शुक्रवार, 2 जुलाई 2010

घाटी में हिंसा के पीछे लश्कर-ए-तैयबा?

ओ.पी. पाल
भारत और पाकिस्तान के बीच आगामी 15 जुलाई को इस्लामाबाद में होने वाली विदेश मंत्रियों की बातचीत से पहले और अमरनाथ यात्रा के दौरान कश्मीर घाटी में अलगावादी संगठनों की हिंसा के पीछे पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा की सोची-समझी करतूत सामने आ रही है? जैसा कि खुफिया तंत्र के जरिए गृह मंत्रालय ने खुलासा किया है कि अमरनाथ यात्रा के दौरान आतंकवादी हमला कर सकते हैं। विदेश मामलों के विशेषज्ञ मानते हैं कि पाकिस्तान की आर्मी और आतंकवादी संगठन नहीं चाहते कि भारत-पाक के बेहतर सम्बन्ध कायम हो, इसी नीयत से आगामी बातचीत से पहले तनाव का माहौल तैयार करने की नीयत से कश्मीर घाटी में हिंसा का लाभ आतंकवादी उठा सकते हैं। लिहाजा केंद्र और राज्य सरकार को सुरक्षा के ठोस कदम उठाते हुए इस चुनौती का मुंह तोड़ जवाब देकर आतंकवादियों के मंसूबो को नाकाम करना होगा।जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी संगठनों की हिंसा में युवाओं की नई फौज को आगे करने के नये तरीके और किसी के नहीं, बल्कि पाकिस्तान के आतंकी संगठन खासकर लश्कर-ए-तैयबा की देन मानी जा रही है। गृह मंत्रालय को भारतीय खुफिया एजेंसियों के जरिए ताजा जानकारी मिली है कि आतंकवादी अमरनाथ यात्रा के दौरान हमला कर सकते हैं। इससे तीन दिन पहले ही स्वयं गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने भी आशंका जताई थी कि श्रीनगर में सोपोर में भड़की हिंसा के पीछे लश्कर का हाथ हो सकता है। कश्मीर घाटी में हिंसा के पीछे लश्कर की करतूत शामिल होने की पुष्टि खुफिया तंत्र ने भी कर दी है। अमरनाथ यात्रा पर छाये आतंकी साया को देखते हुए केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा के और पुख्ता बंदोबस्त करने का भी दावा किया है। विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच प्रस्तावित वार्ता में कश्मीर मुद्दे को शामिल करने के लिए आतंकवादी संगठनों ने जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी संगठनों से पैठ करके हिंसा करके कानून व्यवस्था चौपट करने की योजना तैयार की है, जिसमें मौका मिलने पर आतंकवादी हमले को अंजाम दे सकते हैं, जिसके लिए सरकार को आतंकवाद की चुनौती को कुचलने के लिए बेहद सतर्कता के साथ ठोस उपाय करने की जरूरत है। पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई और पाक सेना अधिकारियों की छत्रछाया में लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठन •भारत व पाकिस्तान की प्रस्तावित बातचीत को भी प्रभावित करने का प्रयास कर सकते हैं। भारत और पाक के जानकार व रणनीतिकार भी मानते हैं कि कश्मीर घाटी में हिंसा के दौरान जिस प्रकार युवकों को पत्थरबाजी करते देखा गया है ऐसा पहले कभी नहीं था और इस बात की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि सोपोर की हिंसक घटनाओं के पीछे भी नवयुवकों को धन देकर लश्कर की नई कारगुजारी काम कर रही है। विदेश मामलों के विशेषज्ञ प्रशान्त दीक्षित कहते हैं कि पुराने अनुभवों के आधार पर कहा जा सकता है कि जब भी भारत-पाक की बातचीत शुरू होती है तो खासकर कश्मीर के हालात बिगाड़ने का काम शुरू हो जाता है। इसका कारण है कि पाकिस्तान की सेना नहीं चाहती कि भारत और पाकिस्तान नजदीक आएं, जिसने भारत के खिलाफ खुफिया एजेंसी आईएसआई के जरिए लश्कर-ए-तैयबा जैसा संगठन खड़ा कर रखा है। यह बात डेविड हेडली से पूछताछ से भी सामने आई है कि मुंबई के 26/11 हमले में लश्कर के साथ पूरी साजिश में आर्मी के अफसर शामिल रहे हैं। दीक्षित का मानना है कि लश्कर-ए-तैयबा कोई तालिबान जैसा आतंकी संगठन नहीं है बल्कि इसे केवल पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई और पाक सेना ने भारत के खिलाफ ही इस्तेमाल किया है। ऐसे में प्रशांत दीक्षित का सवाल है कि हिंसा को भड़काने वाले जनता के ही लोग हैं लेकिन उनके भारत विरोधी तत्व कहां से घुसते हैं उन्हें तलाशने के लिए केंद्र और राज्य सरकार को खास योजना तैयार करने की जरूरत है और जनतंत्र में सुरक्षा को मजबूत बनाये रखने के लिए खुफिया तंत्र को तेजतर्रार करना होगा। भारत और पाकिस्तान के जानकार प्रो. कलीम बहादुर का मानना है कि पाकिस्तान की आर्मी और आईएसआई की पुरानी नीति रही है कि कश्मीर में जितनी गडाड़ी की जाए कम है ताकि भारत और पाकिस्तान की वार्ता कभी पटरी पर न चढ़ सके। प्रो. कलीम बहादुर कहते हैं कि अमरनाथ यात्रा के समय कश्मीर घाटी में हिंसा का मौका भारत विरोधी पाक सेना व लश्कर गंवाना नहीं चाहती? विशेषज्ञ मानते हैं कि सीमापार से बढ़ती घुसपैठ भी इसी मंशा से लगातार हो रही है। कलीम बहादुर की माने तो दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की 15 जुलाई को प्रस्तावित बातचीत से पहले आतंकी संगठनों का मकसद दोनों देशों के बीच तनाव पैदा करना है। ऐसे नाजुक दौर में केंद्र तथा राज्य सरकार को जम्मू-कश्मीर की भावनाओं को देखते हुए ठोस कदम उठाये ताकि अमरनाथ यात्रा के दौरान आतंकवादियों के मंसूबों पर पानी फिर सके।

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