शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

संयम बरतना सीखे भारत-पाक

ओ.पी. पाल
भारत और पाकिस्तान पडोसी देशहोने के नाते एक-दूसरे से संबन्धों को सुधारने की बात तो करते हैं लेकिन अभी तक की बातचीत के दौरान देखा जा रहा है दोनों देश एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश अधिक करते नजर आ रहे हैं। हालांकि पडोसी होने के कारण अनसुलझे मुद्दों पर दोनों में नोंक-झोंक होना स्वाभाविक है। इस्लामाबाद में भारत के विदेशमंत्री एसएम कृष्णा और पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी के बीच सभी मुद्दों पर बातचीत हुई जिन्हें दोनों देश मिलकर हल करना भी चाहते हैं, लेकिन समझदारी और संयम बरतने को कोई सा भी देश तैयार नहीं है। दोनों देशो के बीच जिस प्रकार विभिन्न मुद्दों को लेकर एक-दूसरे ने आरोप-प्रत्यारोप लगाते हुए सवाल खड़े किये हैं उससे कोई समाधान निकलने वाला नहीं है। विदेश मामलों के विशेषज्ञ प्रशांत दीक्षित का मानना है कि इस बदलते नजरिए को देखते हुए दोनों ही देशों को संयम बरतने की जरूरत है। इस्लामाबाद में कल संयुक्त प्रेस वार्ता में सबकुछ ठीक चल रही थी, लेकिन पाक विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने पाकिस्तानी पत्रकारों को यह दिखाने के लिए कि पाक अपने लोगों के साथ है मुंबई हमले में आईएसआई का हाथ होने के आरोप की निंदा की। इसी से साफ नजर आने लगा कि वह भारत को नीचा दिखाना चाहते हैं। भारत ने जहां 26 नंवबर को मुंबई में हुए हमलों की जांच में पाकिस्तान की ओर से कोई खास प्रगति नहीं होने और कश्मीर में सीमा पार से घुसपैठ का मुद्दा उठाया, तो वहीं पाकिस्तान ने कश्मीर में मानवाधिकार के कथित हनन और बलूचिस्तान में भारत की तथाकथित भूमिका पर सवाल खड़े किए। 26/11 के मुंबई हमले के बाद दोनों देशों का ऐसा नजरिया बदला है कि कोई भी एक-दूसरे की शक्ल देखना पसंद नहीं करता। यही कारण है जब पाकिस्तान बातचीत के लिए भारत आता है तो यह सोचकर आता है कि उसे दूसरे को नीचा कैसे दिखाना है। इसी प्रकार भारत का भी नजरिया कुछ ऐसा ही बनता जा रहा है। विदेश मंत्री एसएम कृष्णा को हेडली की बात पर हफीज सईद का नाम जोड़ना पाकिस्तान को पसंद नहीं आया और पाकिस्तान हेडली के उस बयान को भी निंदनीय बता रहा है कि इस हमले में आईएसआई का हाथ है। प्रशांत दीक्षित ऐसे में सवाल उठातें हैं कि दोनों देश एक-दूसरे के नजदीक कैसे आएंगे। सीमापार की घुसपैठ हो या आतंकवाद के आरोपियों को सजा देने का मामला हो तो पाकिस्तानी विदेश मंत्री कुरैशी के जवाब तल्खी भरे ही नजर आए। ऐसे ही कुरैशी द्वारा कश्मीर में हालिया घटनाओं मानवाधिकार हनन का मुद्दा उठाए जाने पर भारतीय विदेश मंत्री एसएम कृष्णा भी उसी लहजे में जवाब देने से नहीं चूके। इससे तो लगता है कि बातचीत के दौरान भी तल्खी है जिसका मतलब अभी दोनों देशों को एक-दूसरे के प्रति विश्वास कायम करने में समय लगेगा। हालांकि दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच आतंकवाद, आत्मविश्वास बढ़ाने वाले मापदंडों, जम्मू-कश्मीर, सियाचिन, सर क्रीक विवाद और आर्थिक विकास समेत सभी महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा हुई है, लेकिन जब तक दोनों देश एक पडोसी की तरह आपसी व्यवहार और विश्वास की भावना से दूर रहेंगे और तल्खी भरे सवाल होते रहेंगे तो इन वार्ताओं का मकसद कैसे पूरा होगा? इस बेनतीजा वार्ता से तो यही लगता है कि भारत और पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों के बीच लंबे समय के बाद हुई पहली बातचीत में शांति प्रक्रिया की फिर से शुरुआत हो सके ऐसी कोई ताजा नई स्थिति सामने नहीं आई है, लेकिन बातचीत जारी रखने पर सहमति अवश्यक बनी है। मेरा अपना दृष्टिकोण है कि दोनो देशों की मीडिया को भी भारत-पाक संबन्धों को लेकर हो रही पहल में सकारात्मक भूमिका निभाने की जरूरत है, जिसका अभी तक अभाव देखा जा रहा है। दरअसल भारत और पाकिस्तान में अभी तक उस विश्वास की खाई को नहीं पाटा जा सका है जिसमें महत्वपूर्ण मुद्दों की उपेक्षा करने का आरोप एक-दूसरे देश पर लगता रहा है। विशेषज्ञों की माने तो यह भी नहीं है कि एक-दूसरे देश आपसी चिंताओं को नहीं समझते, लेकिन यदि दोनों देश समग्र और समझदारी सोच के साथ इस विश्वास को बहाल कर लें तो एक-दूसरे देश की समस्याओं का हल निकल सकता है अन्यथा ये वार्ताएं सवालों के बीच ही उलझ कर रह जाएंगी। मेरा दृष्टिकोण है कि इस समग्र सोच और संयम की पहल यदि पहले भारत ही करे तो शायद पाकिस्तान को भी कुछ समझदारी बरतने की सीख मिल सके।

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