भारत और पाकिस्तान के बीच आपसी विश्वास की बहाली कायम करने के मकसद से दोनों देशों के बीच विदेश मंत्री स्तरीय वार्ता के लिए भारतीय विदेश मंत्री आज पाकिस्तान जा रहें हैं। जिस प्रकार पाकिस्तान जाने से पहले भारतीय शिष्टमंडल का नेतृत्व करने वाले विदेशमंत्री एसएम कृष्णा ने विपक्ष को विश्वास में लेने की पहल की है उससे लगता है कि भारत और पाकिस्तान किसी बड़े उद्देश्य को लेकर कदम बढ़ाने के प्रयास में हैं। ऐसा विशेषज्ञ भी मानते हैं कि दोनों देशों के बीच महत्वपूर्ण मुद्दों पर बातचीत के उस कमद को मनमोहन सरकार आगे बढ़ाना चाहती है जिसकी शुरूआत अटल बिहारी सरकार ने की थी।
मुंबई में 26/11 आतंकी हमले के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच शांति वार्ता को स्थगित कर दिये जाने के बाद लगने लगा था कि अब दोनों देशों के बीच कभी संबन्धों में सुधार की गुंजाइश नहीं रहेगी, लेकिन पडौसी होने के नाते भारत ने आतंकवाद पर सख्त रवैया अपनाते हुए पाकिस्तान के साथ बातचीत शुरू करने की पहल की। हालांकि मुंबई आतंकी हमले के बाद दोनों देशों की बीच आई तल्खी को दूर करने के प्रयास में पहली बार 25 फरवरी 2010 को नई दिल्ली में सचिव स्तरीय वार्ता हुई, जो बेनतीजा रही, लेकिन भूटान के थिम्पू शिखर सम्मेलन में दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने एक-दूसरे देश के प्रति पनपी अविश्वास की खाई को दूर करने और संबन्धों को सुधार करने की पहल की। इसी पहल पर फरवरी में इस्लामाबाद में सचिव स्तरीय और फिर दो दिन बाद गृह मंत्री स्तर पर वार्ता हुई, जिसे कहीं हद तक विश्वास बहाली का संकेत माना जा रहा है। उसी संकेत का नतीजा है कि 15 जुलाई को इस्लामाबाद में ही विदेश मंत्री स्तरीय वार्ता में महत्वपूर्ण मुद्दों पर बातचीत होने की संभावना है। शायद यही कारण है कि बातचीत के लिए पाकिस्तान के तीन दिवसीय दौरे पर जाने से पहले यूपीए सरकार विपक्ष को विश्वास में लेकर आगे बढ़ना चाहती है, जिसके लिए विदेश मंत्री एस.एम. कृष्णा ने लोकसभा में विपक्ष की नेता श्रीमती सुषमा स्वराज और राज्यसभा में विपक्षी नेता अरुण जेटली से मुलाकात करके बातचीत के मुद्दों पर चर्चा की है। हालांकि कृष्णा ने प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह और यूपीए अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी से भी मुलाकात करके बातचीत के लिए की गई तैयारियों की जानकारी दी। पाकिस्तान से बातचीत से पहले विपक्ष को विश्वास में लेने की नीति के पीछे यूपीए सरकार की क्या कूटनीति हो सकती है इसके बारे में विदेश मामलों के विशेषज्ञ प्रशान्त दीक्षित मानते हैं कि ऐसा लगता है कि भारत इस बार पाकिस्तान से किसी महत्वपूर्ण और बड़े उद्देश्य को लेकर बातचीत करने के मूड़ में है। उनका मानना है कि पाकिस्तान से रिश्तों को लेकर जो शुरूआत राजग सरकार के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने की थी और फिर मुंबई में सबसे बड़े आतंकी हमले के बावजूद यूपीए सरकार में प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने उसे दिशा देने का प्रयास किया है उससे लगता है कि भारत किसी बड़े उद्देश्य के साथ पाकिस्तान जा रहा है। हालांकि भारत का सबसे पहला और प्रमुख मुद्दा आतंकवाद ही होगा, लेकिन यदि दोनों देशों को आपसी विश्वास को कायम करना है तो वर्षो से लंबित मुद्दों पर भारत निश्चित रूप से बातचीत को आगे बढ़ाने पर सहमति बनाई जा सकती है। भारत व पाकिस्तान मामलों के जानकार विशेषज्ञ कमर आगा मानते हैं कि विदेश नीति में खासकर पाकिस्तान को लेकर गंभीर मुद्दों पर भारतीय राजनीतिक दलों में ज्यादा विभाजन नहीं है। इसलिए दोनों देशों की वार्ता को आगे बढ़ाने का फार्मेट तो अटल बिहारी वाजपेयी का ही है यूपीए सरकार तो केवल इस बदलते हालात में उसे दिशा देने का काम कर रही है। इसलिए संसद में पाकिस्तान के मुद्दे पर आपसी सहमति लेना सरकार की नीतियों का हिस्सा है। आगा कहते हैं कि यह सरकार और विपक्ष ही नहीं बल्कि पूरा देश चाहता है कि पाकिस्तान की धरती से भारत के खिलाफ आतंकवाद का खात्मा हो, इसलिए यह मुद्दा तो मौजूदा परिपेक्ष्य में भारत के लिए अहम होना ही चाहिए। इससे दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली के साथ बेहतर सम्बन्ध कायम होना भारत-पाकिस्तान दोनों के हित में होगा।
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