शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

भारतीय मुद्रा की दुनिया में होगी अलग पहचान!


ओ.पी. पाल   देश ने अब भारतीय मुद्रा को अंतर्राष्ट्रीय पहचान देने के लिए एक प्रतीक चिन्ह यानि सिंबल को मंजूरी दी है, जिसके बाद भारत ऐसा पांचवा देश बन जाएगा जिसकी मुद्रा की अपनी अलग पहचान होगी। अभी तक अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अमरीकी डालर, जापानी येन, ब्रिटिश पौंड और यूरोपिय संघ के यूरो जैसे मुद्रा के प्रतीक चिन्ह हैँ। भारत सरकार का दावा है कि जिस प्रतीक चिन्ह को केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी मिली है उसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी निश्चित रूप से स्वीकारा जाएगा और यह प्रतीक चिन्ह भारत को वैश्विक निवेश के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था को भी बुलंदियों पर पहुंचाने में सहायक सिद्ध हो सकेगा। भा रतीय रुपये को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक अलग पहचान देने के लिए भारत सरकार पिछले काफी दिनों से कवायद करती रही है जिसके लिए भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर की अध्यक्षता में रुपये के प्रतीक चिन्ह के चयन हेतु एक पांच सदस्यीय निर्णायक मंडल बनाया था। इसके लिए तीन हजार प्रविष्टियां मिलने के बाद निर्णायक मंडल ने पांच प्रतीक चिन्हों को केंद्रीय मंत्रिमंडल को सौंपा, जिनमें से एक ऐसे प्रतीक चिन्ह को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आज अपनी मंजूरी प्रदान कर दी, जिसे आईआईटी के पोस्ट ग्रेजुएट डी. उदय कुमार द्वारा डिजाइन किया गया था। इस प्रतीक चिन्ह में देवनागरी में ‘र’ तथा अंग्रेजी में ‘आर’ का मिश्रण है। इस प्रकार से भारतीय रुपये को इस प्रतीक चिन्ह के जरिए उसी प्रकार से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल सकेगी जिस प्रकार अमेरिकी डालर, जापानी येन, ब्रिटिश पौंड और यूरोपीय संघ के यूरो को पहचाना जाता है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में इस महत्वपूर्ण फैसले के बाद केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री श्रीमती अंबिका सोनी ने भारतीय मुद्रा के मंजूर किये गये प्रतीक चिन्ह का प्रदर्शन करते हुए दावा किया है कि इस चिह्न को यूनीकोड मानक, आईएसओ-आइसी 10646 और आईएस 13194 में शामिल करने के बाद इसका इस्तेमाल भारत और देश के बाहर विदेशों में किया जा सकेगा। उनका मानना है कि चूंकि •ाारत के अलावा नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका और इंडोनेशिया जैसे देशों में भी रुपये का प्रचलन है इसलिए भारतीय मुद्रा की इस प्रतीक चिन्ह के साथ रुपये के रूप में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक अलग पहचान बन सकेगी। अंबिका सोनी का कहना है कि केंद्र सरकार ने भारतीय रुपए के चरित्र को बरकरार रखने के लिए इसे अंतर्राष्ट्रीय पहचान दी है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था की तेजी एवं मजबूती को भी रेखांकित करेगा। वहीं भारतीय अर्थव्यवस्था के नई ऊंचाइयों पर पहुंचने और विश्व अर्थव्यवस्था के साथ एकीकृत होने तथा भारत के वैश्विक निवेश को भी तरजीह देगा। जहां तक भारतीय रुपये के प्रतीक चिन्ह को लागू करने का सवाल है उसके बारे में श्रीमती सोनी ने बताया कि सरकार का प्रयास है कि देश के सभी राज्यों की सरकारों से इस प्रतीक चिन्ह को लागू करने के लिए सहमति और सुझाव लेने का भी लक्ष्य है, जिसके बाद छह माह के अंदर भारत में इसे लागू कर दिया जाएगा। इसके लिए भारतीय मुद्रा के प्रतीक चिन्ह की एनकोडिंग के बाद नासकाम रुपये को साफ्टवेयर में शामिल करने हेतु भारतीय साफ्टवेयर विकास कंपनियों से संपर्क साधेगा ताकि दुनियाभर में कंप्यूटर इस्तेमाल करने वाले लोग इसका आसानी से उपयोग कर सकें। भारत में बनने वाले कीबोर्ड में इस चिन्ह को शामिल करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी निर्माता एसोसिएशन (मेट) चिन्ह की अधिसूचना जारी होने के बाद इसे कीबोर्ड में शामिल करने की