रविवार, 31 अक्तूबर 2010

सोनिया पर छोड़ा जा सकता है फैसला

कार्यसमिति के गठन में चुनाव के आसार कम
एआईसीसी की बैठक मंगलवार को
ओ.पी. पाल
कांग्रेस के महाधिवेशन से पहले कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति का गठन करने की कवायद तेजी से की जा रही है, जिसके मद्देनजर मंगलवार यानि दो नवंबर को अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में तय किया जाएगा कि कार्यसमिति के चुनाव के लिए चुनाव प्रक्रिया को अमल में लाया जाएगा या राष्ट्रीय कार्यसमिति के गठन के लिए सदस्यों के चयन करने का अधिकार कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को सौँपा जाएगा? ऐसी संभावना है कि कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी को ही सर्वशक्तिमान मानकर कांग्रेस कार्यसमिति के गठन में मनोनीत करने के लिए अधिकृत कर दिया जाए।
श्रीमती सोनिया गांधी के चौथी बार लगातार पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की मंगलवार को पहली बैठक होगी। इस बैठक को लेकर कांग्रेस के हलके में चर्चा है कि जिस प्रकार कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं में कांग्रेस प्रमुख श्रीमती सोनिया गांधी पर जिस प्रकार सभी फैसले करने के लिए अधिकृत करने की परंपरा जोर पकड़ती जा रही है तो उसे देखते हुए पार्टी की राष्टÑीय कार्यसमिति के गठन में चुनाव कराने की नौबत शायद ही आए। पिछले सप्ताह ही इसी अधिकार के तहत 18 राज्यों के प्रमुखों की घोषणा भी कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी ने ही की है। इसलिए माना जा रहा है कि मंगलवार की बैठक में ही सोनिया गांधी को सर्वशक्तिमान कांग्रेस कार्यसमिति मनोनीत करने के लिए अधिकृत किये जाने की उम्मीद की जा रही है। जहां तक इस बैठक के एजेंडे का सवाल है उसमें केवल राजनीतिक स्थिति पर एक प्रस्ताव पारित किया जायेगा, जिसकी घोषणा पहले ही कांग्रेस संचालन समिति की बैठक में की जा चुकी है। प्रदेश अध्यक्षों के नामों के लिए पहले ही सभी सोनिया गांधी पर विश्वास व्यक्त कर चुके हैं इसलिए ज्यादा उम्मीद यही है कि इस बैठक में राष्ट्रीय कांग्रेस कार्यसमिति मनोनीत करने की मांग की जा सकती है। कांग्रेस के नेताओं में कोई भी ऐसा उत्साह नजर नहीहं आ रहा है कि कोई कार्यसमिति के सदस्य के लिए नामांकन दाखिल करेगा। हालांकि कांग्रेस के संविधान में संशोधन के सुझाव पर भी पार्टी हाईकमान विचार कर रहा है। एआईसीसी की बैठक के बारे में पार्टी के कुछ नेताओं का कहना है कि कई वफादार इस अवसर का लाभ उठाते हुए सोनिया गांधी के प्रति एकजुटता व्यक्त करते हुए उनको कांग्रेस कार्यसमिति मनोनीत करने के लिए अधिकृत एक लाइन का प्रस्ताव का दबाव बना रहे हैं। वैसे कांग्रेस कार्यसमिति यानि सीडब्ल्यूसी चुनावों पर अधिकृत लाइन यह है कि एआईसीसी के करीबन एक हजार सदस्यों को तय करना है कि इसका मुकाबला किया जाये या फिर सोनिया गांधी को ही सर्वशक्तिमान कांग्रेस कार्यसमिति के 25 सदस्यों को मनोनीत करने के लिए अधिकृत किया जाये। कांग्रेस के संविधान के अनुसार कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्यों में से कार्यसमिति के चुनावों के लिए एक निर्वाचन मंडल गठन किया जाना है जिसमें 12 के चुनाव और 11 के नामांकन के लिए प्रावधान है। कांग्रेस संसदीय दल का नेता हमेशा पार्टी का प्रमुख होने के साथ-साथ सीडब्ल्यूसी का सदस्य होता है। कांग्रेस में हमेशा चुनाव के बजाय नामांकन पर अधिक जोर दिया जाता है। सोनिया गांधी के नाम की पहले ही एक सप्ताह पहले एक दर्जन से अधिक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सिफारिश कर चुके हैं। एआईसीसी में प्रत्येक राज्य से 25-25 सदस्य शामिल होने का प्रावधान हैं जिनकी राष्ट्रीय कार्यसमिति के गठन के लिए होने वाले चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका होती है, लेकिन संभावना है कि कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती गांधी को ही कार्यसमिति के गठन का अधिकार सौँपा जाएगा?

हमेशा छली गई शहीदों की कुर्बानियां!

