एक जमाना था जब लोग अपने घरों के बाहर लिखते थे-अतिथि देवो भव: फिर शुरू किया-शुभ लाभ और बाद में लिखा जाने लगा-यूं आर वेलकम अब शुरू हो गया-......से सावधान!
शुक्रवार, 9 जुलाई 2010
कानून बदलाव से नहीं रूकेगी ऑनर किलिंग!
ओ.पी. पाल
देश में जैसे-जैसे ऑनर किलिंग यानि इज्जत के नाम पर हो रही हत्याओं पर बहस तेज हो रही है वैसे ही ऑनर किलिंग की घटनाओं में भी इजाफा हो रहा है। ऐसे में केंद्र सरकार ने ऑनर किलिंग को रोकने की दिशा में भारतीय दंड संहिता और अपराध प्रक्रिया संहिता में संशोधन करने का निर्णय लिया है। सरकार के इस निर्णय पर सवाल उठता है कि क्या आईपीसी और सीआरपीसी में बदलाव से ऑनर किलिंग को रोका जा सकेगा। रणनीतिकारों और विशेषज्ञों की माने तो इसके लिए सरकार को कठोर कदम और कमीशन ऑफ सती जैसे सख्त कानून बनाने की आवश्यकता है, लेकिन लगता है कि कानून में बदलाव के लिए जिस प्रकार से सरकार ने मंत्रि समूह का गठन करने और राज्यों से सुझाव लेने की बात कही है उससे नहीं लगता कि सरकार इस कानून में आगामी मानसून सत्र में इस प्रक्रिया को अंजाम दे पाएगी।प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में झूठी इज्जत के नाम पर होने वाली हत्याओं की घटनाओं से निपटने के लिए आईपीसी और सीआरपीसी में बदलाव के लिए मंत्रिसमूह का गठन करने का निर्णय लिया है, इससे साफ जाहिर है कि केंद्र सरकार ऑनर किलिंग पर कड़े कानून का निर्णय नहीं ले पा रही है। जाकि ऑनर किलिंग को लेकर जिस प्रकार से देशभर में बहस ने तेजी पकड़ी है उसी तेजी से ऑनर किलिंग की घटनों ने भी रफ्तार पकड़ी है। दूसरी ओर खाप पंचायतें यदि हिंदू विवाह अधिनियम-1955 के सगोत्र व सपिंड विवाह के ढांचे में परिवर्तन पर अड़ीं हैं तो यह भी अनायास ही नहीं है। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री श्रीमती अम्बिका सोनी ने कैबिनेट के खाफ पंचायतों के फरमान और ऑनर किलिंग पर हुई चर्चा के बारे में बताया है कि इसके लिए मंत्रियों का एक समूह गठन करने का निर्णय लिया गया है जो राज्यों के मुख्यमंत्रियों और मुख्य सचिवों से सुझाव लेकर सम्मान, जाति या गौत्र के नाम पर होने वाली हत्याओं से प्रभावी तरीके से निपटने के लिए भारतीय दंड संहिता तथा अपराध प्रक्रिया संहिता में संशोधन करने पर विचार किया गया है। सरकार का तो यह भी दावा है कि मंत्रि समूह की रिपोर्ट पर इसी माह शुरू होने वाले संसद के मानसून सत्र में कानून में बदलाव करने वाला संशोधन बिल पेश करने का प्रयास किया जाएगा। दरअसल देश की राजधानी से लेकर हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब, बिहार और राजस्थान के साथ-साथ समूचा उत्तर भारत ऑनर किलिंग की मानसिकता से ग्रस्त है। सामाजिक मान्यताओं के विपरीत सगोत्रीय विवाह करने वाले लड़के व लड़कियों की हत्याओं का सिलसिला ऑनर किलिंग के नाम पर थमने का नाम नहीं ले रहा है तो केंद्र सरकार इज्जत के नाम पर हत्याओं को रोकने के लिए कोई कठोर कानून बनाने पर सहमति में विफल रही है। यदि पिछले तीन माह यानि अप्रैल से जून तक के आंकड़ों पर ही नजर ड़ाले तो इन 90 दिनों में जाति व गोत्र की इज्जत बचाने के नाम पर कम से कम 20 से भी अधिक शादीशुदा प्रेमी युगलों की हत्या कर दी गई। जिससे कहा जा सकता है कि देश में ऑनर किलिंग के गुणा-भाग में प्रत्येक चार-पांच दिनों में एक हत्या का ग्राफ होने का मामला सामने आया है। सरकार के सूत्रों की माने तो आनर किलिंग का फरमान जारी करने वाली खाप पंचायतें और उनके फरमान को अमली जामा पहनाने वाले किसी समूह और व्यक्ति को प्रस्तावित कानून के तहत संयुक्त रूप से सजा दी जाएगी। इसलिए सरकार की विशेष विवाह कानून के तहत अंतरजातीय या अंतर-धर्म विवाह के मामलों में 30 दिन की नोटिस अवधि के प्रावधान को समाप्त करने की भी योजना है। विधि विशेषज्ञ कमलेश जैन का मानना है कि सरकार इस तरह के संवेदनशील मामलों पर कभी गंभीर नहीं दिखी है। सरकार को चाहिए कि ऑनर किलिंग को रोकने के लिए कमीशन ऑफ सती यानि प्रीवेंशन एक्ट-1987 की तर्ज पर कानून बनाए। इस कानून को लागू करने का असर पूरे देश के सामने है, जिसमें सती प्रथा की परंपरा को रोका जा सका है। यदि सरकार आईपीसी और सीआरपीसी में संशोधन करके प्रीवेंशन एक्ट-1987 को ध्यान में रखती है तो कुछ न कुछ सफलता मिल सकती है। वहीं समाज शास्त्री योगेंद्र सिंह की माने तो सम्मान और इज्जत बचाए रखने के नाम पर प्रेमी युगल दंपतियों की हत्या की बढ़ती घटनाएं एक गंभीर चिंता का विषय है। इस समस्या के समाधान के लिए समाज के सभी लोगों का सहयोग जरूरी है। यह एक सामाजिक समस्या है, इसलिए इसका समाधान भी समाज के स्तर पर होना चाहिए। इस समस्या का समाधान कानून बनाने या कानून में संशोधन करने से हल करना संभव नहीं है। बल्कि एक नए परिवर्तन के दौर से गुजर रहे समाज की नई मान्यताओं और परंपराओं के बावजूद इज्जत के नाम पर हत्या कोई नई घटना नहीं है। कानून और खाप पंचायतों के बीच टकराव को दूर करने के लिए एक नई सोच को विकसित करने की जरूरत है।
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