आतंकवाद के मुद्दे पर भारत और अमेरिका के बीच हुए आतंकवाद निरोधक समझौते में जिस प्रकार से आतंकी गतिविधियों के वित्तपोषण पर अंकुश लगाने, बम विस्फोटों के मामलों की संयुक्त जांच करने के साथ साइबर एवं सीमा सुरक्षा में आपसी सहयोग करने पर सहमति बनी है। इस समझौते के आधार पर क्या अमेरिका आतंकवाद को समर्थन दे रहे पाकिस्तान पर अंकुश लगा पाएगा? इसी सवाल पर विशेषज्ञों का मानना है कि इस करार पर खरा उतरने के लिए पाकिस्तान को दी जाने वाली आर्थिक मदद की समीक्षा करने वाले अमेरिकी कानून को सख्ती के साथ लागू करना होगा, जिसका अभी तक पाकिस्तान की सेना विरोध करती आई है।
अमेरिका ने पिछले साल ही संसद और अमेरिकी सीनेट में एक बिल पारित किया था जिसमें यह प्रावधान है कि दुनिया के जिन देशों को अमेरिका आर्थिक मदद देता है उसकी यह मॉनीटरिंग की जाए कि वह धन जिस मद में जारी किया गया है वह उसी क्षेत्र में लगाया गया है या नहीं। माना जा रहा है कि इसी लिहाज से प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह की पहल पर भारत और अमेरिका ने नई दिल्ली में आतंकवाद निरोधक समझौते पर हस्ताक्षर करके शायद इस प्रकार की सहमति बनाई है कि इस मुद्दे पर दोनों देश आतंकी गतिविधियों के वित्तपोषण पर अंकुश लगाने, बम विस्फोटों के मामलों की संयुक्त जांच और साइबर एवं सीमा सुरक्षा में मिल जुलकर काम करेंगे। सहयोग शामिल है। भारत में अमेरिका के राजदूत टिमोथी जे. रोमर और केंद्रीय गृह सचिव जी.के. पिल्लई ने ऐसे ही एक करार हस्ताक्षर करके आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष को एक नई दिशा देने का प्रयास किया है। जहां तक भारत-अमेरिकी करार का सवाल है उसके संबन्ध में अमेरिकी राजदूत रोमर का कहना है कि भविष्य में दोनों देश सूचनाओं की और भी निकट साझेदारी और बम विस्फोट जांच एवं प्रमुख कार्यक्रमों की सुरक्षा से ले कर मेगा सिटी पुलिसिंग, साइबर और सीमा सुरक्षा जैसे मुद्दों पर ज्यादा निकट सहयोगात्मक प्रयास करेंगे। रोमर ने कहा कि राष्ट्रपति बराक ओबामा और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने साझा खतरों को महसूस किया कि अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद सभी लोगों के लिए खतरा है। समझौते में आतंकवाद से मुकाबला के लिए दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ाने को उनकी द्विपक्षीय भागीदारी के एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में जोर दिया गया है। इस पहल में आतंकवाद का प्रभावी तरीके से मुकाबला करने के लिए क्षमता में विस्तार, आधुनिक तकनीकों के आदान प्रदान को बढ़ावा देना, परस्पर हितों के मुद्दों को साझा करना, जांच संबंधी कुशलता का विकास तथा फारेंसिक विज्ञान प्रयोगशालाओं में सहयोग को बढ़ावा देने का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा जांच में परस्पर सहायता के लिए प्रक्रिया तय करना, आतंकवाद के वित्तपोषण, जाली नोटों और मनी लाउंड्रिंग के खिलाफ कारर्वाई के लिए क्षमता विस्तार, रेल एवं जन परिवहन की सुरक्षा, समुद्री सुरक्षा के लिए नौसेना और तटरक्षक बलों के बीच आदान प्रदान की भी इसमें की गई है। इस समझौते में सीमा और बंदरगाहों की सुरक्षा संबंधी कुशलता एवं अनुभवों के अलावा राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड सहित आतंकवाद विरोधी विशेष इकाइयों का उनके अमेरिकी समकक्षों के बीच का आदान प्रदान पर भी जोर दिया गया है। उधर केंद्रीय गृह सचिव जीके पिल्लई का कहना है कि इस करार के दस्तावेजों में उन मुद्दों को शामिल किया गया है, जिसे भारत और अमेरिका ने आतंकवाद के खतरे के लिए पहचान की है। भारत और पाकिस्तान मामलों के जानकार विशेषज्ञ प्रो. कलीम बहादुर कहते हैं कि अमेरिका ने भारत के साथ आतंकवाद निरोधक करार अमेरिकी सीनेट के सदस्यों-केरी और लूगर के नाम से जुड़े उस कानून आपरेशन एक्ट (पीस एक्ट) कि आधार पर ही किया गया है जिसमें यह बिल पाकिस्तान की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी राहत का काम करेगा, हालांकि इस बिल का पाकिस्तानी फौज ने विरोध किया है। क्योंकि ऐसी शिकायतें थी कि अमेरिकी सहायता की राशि पाकिस्तान में आतंकवाद के विकास पर खर्च की जा रही है। प्रो. कलीम बहादुर मानते हैं कि अमेरिका पाकिस्तान को मिलने वाली सहायता तो बंद नहीं कर सकता, क्योंकि ऐसा किया तो वहां तालिबान अपना कब्जा जमा सकते हैं इसलिए अमेरिका की मजबूरी भी है, लेकिन कानून में बांधना ही उसके सामने एक विकल्प था। इसलिए अमेरिका को पाकिस्तान में इस कानून का सख्त पालन कराने पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है। इस कानून के अनुसार पाकिस्तान सरकार को भविष्य में सेना के बजट, कमांड की प्रक्रिया, जनरलों का प्रमोशन, रणनीतिक नीति निर्धारण और नागरिक प्रशासन में सेना की भूमिका पर नजर रखनी पड़ेगी और अमेरिका को इसके बारे में जानकारी देनी पड़ेगी।
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