जांच में दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा
ओ.पी. पाल
कारगिल के शहीदों की विधवाओं के हक यानि उनके अधिकारों का देश के सेना प्रमुखों, नौकरशाहों और राजनीतिज्ञों द्वारा मुंबई में बनाए गये फ्लैटों में जमावड़ा करके हनन करने का कोई यह पहला मामला नहीं है, इससे पहले भी देश की रक्षा करने के लिए कुर्बानी देने वाले जवानों के साथ छल किया जाता रहा है। इन फ्लैटों के आवंटन में हुए कथित घोटालों में जहां सेना के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई तय मानी जा रही है, वहीं महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण पर भी गाज गिरने से इंकार नहीं किया जा सकता।
खासकर कारगिल के शहीदों के आश्रितों के लिए की जाने वाली सरकार की घोषणाएं खोखली ही साबित हुई है। देखने में आया है कि सरकार वायदे के अनुसार देश की रक्षा करते हुए शहीद होने वाले जवानों की विधवाओं और आश्रितों को सहायता देने के लिए आधार तो तैयार कर देती है, लेकिन उस आधार पर शहीदों के आश्रितों के अधिकारों का उल्लंघन करने में राजनीतिज्ञ, नौकरशाह और स्वयं सेना के अधिकारी कभी पीछे नहीं रहे हैं। जहां तक कारगिल के शहीदों की विधवाओं को सहायता देने का सवाल है उन्हें पेट्रोल पंपों का आवंटन करने का भी सरकार ने वादा किया था, लेकिन आधे से अधिक पेट्रोल पंप या गैस एंजेंसियों का अभी तक भी आवंटन नहीं किया गया, जिसमें सरकार की इस नीति के विरोध में तीन साल पहले एक शहीद की विधवा ने पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा की एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान शास्त्री भवन में आत्मदाह करने का भी प्रयास किया था। इस प्रकार शहीदो के आश्रितों के अधिकारों के हनन के कई मामले सामने आए हैं, जिनमें संसद भवन पर आतंकी हमले के शहीदों की विधवाओं द्वारा सरकार की उपेक्षा से तंग आकर केई बार उनके मरणोपरांत मिले मेडल वापस करने की भी धमकी दी जा चुकी है। मुंबई में कारगिल के शाहीदों की विधवाओं द्वारा बनाए गये फ्लैटों के आवंटन में हुए कथित घोटाले ने तो शहीदों की कुर्बानियों के साल किये गये खिलवाड़ की पोल खोलकर रख दी है, जिसमें सत्ताधारी दल के मुख्यमंत्री के ही रिश्तेदारों ने शहीदों की विधवाओं के फ्लैटों पर अपने नाम से आवंटन कराकर कब्जा कर लिया है। हांलाकि केंद्र सरकार और रक्षा मंत्रालय ने इस मामले को गंभीरता से लिया। रक्षा मंत्री ए.के. एंटोनी ने तो मुंबई के कोलाबा में 31 मंजिला इमारत में बनाये गये फ्लैटों के आवंटन की जांच कराई है, जिसमें रक्षा मंत्रालय ने प्रथम दृष्टय मुंबई के इस विवादित आदर्श हाउसिंग सोसायटी परियोजना में आपराधिक साजिश की बात कही है। इस जांच में रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि इसमें सेना प्रमुखों, राजनीतिज्ञों और नौकरशाहों को मिट्टी के मोल फ्लैट दिए जाने का मामला सामने आया है। गौरतलब है कि रक्षा मंत्री ए.के. एंटोनी ने इसी महीने इस घोटाले की जांच के आदेश दिए हैं और मंत्रालय ने सेना, नौसेना और डिफेंस एस्टेटस से इस विवाद और इसकी पृष्ठभूमि पर रिपोर्ट मांगी है। सूत्रों के अनुसार सेना और डिफेंस एस्टेटस निदेशालय ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है, जबकि नौसेना की रिपोर्ट अभी आना बाकी है। इस जांच रिपोर्ट में जो तथ्य सामने आए हैं उनमें कारगिल के शहीदों की विधवाओं के लिए आदर्श हाउसिंग सोसायटी परियोजना में बनी बहुमंजिला इमारत में पूर्व सेना प्रमुखों जनरल एनसी विज और दीपक कपूर, पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल माधवेन्द्र सिंह, थलसेना के पूर्व उपप्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल शांतनु चौधरी और पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं शिवसेना सांसद सुरेश प्रभु उन लोगों में शामिल हैं, जिन्हें इस इमारत में फ्लैट अलॉट किए गए हैं। विवादित आदर्श सोसायटी परियोजना में फ्लैटों को लेकर महाराष्टÑ सरकार कठघरे में है, जिसमें मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण की मां और रिश्तेदारों के नाम से भी फ्लैट आवंटित किये गये हैं। रक्षा मंत्री एके एंटोनी ने तो यहां तक कह दिया है कि आदर्श सोसायटी विवाद में आपराधिक साजिश में सेना के कुछ अधिकारियों के शामिल होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता और ऐसे अधिकारियों रक्षा मंत्रालय किसी प्रकार का रहम करने वाला नहीं है। रक्षा मंत्रालय की इस जांच और चेतावनी के बाद इन फ्लैटों का विवाद गहराने से पूर्व सेना प्रमुखों जनरल एनसी विज और दीपक कुमार के अलावा पूर्व नौसेना प्रमुख माधवेन्द्र सिंह आदि अपने नाम से आवंटित फ्लैटों की बात को सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर चुके हैं और इन फ्लैटों को छोड़ने के लिए तैयार हैं। वहीं इस मामले में मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण पर गाज गिरने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता, जिन्हें कांग्रेस हाईकमान ने तलब किया था और उन्होंने अपने इस्तीफे की पेशकश भी कर दी है। अब देखना है कि इस प्रकरण पर केंद्र सरकार किस प्रकार की कार्रवाही अमल में लाएगी।

सुपर-30 का आईआईटी में एक और कदम!