पहल करेगा। अंबिका का मानना है कि रुपये के इस निशान को भारतीय मानकों में एन्कोड करने की प्रक्रिया में छह महीने लगेगा जबकि यूनीकोड और अन्य मानकों में ऐसा करने के लिए डेढ़ से दो साल लग सकते हैँ। सबसे बड़ी उपलब्धि है कि यह चिन्ह भारतीय रुपये को विभिन्न भाषाओं में एक ही तरह से पेश करने में सहायक होगा। इस प्रतीक चिन्ह को लागू करने के लिए सरकार भारतीय मानक ब्यूरो की मौजूदा सूची में संशोधन भी करेगी। इंडियन स्क्रिप्ट कोड फार इंफारमेशन इंटरचेंज (आईएससीआईआई) के तहत रुपये का चिह्न शामिल होगा। अभी तक अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अमेरिकी डॉलर $, ब्रिटिश पाउंड £, यूरोप की मुद्रा यूरो € और जापानी मुद्रा येन ¥ की ही अलग पहचान थी, जिसके बाद भारतीय मुद्रा की भी एक अलग पहचान होगी।
भारत में कैसे बदलता रहा रुपये का रंग-रूप
रुपया शब्द का उद्गम संस्कृत के शब्द रुप् या रुप्याह् में निहित है, जिसका अर्थ चांदी होता है और रुपये का अर्थ चादी का सिक्का है। रुपया शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम शेर शाह सूरी ने भारत मे अपने शासन [1540-1545] के दौरान किया था। शेर शाह सूरी ने अपने शासन काल मे जो रुपया चलाया वह एक चांदी का सिक्का था जिसका वजन 178 ग्रेन [11.534 ग्राम] के लगभग था। उसने तांबे का सिक्का जिसे दाम तथा सोने का सिक्का जिसे मोहर कहा जाता था को भी चलाया। कालांतर में मुगल शासन के दौरान पूरे उपमहाद्वीप में मौद्रिक प्रणाली को सुदृढ़ करने के लिए तीनों धातुओं के सिक्कों का मानकीकरण किया गया। शेर शाह सूरी के शासनकाल के दौरान शुरू किया गया 'रुपया' आज तक प्रचलन में है। भारत में ब्रिटिश राज के दौरान भी यह प्रचलन में रहा, इस दौरान इसका वजन 11.66 ग्राम था और इसके भार का 91,7 प्रतिशत तक शुद्ध चादी थी। 19वीं शताब्दी के अंत में रुपया प्रथागत ब्रिटिश मुद्रा विनिमय दर, के अनुसार एक शिलिंग और चार पेंस के बराबर था वहीं यह एक पाउंड स्टर्लिग का 1/15 हिस्सा था। 19वीं सदी मे जब दुनिया में सबसे सशक्त अर्थव्यवस्थाएं स्वर्ण मानक पर आधारित थीं तब चादी से बने रुपये के मूल्य में भीषण गिरावट आई। संयुक्त राज्य अमेरिका और विभिन्न यूरोपीय उपनिवेशों में विशाल मात्रा में चादी के स्त्रोत मिलने के परिणामस्वरूप चादी का मूल्य सोने के अपेक्षा काफी गिर गया। अचानक भारत की मानक मुद्रा से अब बाहर की दुनिया से ज्यादा खरीद नहीं की जा सकती थी। इस घटना को 'रुपये की गिरावट के रूप में जाना जाता है। पहले रुपया [11.66 ग्राम] को 16 आने या 64 पैसे या 192 पाई में बाटा जाता था। रुपये का दशमलवीकरण 1869 में सीलोन [श्रीलंका] में, 1957 में भारत मे और 1961 में पाकिस्तान में हुआ। इस प्रकार अब एक भारतीय रुपया 100 पैसे में विभाजित हो गया। भारत में कभी-कभी पैसे के लिए नया पैसा शब्द भी इस्तेमाल किया जाता था। भारत मे भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा मुद्रा जारी की जाती है, जबकि पाकिस्तान में यह स्टेट बैंक आफ पाकिस्तान के द्वारा नियंत्रित होता है। वे देश जहां रुपया राष्ट्रीय मुद्रा है- असम, त्रिपुरा, और पश्चिम बंगाल में बोली जाने वाली असमिया और बाग्ला भाषाओं में, रुपये को टका के रूप में जाना जाता है और भारतीय बैंक नोटों पर भी इसी रूप में लिखा जाता है। भारत और पाकिस्तान की मुद्रा 1, 2, 5, 10, 20, 50, 100, 500 और 1000 रुपये के मूल्यवर्ग में जारी की जाती है, वहीं पाकिस्तान मे 5000 रुपये का नोट भी जारी किया जाता है। रुपये की बड़ी मूल्यवर्ग अक्सर लाख [100000] करोड़ [10000000] और अरब [1000000000] रुपये में गिने जाते हैं। गौरतलब है कि अब अमेरिकी डालर, जापानी येन, ब्रिटिश पौंड और यूरोपीय संघ के यूरो की तरह अब भारतीय रुपये का भी अपना प्रतीक चिह्न होगा। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में गुरुवार को हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में यह महत्वपूर्ण फैसला करते हुए रुपये के चिह्न को मंजूरी दी गई।

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