रविवार, 11 जुलाई 2010

किसानों व् उपभोक्ताओं की मुश्किलों का फार्मूला!

ओ.पी. पाल
आसमान छूती महंगाई को काबू करने में विफल कांग्रेसनीत यूपीए सरकार ने पेट्रोल, डीजल, गैस और केरोसिन के दाम बढ़ाकर पहो ही आम नागरिकों के ऊपर आर्थिक बोझ बढ़ा दिया है। पेट्रोल को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने के बाद अब चीनी की कीमतों को भी बाजार के हवाले करने का फार्मूला अमल में लेन की योजना बनाई है। रणनीतिकारों और विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार आम नागरिकों और खासकर किसानों के उपयोग की वस्तुओं के दाम बढ़ाने के फार्मूलों के जरिए जिस प्रकार की नीति अपना रही है वह महंगाई से त्रस्त आम नागरिकों व किसानों के लिए मुश्किलों बढ़ाने का काम करेंगी। सरकार की इन नीतियों से महंगाई की दर कम होगी यह संभव नहीं है।देश में लगातार सुरसा की तरह मुहं बाए खड़ी महंगाई को काबू करने के लिए केंद्र सरकार के सभी दावे खोखलें साबित होते जा रहे हैँ। पिछो दो साल से महंगाई को नियंत्रित करने के अनेक उपायों के सरकारी दावों के बावजूद मुद्रास्फीति की दर लगातार बढ़ती जा रही है, खासकर आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि से आम नागरिक परेशान है। कृषि मंत्री शरद पवार ने शीघ्र ही चीनी को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने की योजना का संकेत दिया है, जाकि पिछो महीने ही सरकार ने पेट्रोल के दामों को नियंत्रणमुक्त करके डीजल को भी इसी दायरे में लाने का ऐलान किया था। पेट्रोल व डीजल के बाद अब चीनी को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करके उसे बाजार के हवाले करने की नीति पर विपक्ष तो बिफरा हुआ है ही, वहीं किसान राजनीति और संगठनों से जुड़े जानकार भी महंगाई को नियंत्रण करने के नाम पर सरकार के इन फार्मूलों को किसान और जनता के विरोधी मानते हैं। किसान राजनीति से जुड़े और पूर्व कृषि मंत्री सोमपाा शास्त्री का कहना है कि यदि सरकार चीनी के वितरण कीमतों को नियंत्रण मुक्त करना चाहती है तो वह उचित नहीं है। उनका मानना है कि चीनी के पूरे सिस्टम को नियंत्रण मुक्त करने से ही महंगाई पर काबू पाया जा सकेगा, लेकिन सरकार को गन्ने के न्यूनतम समर्थन मूय को अपने नियंत्रण में ही रखना होगा, ताकि गन्ना किसानों को उनकी फसल की कीमत के लीए मिल मालिकों को अपनी मनमानी करने का मौका न मिल सके। भारतीय किसान सभा से जुड़े कृषि विशेषज्ञ अतुल अंजान का कहना है कि यूपीए सरकार के चीनी को नियंत्रण मुक्त करने से जहां उपभोक्ता की जेबों पर डाका पड़ेगा, वहीं किसानों को भी उनकी फसालों के उचित दाम नहीं मिल सकेंगे। अनजान का मानना है कि पिछो दिनों चीनी ५० रुपये प्रति किलों के दाम पर बिकी है, जिससे चीनी मिल मालिकों को तीन हजार करोड़ से ज्यादा का फायदा हुआ है। उस समय कृषि मंत्री शरद पवार ने दामों में कमी लाने के लिए चीनी का विदेशों से आयात किया जाएगा, लेकिन अभी तक इस वायदे पर अमा नहीं हो पाया है। अतुल अनजान का कहना है कि गन्ना किसानों को उनकी फसा के चीनी के दामों की तुलना में उचित दाम देने में सरकार कंजूसी बरतती रही है। जबकि पेट्रोल, डीजल, केरोसिन व रसोई गैस के दाम बढ़ाने से आम उपभोक्ता के साथ किसान भी प्रभावित होता है। उनका मानना है कि आखिर महंगाई को काबू करने में विफल रही केंद्र सरकार तेल कंपनियों की तरह चीनी मिल मालिकों को फायदा पहुंचाने के फार्मूलें क्यों बनाती है? यदि सरकार इसी प्रकार की जन एवं किसान विरोधी नीतियों पर काम करती रही तो उसे इस बढ़ती महंगाई पर काबू पाना एक सपना साबित होगा। विशेषज्ञों का मानना है जा सरकार खाद्य सुरक्षा की बात करती है तो आवश्क वस्तुओं के दायरे में आ रही जरूरी वस्तुओं के दाम बढ़ाने से आम उपभोक्ता के साथ किसानों की भी आर्थिक मुश्किलें बढ़ जाती हैं। दरअसल सरकार पार्शियल डिकंट्रोल की नीति अपनाना चाहती है जिसमें किसानों को समर्थन मूय जारी रहेगा लेकिन उपभोक्ताओं को बजार के भरोसे छोड़ दिया जाएगा। चीनी उद्योग ने चीनी बाजार को नियंत्रण मुक्त करने की सरकार की प्रस्तावित इस योजना को उचित मानते हुए कहते हैँ कि इससे उपभोक्ताओं एवं किसानों दोनों को फायदा होगा। इंडियन शुगर मिस एसोसिएशन के उप महानिदेशक एमएन राव ने तो कृषि मंत्री की इस योजना का स्वागत किया है, जाकि विपक्ष और विशेषज्ञ इसे महंगाई को हवा देने की नीति बात रहे हैं।

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