अब पांचवीं कक्षा से ही बच्चों को तराशेगी
ओ.पी. पाल
आईआईटी में गरीब परिवारों के मेधावी छात्रों को मुफ्त प्रशिक्षण देकर उन्हें सफलता की मंजिल हासिल कराने वाली शैक्षणिक संस्था सुपर-30 ने दुनियाभर में प्रसिद्धि हासिल करने के बाद एक ओर कदम बढ़ाने का निर्णय लिया है, जिसमें यह संस्था अब एक ऐसा स्कूल आरंभ करने की योजना बना रही है, जिसमें पांचवीं कक्षा से ही बच्चों को आईआईटी के लिए प्रशिक्षित किया जा सके।
भारतीय प्रौद्योगिक संस्थानों यानि आईआईटी में गरीब परिवारों के मेधावी छात्रों का दाखिला दिलाने के लिए निशुल्क प्रशिक्षित करती आ रही शैक्षणिक संस्था सुपर-30 प्रत्येक वर्ष गरीब परिवारों के 30 मेधावी छात्रों का प्रशिक्षण के लिए चयन करती है, जिसमें अब उसे बढ़ती संख्या को देखते हुए इस चयन में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। इस संस्था के संस्थापक आनंद कुमार ने इसके लिए एक नया तरीका निकाला है। इस कदम को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने एक योजना तैयार की है जिसमें एक ऐसी शिक्षण संस्थ आरंभ की जाएगी, जिसमें पांचवीं कक्षा से ही बच्चों को आईआईटी के लिए प्रशिक्षित किया जा सके। पटना स्थित इस संस्था सुपर-30 के संस्थापक आनंद कुमार का कहना है कि गरीबी के कारण अधिकांश बच्चों निचली कक्षाओं में ही स्कूल छोड़ देते हैं। इसकी वजह से देश न जाने कितने प्रतिभाओं को खो देता उसकी कोई गिनती नहीं है। आनंद मानते हैं कि आज हमें 30 बच्चों को खोजने में कठिनाई आ रही है। यदि हम पांचवीं कक्षा से ही बच्चों को प्रशिक्षित करने लगे तो हमारे पास प्रतिभावान छात्रों की कोई कमी नहीं रहेगी और उन्हें हम स्कूली जीवन से ही आईआईटी के लिए प्रशिक्षित कर सकेंगे। इस लिहाज से हमारी योजना 'स्कूल फॉर फ्यूचर प्लानिंग' खोलने की है, जिसमें गरीब परिवारों के मेधावी छात्रों की पहचान कर उन्हें पांचवीं कक्षा से ही आईआईटी के लिए तराश जा सके। इसके कई फायदे होंगे, जिसमें उन छात्रों को प्लेटफार्म मिल जाएगा जो निचली कक्षाओं में ही स्कूल छोड़ने को मजबूर हो जाते है, वहीं दूसरा यह कि कुछ सालों बाद हमें मेधावी छात्रों को खोजने में कठिनाई नहीं होगी, क्योंकि जब बच्चों को पांचवीं कक्षा से ही प्रशिक्षित किया जाएगा तो वे निश्चित तौर पर आगे का अपना रास्ता आसान कर लेंगे। गौरतलब है कि यह संस्थ बच्चों की पढ़ाई से लेकर उनके खाने-पीने व रहने तक का खर्च उठाते हैं और उन्हें मुफ्त में प्रशिक्षित करती आ रही है। अब इस योजना को आगे बढ़ाने के उद्देंश्य से एक ऐसा स्कूल आरंभ करने की योजना बना रहे हैं जिसमें कक्षा पांच से ही आईआईटी का प्रशिक्षण दिया जा सके। इस संस्था ने अब आन लाइन अध्ययन कराने का प्रस्ताव भी रखा है। यह प्रस्ताव कुछ उन विदेशी संस्थानों की ओर से आए हैं जिन्होंने उनकी संस्था की कामयाबी पर उनसे संपर्क साधा है और इसके लिए वह सहयोग भी देने को तैयार हैं। आनंद कुमार आईआईटी को बढ़ावा देने के लिए एक किताब भी लिखने जा रहे हैं, जिसके लिए एक विदेशी प्रकाशक से बातचीत जारी है। उनकी इस संस्था का मकसद है कि गरीब परिवारों के अधिक से अधिक बच्चे उच्च तकनीकी शिक्षा हासिल करें और उनके इस प्रयास से इस क्षेत्र में बच्चों में जागरूकता देखने को मिल रही है।

ओबामा दौरा:संसद भवन की सुरक्षा सख्त

फूलों की खुशबू से महकेगा संसद भवन ओ.पी. पाल
भारत के दौरे पर आ रहे अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के दौरे को लेकर चल रही तैयारियों में जहां संसद भवन की सुरक्षा को सख्त करके चाक चौबंद सुरक्षा को अंजाम दिया जा रहा है, वहीं संसद भवन की सूरत में भी चार चांद लगाये जा रहे हैं यानि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के आठ नवंबर की शाम को केंद्रीय कक्ष में संसद की संयुक्त बैठक को संबोधित करेंगे, जिसके लिए केंद्रीय कक्ष का कायाकल्प करने का काम जोरों पर है, वहीं परिसर और संसद के भीतरी हिस्सों को फूलों की खुशबू से सराबोर किया जाएगा।
संसद भवन और उसके आसपास जिन मार्गो से अमेरिकी राष्ट्रपति का काफिला गुजरेगा उस क्षेत्र की साजसज्जा का काम किया जा रहा है। मुख्य रूप से संसद भवन के सेंट्रल हॉल जिसमें ओबामा आठ नवंबर को संयुक्त सदन को संबोधित करेंगे उसे देखते हुए इस कक्ष की कायाकल्प का काम तेजी के साथ किया जा रहा है और उसे विशेष रूप से सुसज्जित किया जा रहा है, जिसके कारण आजकल केंद्रीय कक्ष में हर किसी का प्रवेश बंद किया हुआ है। सूत्रों की माने तो केंद्रीय कक्ष के मंच और उसके जीर्णोद्धार को लेकर जो कार्य किया जा रहा है वह शायद इससे पहले किसी अन्य अंतर्राष्ट्रीय नेता के लिए नहीं किया गया है। ब्रिटिशकाल के गोलाकार संसद भवन का कोई हिस्सा ऐसा नहीं बच रहा होगा, जहां मरम्मत या जीर्णोद्धार का काम न चल रहा हो। संसद परिसर में भी जिस रूट से ओबामा का काफिला केंद्रीय कक्ष तक पहुंचेगा उसके दोनों और खूशबूदार फूलों की बाहर होगी। ओबामा के संसद दौरे के दौरान सांसदों, पूर्व सांसदों और विशेष आमंत्रित लोगों को छोड़कर किसी भी अन्य बाहरी व्यक्ति को संसद भवन में प्रवेश नहीं दिया जाएगा। जहां तक अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा के दौरे पर संसद में सुरक्षा व्यवस्था का सवाल है उसके लिए पहले से ही संसद में जारी कड़ी सुरक्षा व्यवस्था को और अधिक सख्त किया जा रहा है, जिसका जिम्मा देश की सभी सुरक्षा एजेंसियों को सौँपा गया है। सूत्रों ने बताया कि संसद परिसर और उसके आसपास की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए सुरक्षा एजेंसियों ने सीसीटीवी कैमरे लगाये हैं वहीं संसद भवन में प्रवेश पर होने वाली तलाशी को अभी से सख्त कर दिया गया है यानि जूते-मौजे तक उतरवाकर तलाशी अभियान चलाकर अत्याधुनिक जांच-पड़ताल यंत्रों से हर प्रवेश करने वाले व्यक्ति की तलाशी के सथ सुरक्षा व्यवस्था का अभ्यास शुरू कर दिया गया है। संसद भवन व राष्ट्रपति भवन के आसपास भारतीय सेना के जवानों को भी तैनात करके पूरी तरह से चौकस कर दिया गया है। ओबामा के संसद दौरे से एक सप्ताह पूर्व यानि एक नवंबर से ही संसद भवन में बाहरी व्यक्तियों यानि किसी प्रकार के स्कूली या अन्य प्रतिनिधिमंडल को संसद भवन में जाने की अनुमति नहीं होगी अर्थात किसी भी समूह को संसद भवन के शो राउण्ड प्रतिबंधित रहेंगे। हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति ओबाम की सुरक्षा स्वयं अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियां संभालेंगी, जिनका दल आज-कल में ही वाशिंगटन से ओबामा के भारत दौरे की अधिकृत घोषणा होते ही नई दिल्ली पहुंच जाएगा। फिर भी ओबामा के महत्वपूर्ण दौरे को लेकर भारतीय सुरक्षा एजेंसियां संसद भव परिसर की सुरक्षा की गहन समीक्षा करते हुए चाक चौबंद सुरक्षा के इंतजाम करने के लिए प्रतिबद्ध है। इस दौरे को लेकर भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने संसद भवन को अपने कब्जे में ले लिया है और चप्पे-चप्पे को सुरक्षा के लिहाज से अपनी नजर में शामिल कर लिया। संसद भवन के सूत्रों के अनुसार ओबामा संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में लोकसभा और राज्यसभा के संयुक्त सदन को आठ नवंबर को सांय पांच बजे संबोधित करेंगे, जिनका संबोधन 20 से 25 मिनट का होगा। इस दौरान राज्यसभा के सभापति के रूप में उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी स्वागत भाषण पेश करेंगे तो वहीं लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार धन्यवाद प्रस्ताव पेश करेंगी। अपने संसद दौरे के इस कार्यक्रम के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति ओबाम संसद भवन की आगंतुक पुस्तिका गोल्डन बुक में भी हस्ताक्षर करेंगे। वहीं उनकी पत्नी मिशेल ओबामा भी केंद्रीय कक्ष में उनके साथ होंगी, जिन्हें संयुक्त सदन में प्रथम पंक्ति में बैठाया जाएगा, जबकि कक्ष के मंच पर ओबामा के साथ उप राष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष तथा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह मौजूद रहेंगे।

