसा ढोल पीट रही हैं कि मानों उन्हें आतंकवाद से लड़ने के लिए कोई रामबाण दवा मिल गई है उसे भ्रम ही माना जाना चाहिए।
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