ओ.पी. पाल
केंद्र की यूपीए सरकार एक और तो आतंकवाद की चुनौतियों से निपटने की बात करती है और दूसरी और वह आतंकवाद पर राजनीति करने से भी बाज नहीं आई। गुजरात पुलिस के हाथों एक मुठभेड़ के दौरान अपने दो अन्य साथियों के साथ मारी गई मुंबई की छात्रा इशरत जहां के मामले पर लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी डेविड कोलमैन हेडली के खुलासे से तो शायद कांग्रेसनीत यूपीए सरकार की इसी प्रकार की राजनीति बेनकाब होती नजर आ रही है। इशरत जहां को लश्करे का मानव बम होने का खुलासा भी हेडली ने केंद्र सरकार की आतंकवाद पर गठित राष्ट्रीय जांच एजेंसी के समक्ष शिकागों में पूछताछ के दौरान किया है। अभी तक इस मामले में गुजरात सरकार को अल्पसंख्यक विरोधी साबित करने के लिए केंद्र सरकार इस मामले को फर्जी मुठभेड़ बताने से पीछे नहीं रही। ऐसे में जाहिर है कि हेडली का खुलासा केंद्र सरकार के लिए मुसीबत खड़ा कर सकता है शायद इसलिए ही असमंजस की स्थिति में फंसी केंद्र सरकार इस मामले पर फिलहाल पूरी तरह से चुप्पी साधे हुए है। विशेषज्ञ और रणनीतिकारों का मानना है कि यदि भारत के खिलाफ आतंकवाद की चुनौती से सरकार लड़ना चाहती है तो उसे इस मामले पर भी अपना रवैया स्पष्ट करना चाहिए।
राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानि एनआईए का दल पिछले महीने ही शिकागों की जेल में बाद मुंबई हमले के मास्टर माइंड लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी डेविड कोलमैन हेडली उर्फ दाउद गिलानी से पूछताछ करके वापस भारत आया है। भारतीय जांच दल से पूछताछ में हेडली ने गुजरात पुलिस के हाथों 15 जून 2004 में अपने साथियों के साथ मारी गई इशरत जहां को लश्कर का मानव बम होने का खुलासा करके इस मामले में नया मोड़ लाकर खड़ा कर दिया है, जिसमें केंद्र सरकार सवालों के घेरे में खड़ी होती नजर आ रही है। हेडली के इस खुलासे ने यह भी साबित करने का प्रयास किया है कि कांग्रेसनीत सरकार आतंकवाद से जुड़े इशरत के मामले पर अभी तक वोट बैंक की राजनीति करती आ रही है, जिसमें केंद्र सरकार गुजरात की मोदी सरकार को अल्पसंख्यक विरोधी साबित करने का प्रयास करती रही है। इशरत जहां की हेडली द्वारा भी लश्कर की फिदायीन होने की पुष्टि से जहां प्रमुख विपक्षी दल भाजपा को कांग्रेसनीत यूपीए सरकार को घेरने के लिए एक मुद्दा मिल गया है, वहीं आतंकवाद के खिलाफ दम भरने का दावा करने वाली कांग्रेसनीत यूपीए सरकार इस मामले पर जिस प्रकार से चुप्पी साधे हुए है उससे लगता है कि फिलहाल गृह मंत्रालय को कोई जवाा नहीं सूझ रहा है। यह भी गौरतलब है कि गृह मंत्रालय गुजरात हाई कोर्ट में इशरत जहां मुठभेड़ मामले में नरेंद्र मोदी सरकार की भूमिका पर संदेह जताते हुए सीबीआई जांच का समर्थन कर चुका है। आतंकवाद पर केंद्र सरकार की राजनीति इस बात से भी जाहिर है कि खुफिया तंत्र की गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी पर आत्मघाती हमले की सूचना पर गुजरात पुलिस के साथ हुई इस मुठभेड़ को तत्कालीन गृह मंत्री शिवराज पाटिल ने लश्कर के फिदायीन होने की पुष्टि की थी, लेकिन इशरत के परिवार द्वारा मामले को गुजरात हाईकोर्ट में चुनौती देने से गरमाई राजनीत को देखते हुए गृहमंत्रालय भी अपने पुराने रूख से मुकरता नजर आया और अपने ही खुफिया विभाग को संदेह के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया। मंत्रालय ने यहां तक कह दिया था कि खुफिया विभाग की सूचना को सबूत नहीं माना जाना चाहिए। ऐसे में सवाल उठते हैं कि केंद्र सरकार जा आतंकवाद पर भी वोट बैंक की राजनीति करेगी तो वह आतंकवाद के खिलाफ जारी संघर्ष को कैसे पार लगा पाएगी? विधि विशेषज्ञ कमलेश जैन मानती हैं कि जहां तक अदालत का सवाल है वह सबूतों के आधार पर मामले को आगे बढ़ाती है, जहां तक इस प्रकार के मामले पर उठे विवाद का सवाल है उसके लिए केंद्र सरकार को चाहिए कि किसी निष्पक्ष उच्चस्तरीय जांच एजेंसी इसे जांच कराकर मामले का पटाक्षेप करने की जरूरत है, जिसमें खासकर आतंकवाद के मामले पर राजनीति न तो राष्ट्रहित और न ही सामाजिक सुरक्षा के हित में है। जहां तक इशरत जहां का लश्कर से सांन्ध का खुलासा उसी आतंकी संगठन के सदस्य हेडली द्वारा किया गया है तो वह कहीं ज्यादा मायने रखता है। भाजपा के प्रवक्ता प्रकाश जावडेकर का तो यहां तक कहना है कि इस मुद्दे पर आ सरकार को जवाब देना पड़ेगा जो आतंकवाद पर राजनीति करती आ रही है। जावडेकर का मानना है कि कांग्रेसनीत केंद्र सरकार ने आतंकवाद पर राजनीति ही नहीं की, बल्कि अल्पसंख्यकों के सामने गुजरात की मोदी सरकार को द्वेष के कारण बदनाम करने का एक षडयंत्र भी काम करता रहा है जिसमें सरकार ने अदालत को भी गुमराह करने का प्रयास किया। जावडेकर का कहना है कि फिदायीन आत्मघाती हमले की सूचना देने वाला खुफिया विभाग और हेडली से पूछताछ करने वाली राष्ट्रीय जांच एजेंसी केंद्र सरकार के अधीन हैं तो इसके लिए केंद्र सरकार को अपना स्पष्टीकरण देने की जरूरत है ताकि दुनिया के सामने सच्चाई सामने आ सके।
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