कांग्रेस में होंगी एक तिहाई महिलाएं

सोनिया ने की 18 राज्यों के प्रमुखों की घोषणा
ओ.पी. पाल
कांग्रेस प्रमुख श्रीमती सोनिया गांधी ने देश में 18 राज्यों के कांग्रेस अध्यक्षों के नामों का ऐलान कर दिया है। कांग्रेस ने महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देते हुए राष्ट्रीय और राज्य ईकाईयों में 33 प्रतिशत महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने की नीति को शुरू किया है जिसके लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने निर्देश भी जारी कर दिये हैं।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पूर्व मुख्यमंत्री अमरिन्दर सिंह और जी परमेश्वर को पार्टी की क्रमश: पंजाब और कर्नाटक इकाई का प्रमुख नियुक्त किया है। इसके साथ ही पार्टी की 18 प्रदेश इकाइयों के अध्यक्षों की घोषणा कर दी गई है। रीता बहुगुणा जोशी उत्तर प्रदेश में, मानस रंजन भुइयां पश्चिम बंगाल में, जयप्रकाश अग्रवाल दिल्ली में और भुवनेश्वर कालिता असम में फिर से प्रदेश अध्यक्ष बने रहेंगे। राज्य इकाइयों ने प्रदेश अध्यक्ष के पद पर नियुक्ति के लिए सोनिया गांधी को अधिकृत किया गया था। केंद्रीय चुनाव समिति के चेयरमैन आस्कर फर्नांडीस द्वारा जारी प्रदेशाध्यक्षों की सूची के अनुसार असम में भुबनेश्वर कालिता, हिमाचल प्रदेश में कौलसिंह ठाकुर, कर्नाटक में डा. जी. परमेश्वर, केरला में रमेश चेन्नीथाला, पंजाब में कैप्टन अमरेन्द्र सिंह, पुडुचेरी में एवी सुब्रह्मण्यम, उत्तराखंड में यशपाल आर्य, उत्तर प्रदेश में श्रीमती रीता बहुगुणा जोशी, पश्चिम बंगाल में मानस रंजन भुनिया, दिल्ली में जयप्रकाश अग्रवाल व चंडीगढ़ में बीबी बहल को राज्य ईकाई की बागडौर सौंपी गई है। इसके अलावा श्रीमती गांधी ने अरुणाचल प्रदेश में नबाम तुकी, मणिपुर में गैखानगम, मेघालय में फ्राइडे लिंगदोह, मिजोरम में लालथंगवाला, नागालैंड में एसआई जमीर, अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में कुलदीप शर्मा तथा लक्ष्यदीप में पोनिक्कम शाईखोया को अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। तीन दर्जन अध्यक्षों की इस घोषणा में ज्यादातर अध्यक्षों को पुन: मौका दिया गया है।
देश में महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में महिला आरक्षण को पार्टी में लागू करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी पूरी तरह से गंभीर है। इसी दिशा में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने राज्य इकाइयों को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी और प्रदेश इकाइयों में एक तिहाई सीटों पर महिलाओं की नियुक्ति सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है। कांग्रेस सूत्रों के अनुसार महिलाओं को सशक्त किए जाने के मुद्दे पर गंभीर सोनिया गांधी ने कहा है कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के सदस्यों में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दिया जाना चाहिए। देश भर में एआईसीसी के करीब एक हजार सदस्य हैं जिनसे कांग्रेस कार्यसमिति के लिए निर्वाचन मंडल का गठन होता है। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि पार्टी प्रमुख ने प्रदेश इकाइयों से यह सुनिश्चित करने को कहा है कि एक तिहाई पदों पर महिलाओं की नियुक्ति हो। यह भी गौरतलब है कि कांग्रेस कार्यसमिति के लिए नवंबर में चुनाव होने हैं। करीब एक दशक पूर्व संगठन में एक तिहाई आरक्षण सुनिश्चित करने में सोनिया की अहम भूमिका रही और कांग्रेस इसे लागू करने वाली पहली राष्ट्रीय पार्टी थी। सोनिया ने राज्यसभा में महिला आरक्षण विधेयक पारित कराने में उल्लेखनीय भूमिका निभायी थी। इसके विपरीत लोकसभा में इस बिल को लाए जाने के बारे में अभी तक औपचारिक रूप से कुछ नहीं कहा गया है। सोनिया के निदेर्शों के कारण एआईसीसी के कई मौजूदा सदस्य दोबारा नहीं चुने जा सके। वहीं राज्य इकाइयों को उचित उम्मीदवारों की तलाश में मेहनत करनी पड़ रही है। वर्ष 1998 से लगातार कांग्रेस प्रमुख हैं और इस बार वह चौथी बार पार्टी प्रमुख चुनी गई हैं।

बिहार: चुनाव में बाहुबल व धनबल

चुनाव आयोग की सर्वदलीय बैठक के मायने क्षीण
ओ.पी. पाल
बिहार विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों ने जिस प्रकार से आपराधिक छवि वाले नेताओं को चुनाव मैदान में उतारा है उससे लगता है कि केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा धनबल और बाहुल की चली आर रही प्रवृत्ति को समाप्त करने के लिए बुलाई गई सर्वदलीय बैठक के कोई मायने नहीं रह जाते। दरअसल राजनीति के अपराधिकरण की पंरपरा को समाप्त करने की दिशा में चुनाव आयोग के साथ हुई विभिन्न दलों के नेताओं ने समर्थन करके ऐसी दुहाई दी जैसे बिहार चुनाव में उसे सभी पार्टियां लागू कर देंगी, लेकिन देखने में आ रहा है कि अन्य राज्यों के विधानसभा चुनाव की अपेक्षा इस बार बिहार में सभी दल धनबल व बाहुबल के सहारे अपनी चुनावी नैया पार लगाने की ठान चुके हों।
बिहार विधानसभा चुनाव में अभी तक दो चरण का चुनाव हो चुका है जबकि तीसरे चरण का चुनाव 28 अक्टूबर को होगा। इन तीन चरणों के चुनाव में ही देखें तो शपथपत्र दाखिल कर ऐसे 379 प्रत्याशी स्वयं स्वीकार कर चुके हैँ कि उनके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं जिनमें पहले चरण के 154 आपराधिक छवि वाले प्रत्याशियों में तीन ऐसे प्रत्याशी रहे जिनके खिलाफ बलात्कार के मामले चल रहे हैँ। हरिभूमि ने इससे पहले तीन चरणों तक के चुनाव में आपराधिक प्रत्याशियों के बारे में जानकारी प्रकाशित की थी, जिसके बाद चौथे चरण में कितने प्रत्याशी आपराधिक छवि वाले हैँ की जानकारी दी जा रही है। इस बारे में एक अभिान के तहत काम कर रहे संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफोर्म्स और नेशनल इलेक्शन वॉच ने स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की मुहिम चलाते हुए ऐसे तथ्य उजाकर किये हैँ जिनसे जाहिर है कि बिहार विधानसभा चुनाव में सभी राजनीतिक दल धनबल और बाहुबल को बढ़ावा दे रहा है। चुनाव में आपराधिक छवि के प्रत्याशियों की पड़ताल करने के लिए देश भर के 1200 से अधिक एनजीओ संगठन काम कर रहे हैँ। नेशनल इलेक्शन वॉच के राष्ट्रीय समन्वय अनिल बैरवाल ने बिहार में चौथे चरण के चुनाव मैदान में अपनी किस्मत आजमा रहे प्रत्याशियों के दाखिल शपथपत्रों का अध्ययन करने के बाद जो तथ्य उजागर किये हैं उनमें सत्ताधारी जद-यू बाहुबल और धनबल को ज्यादा बढ़ावा दे रही है, जबकि कांग्रेस, राजद, लोजपा, भाजपा बसपा आदि दल भी इस परंपरा को तेजी से बढ़ाने में लगे हुए हैं। इस अभियान में बिहार चुनाव का आकलन कर रही गैर सरकारी संस्था इलेक्शन वॉच के बिहार शाखा के संयोजक अंजेश कुमार ने भी इन तथ्यों की जोरदार तरीके से पुष्टि की है। संस्था के मुताबिक चौथे चरण तक 1237 प्रत्याशियों के शपथपत्रों के आधार पर 481 प्रत्याशी आपराधिक छवि के दायरे में हैं। जिनमें 288 प्रत्याशी ऐसे हैँ जिनके खिलाफ हत्या, हत्या का प्रयास, बलात्कार, लूट व चोरी जैसे संगीन अपराध हैं। जहां तक चौथे चरण में आपराधिक प्रत्याशियों का सवाल है उसमें 91 प्रत्याशियों के नाम अपराध जगत से जुड़े हुए हैं जिनमें से 49 प्रत्याशियों के खिलाफ हत्या और हत्या के प्रयास जैसे संगीन मामले लंबित हैँ। चाथे चरण में राजद के 62 प्रतिशत, भाजपा के 53 प्रतिशत, कांग्रेस के 41 प्रतिशत, लोजपा के 40 प्रतिशत, जद-यू के 38 व बसपा के 37 प्रतिशत प्रत्याशी अपराधी छवि वाले हैँ। इन चारों चरण के प्रत्याशियों का आकलन किया जाए तो बसपा के 164 में 62, जद-यू के 102 में 54, भाजपा के 73 में से 47, कांग्रेस के 171 में 64, राजद के 122 में 69, लोजपा के 53 में 32 प्रत्याशी अपराधिक मामलों से लबरेज हैँ। धनबल की बात की जाए तो वर्ष 2005 के चुनाव में जहां करोड़पति प्रत्याशियों की संख्या केवल 36 थी तो इस बार चौथे चरण तक के प्रत्याशियों के शपथपत्रोें के विश्लेषण बता रहे हैं कि यह संख्या बढ़कर 147 हो गई है, जबकि अभी दो ओर चरणों का चुनाव बाकी है।

तो 2012 से शुरू हो जाएगा अंतरिक्ष पर्यटन

ओ.पी. पाल
दुनिया भर में पर्यटन क्षेत्र का विस्तार हुआ है तो दुनिया भर के धनवान पर्यटकों का एक ही सपना बचा है कि वे पृथ्वी के चक्कर काट रहो स्पेस शटल एंडेवर अंतरिक्ष में जाएं। ऐसे पर्यटकों का यह सपना भी साकार होने जा रहा है यानि 2012 से वर्जिन गैलैक्टिक स्पेस टूरिज्म की फ्लाइट शुरू करने जा रहा है जो विमानों के लिए नए रनवे तैयार कर चुका है, जिसका दावा है कि 2012 से वह लोगों को अतंरिक्ष तक घुमाएगा।
गैलैक्टिक स्पेस कंपनी के मालिक रिचर्ड ब्रैंसन ने लोगों के इस सपनो को साकार करने के लिए अमेरिका के न्यू मेक्सिको में नए रनवे तैयार कर लिये हैँ। ब्रैंसन का कहना है कि यह स्पेस एज का दूसरा दौर है और हमें गर्व है कि हम कहानी के इस मोड़ पर अपना योगदान दे रहे हैं। उनका मानना है कि यहां से शायद हर रोज अंतरिक्ष के लिए फ्लाइटें रवाना होंगी। यही नहीं वैज्ञानिक, एक्सप्लोरर हमारे ग्रह के आगे और नए विकल्प तलाश रहे हैँ जिसके बाद इन सेवाओं का विस्तार संभव हो सकेगा। अंतरिक्ष पर्यटन के लिए लोगों के पहुंचाने की पुष्टि नील आर्मस्ट्रॉन्ग के साथ चांद पर कदम रखने वाले एड्विन 'बज' एल्ड्रिन का भी कहना है कि यह कोई सपना ही नहीं बल्कि हकीकत होगी कि आम लोग अंतरिक्ष में जा सकेंगे। जब 2012 के अंतरिक्ष टूरिस्ट स्पेसशिप 2 या वीएसएस एंटरप्राइज पर सवार होंगे और इसमें छह यात्रियों के लिए जगह है और इसकी टेस्टिंग इस साल मार्च में संपन्न हुई। इस अभियान के तहत शुक्रवार को ही आकाशगंगा मिल्की वे-पृथ्वी का घर विमान ने रनवे से टेक आॅफ किया और काफी देर तक आसमानों की ऊंचाईयों में घूमता रहा। कंपनी की माने तो स्पेसशिप करीब 18 मीटर लंबी है। शून्य गुरुत्व का आभास कर रहे अंतरिक्ष यात्री आराम से इसके कैबिन में तैर सकेंगा। उड़ान भर रहा स्पेसशिप का 'मदर शिप' वाइट नाइट 2 या ईव, स्पेसशिप को 50 हजार फीट की ऊंचाई तक ले जाएगा और उसे वहां छोड़ देगा। स्पेसशिप 2 अपना रॉकेट फायर करेगा और रॉकेट के दम पर अंतरिक्ष पहुंच जाएगा। बाहर पहुंचकर स्पेसशिप में बैठे यात्री पृथ्वी को विमान की गोलाकार खिड़कियों यानी पोर्टहोल से देख सकेंगे। बताया जा रहा है कि अपने सीटबेल्ट उतार कर आराम से शिप में तैर भी सकेंगे। ब्रैंसन का तो यहां तक कहना है कि इस वक्त स्पेसशिप को सबआर्बिटल ही रखा गया है, यानी स्पेसशिप को इस तरह लांच किया जाएगा कि वह पृथ्वी के चारों तरफ एक पूरा चक्कर न काट सके। कुछ समय बाद पृथ्वी के चक्कर काटने वाले शिप्स भी बनाए जा सकेंगे। यही नहीं अंतरिक्ष में होटल भी बनाए जा चुके हैं जिनकी बुकिंग गैलेक्टिक ने वर्ष 2005 से ही शुरू कर दी थी। एक टिकट का दाम है लगभग दो लाख डॉलर यानी करीब 80 लाख रुपये होगा, लेकिन इस दर पर भी 380 से ज्यादा लोग अंतरिक्ष की यात्रा करने को तैयार हैं। अंतरिक्ष का अनुभव रखने वाले महानुभावों के अलावा 2012 में जा रहे कुछ यात्री भी रनवे के उद्घाटन के समय मौजूद रहे। अगर अंतरिक्ष जाने के लिए महंगी टिकट आम आदमी को खटकती है, तो इसमें कोई चिंता वाली बात नहीं है। पृथ्वी पर रहकर भी तेज रफ्तार के मजे लिए जा सकते हैं। वर्जिन एक ऐसे तकनीक पर काम कर रहा है जिससे कुछ सालों में पृथ्वी पर ही एक जगह से दूसरे जगह तक और कम समय में पहुंचा जा सके।

गरीबों को सस्ते अनाज का प्रस्ताव

खाद्य सुरक्षा विधेयक संसद में पेश होने को तैयार!
तीन रुपये में चावल व दो रुपए में गेंहू
ओ.पी. पाल
आखिर राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की बैठक में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक को अंतिम रूप दे ही दिया गया है, जिसमें देश की 72 फीसदी आबादी को शामिल करके इस प्रस्ताव को मंजूरी दी गई कि अगले साल से इस कानून के जरिए देश के गरीब परिवारों को तीन रुपये में चावल और दो रुपये में गेंहू मुहैया कराया जाए। वहीं इस कानून के तहत सार्वजनिक वितरण प्रणाली में आमूल-चूल परिवर्तन किया जाएगा।
श्रीमती सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की बैठक में शनिवार को बहुचर्चित खाद्य सुरक्षा विधेयक को अंतिम रुप दिया गया। इस दौरान प्रत्येक बीपीएल परिवार को हर माह 25 किग्रा के बजाए 35 किलोग्राम अनाज यानी चावल तीन रुपए किलो, गेहूं दो रुपए किलो और बाजरा एक रुपए किलो के हिसाब से देने की सिफारिश की गई है। यही नहीं गैर-बीपीएल परिवार को प्रत्येक महीने 20 किलो अनाज न्यूनतम समर्थन मूल्य की आधी कीमत पर देने का प्रस्ताव किया गया है। सूत्रों ने बताया है कि विधेयक के प्रस्तावों में आम जनता को महंगाई से राहत दिलाने के लिए सरकार ने इस विधेयक को तैयार किया है और मंत्रिमंडल द्वारा राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की सिफारिशों को मंजूर करने के बाद यह विधेयक संसद में पेश किया जाएगा। यह भी माना जा रहा है कि केंद्रीय कैबिनेट में मंजूरी के बाद इस विधेयक को आगामी शीतकालीन सत्र में पेश कर दिया जाएगा। इसके बाद इस कानून को अगले साल लागू कर दिया जाएगा यह भी जानकारी मिली है कि सरकार अभी 56 हजार 700 करोड़ रुपए की सब्सिडी खाद अनाजों पर दे रही है। पहले चरण में 15137 करोड़ रुपये की अतिरिक्त सब्सिडी तथा अंतिम चरण में 15137 करोड रुपये की अतिरिक्त सब्सिडी देगी यानी कुल मिलाकर 38 हजार करोड रुपये की अतिरिक्त सब्सिडी सरकार देगी और कुल चार करोड 90 लाख टन अतिरिक्त अनाज दिया जाएगा। बताया गया है कि पहले चरण में 85 प्रतिशत ग्रामीण आवादी तथा अंतिम चरण में 90 प्रतिशत ग्रामीण आबादी इस योजना से लाभान्वित होगी। जबकि पहले चरण में 40 प्रतिशत शहरी आवादी तथा अंतिम चरण में शहरी 50 प्रतिशत आवादी लाभान्वित होगी। इस कानून को लागू करने से पहले बीपीएल परिवारों की सूची को संशोधित करके पात्र गरीबों को शामिल करके गैर-पात्रों को सूची से निकाला जाएगा। एक आंकडे के अनुसार पूरे देश में 8 करोड से ज्यादा बीपीएल परिवार है जबकि वास्तविकता में 13 करोड से अधिक लोगों के पास बीपीएल कार्ड है। सरकार बीपीएल परिवारों की पात्रता का आकलन करने के लिए तेंदुलकर समिति की भी मदद लेगी। राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की बैठक में खाद्य सुरक्षा विधेयक को अंतिम रुप देते हुए नीतिगत प्रावधान किए गए हैं। इस बैठक में योजना आयोग के सदस्य प्रो. नरेन्द्र जाधव के अलावा प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक एवं सांसद प्रो. एमएस स्वामीनाथन, सांसद रामदयाल मुंडा, ज्यां व्रेज, अरुणा राय, माधव गाडगिल, एनसी सक्सेना, दीप जोशी, फराह नकवी, हर्ष मांडर, माधव गाडगिल तथा प्रमोद टंडन ने भाग लिया।
मिड-डे-मील भी होगा सस्ता
योजना आयोग के सदस्य प्रो. नरेन्द्र जाधव के अनुसार सलाहकार परिषद ने इस कानून से बच्चों तथा गर्भवती महिलाओं तथा प्रसूता महिलाओं एवं मिड डे स्कूल के बच्चों तथा अनाज एवं कमजोर वंचित ग्रुप के लोगों को भी कानूनी रुप से अनाज सस्ते दर पर पाने का अधिकार मिल जाएगा। जाधव ने बताया कि बैठक में सार्वजनिक प्रणाली को चुस्त-दुरुस्त बनाने का भी निर्णय लिया गया है। इस के तहत अनाज को भंडारण तथा खरीद को विकेंद्रीकृत किया जाएगा। राशन की दुकानों की शाखाओं के निजीकरण को खत्म किया जाएगा एवं पीडीपएस कमिशनों की समीक्षा की जाएगी तथा पीडीएस का कम्प्यूटीकरण किया जाएगा एवं सभी दस्तावेजों में पूरी पारदर्शिता लाई जाएगी एवं स्मार्ट कार्ड तथा बायोमेट्रिक प्रणाली भी लागू की जाएगी। उन्होंने बताया कि विधेयक के मसौदे को अंतिम रुप सलाहकार परिषद का वर्किंग ग्रुप करेगा। उन्होंने बताया कि बैठक में सर पर मैला ढोने की शर्मनाक प्रथा को ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक खत्म करने के लिए केन्द्र को भी राज्यों में समन्वय करने को कहा गया है। उन्होंने कहा कि 1993 में संसद ने मैला ढोने वाले के रोजगार एवं खुला शौच निर्माण (प्रतिबंध) कानून पारित किया था पर पिछले सतरह साल में इस कानून के तहत अभी तक किसी को दंडित नहीं किया गया। इसलिए इस कानून के क्रियान्वन की हर तीन महीने पर निगरानी की जाएगी और यह प्रथा खत्म कर दी जाएगी।

दागी प्रत्याशियों से लबरेज बिहार चुनाव

पहले तीन चरणों में हैं 379 दागी प्रत्याशी
ओ.पी. पाल
बिहार विधानसभा चुनाव में प्रथम चरण की 47 सीटों पर सम्पन्न हुए चुनाव में जिस प्रकार अपराधी प्रवृत्ति के 154 प्रत्याशियों ने अपनी किस्मत अजमाई है, वहीं दूसरे चरण के 24 अक्टूबर को होने वाले 45 सीटों तथा 28 अक्टूबर को तीसरे चरण के 48 सीटों पर चुनाव मैदान में उतरे प्रत्याशियों में भी अपराधी किस्म के प्रत्याशियों की कमी नहीं है। दूसरे और तीसरे चरण में लोजपा ऐसी इकलौती पार्टी है जिसने सर्वाधिक अपराधिक छवि वाले प्रत्याशियों को गले लगाया है, हालांकि भाजपा, जद-यू, राजद व कांग्रेस भी किसी से कम नहीं हैं। पहले तीन चरणों में ऐसे ही 379 प्रत्याशी सामने आएं हैं जिनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं।
केंद्रीय चुनाव आयोग ने इसी माह के पहले सप्ताह में सर्वदलीय नेताओं की बैठक बुलाकर राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण को रोकने जैसी कई परंपराओं पर अंकुश लगाने की कवायद की थी, जिसमें ऐसा कोई दल नहीं था जिसने आयोग की मंशा का समर्थन न किया हो। इसे देश की बिड़म्बना ही कहा जाएगा कि हरेक राजनीतिक दल राजनीति को अपराधीकरण से दूर रखने की दुहाई देते नहीं थकते, लेकिन इसके बावजूद बिहार विधानसभा के प्रथम चरण की तरह दूसरे और तीसरे चरण में भी आपराधिक छवि वाले प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारने में किसी भी राजनीतिक दल ने परहेज नहीं किया और संगीन अपराध करने वाले प्रत्याशियों को भी अपनी गोद में बैठाने का काम किया है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफोर्म्स और नेशनल इलेक्शन वॉच द्वारा चलाए जा रहे अभियान में जो तथ्य सामने आए हैं वह बिहार विधानसभा चुनाव के प्रत्याशियों की छवि को देखते हुए राजनीतिक दल अपराधियों को किस प्रकार से चुनाव मैदान में उतारने की तरजीह देते हैं उसकी भी पोल खोलते हैं। दूसरे व तीसरे चरण के चुनाव के लिए नामांकन दाखिल के समय अपनी आपराधिक छवि को प्रत्याशियों ने शपथपत्र के जरिए उजागर किया है। नेशनल इलेक्शन वॉच एवं एडीआर के राष्ट्रीय समन्वयक अनिल बैरवाल द्वारा प्रत्याशियों द्वारा दाखिल शपथपत्रों के आधार पर प्रस्तुत की गई बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे और तीसरे चरण की एक रिपोर्ट में 503 प्रत्याशियों में से 219 प्रत्याशियों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैँ, जिनमें 129 प्रत्याशियों के खिलाफ हत्या और हत्या के प्रयास जैसे संगीन मामले दर्ज हैं। इन दोनों चरणों में यानि 93 सीटों पर चुनाव लड़ रहे 1410 उम्मीदवारों में जिन 503 ने शपथ पत्र दाखिल किये हैं में से सर्वाधिक 71 प्रतिशत लोजपा, 69 प्रतिशत भाजपा, 66 प्रतिशत जद-यू, 63 प्रतिशत राजद, 38 प्रतिशत बसपा तथा 31 प्रतिशत कांग्रेस ने ऐसे प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारा है जिनके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैँ। दोनों चरणों में दलों के अनुसार देखा जाए तो लोजपा के 21 में 15, भाजपा के 35 में 24, जद-यू के 50 में 33, राजद के 63 में 40, बसपा के 77 में 29 तथा कांग्रेस के 80 में 25 प्रत्याशी आपराधिक छवि से लबरेज हैँ। जहां तक संगीन अपराधों में लिप्त प्रत्याशियों का सवाल है उसमें लोजपा के सात, भाजपा के 14, जद-यू के 22, राजद के 20, बसपा के 19 व कांग्रेस के 12 प्रत्याशी शामिल हैें। इसके विपरीत पहले चरण के चुनाव में ऐसे ही 154 प्रत्याशी चुनाव मैदान में अपनी किस्मत आजमा चुके हैँ और उनके भाग्य ईवीएम में बंद हो चुके हैँ। पहले चरण में तो तीन प्रत्याशियों के खिलाफ बलात्कार जैसे संगीन अपराध भी सामने आए हैं। अभी तक तीनों चरणों के चुनाव के लिए खड़े प्रत्याशियों पर नजर डालें तो शपथपत्र में खुलासा करने वाले 962 प्रत्याशियों में 379 प्रत्याशियों के सिर पर आपराधिक मामले दर्ज हैँ।

भ्रष्ट देशों में तीन पायदान चढ़ा भारत

राष्ट्रमंडल खेलों ने की छवि खराब
ओ.पी. पाल
दुनिया में सोमालिया लगातार सबसे बड़ा भ्रष्ट देश बना हुआ है, जिसके बाद अफगानिस्तान व इराक जैसे देश आते हैं। पाकिस्तान भी लगातार इसी रफ्तार से भ्रष्टाचार देश की सूची में ऊपर आ चुका है, लेकिन राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारी में जिस प्रकार का घोटाला हुआ है उससे भारत पीछे जाने के बजाए ऊपर आया है।
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल लगातार भ्रष्ट देशों की रैंकिंग तैयार करने के लिए सर्वेक्षण करता रहा है, जिसमें उसके ताजे सर्वेक्षण में अभी भी सोमालिया लगातार दुनिया का सबसे भ्रष्ट देश बना हुआ है, लेकिन राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों ने देश की छवि को दुनिया में खराब किया है इसे इंकार नहीं किया जा सकता। हालांकि सोमालिया के बाद भ्रष्ट देशों में अफगानिस्तान और इराक जैसे देशों के नाम आते आते ह। बर्लिन स्थित गैर सरकारी संगठन ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के ताजा सर्वे के के अनुसार भारत में भी एक साल पहले की तुलना में भ्रष्टाचार में इजाफा हुआ है। इस संगठन द्वारा कराए गये ताजा सर्वे के नतीजों पर नजर डालें तो दुनिया में भ्रष्टाचार की गंभीर समस्या को इंगित करते हैँ। इस भ्रष्टाचार जैसे कैंसर से बहुत से गरीब और जरूरतमंद लोगों को ज्यादा परेशानी झेलनी पड़ रही है। संगठन के नतीजे तो यही कहते हैँ कि भ्रष्टाचार की समूची अंतर्राष्ट्रीय स्थिति बेहद की चिंताजनक है। भ्रष्ट देशों की सूची देखें तो सोमालिया के बाद अफगानिस्तान व म्यांमार दूसरे स्थान पर रखा गया है, जबकि इराक सबसे भ्रष्ट देशों में चौथे नंबर पर है। इस सर्वेक्षण के अनुसार जो किसी देश के अस्थिर होने की दर भ्रष्टाचार के ग्राफ को बढ़ाती रही है। ऐसे में विश्व समुदाय पर इस बात की जिम्मेदारी आती है कि वह तथाकथित विफल राष्ट्रों में भरोसेमंद सरकारी ढांचा तैयार करने में मदद करें। दूसरी तरफ डेनमार्क, न्यूजीलैंड और सिंगापुर में सबसे कम भ्रष्टाचार दर्शाया गया है। इनके बाद फिनलैंड, स्वीडन, कनाडा और नीदरलैंड्स का नंबर आता है। जबकि चिली, इक्वाडोर, मेसेडोनिया, कुवैत और कतर को अलग से ऐसे देशों में रखा गया है जिसमें भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रही मुहिम में कामयाबी मिली है। सबसे कम भ्रष्टाचार के मामले में अमेरिका को 178 देशों में 22वें पायदान पर रखा गया है जबकि चीन व ग्रीस 78वें और इटली 67वें स्थान पर आते हैं। इस सर्वेक्षण में भारत में भ्रष्टाचार की स्थिति एक साल पहले के मुकाबले और गंभीर हुई है। जहां पिछले साल भारत 84वें स्थान पर था, वहीं इस साल तीन पायदान खिसक कर 81वें स्थान पर आ गया है, यदि ईमानदारी की दर देखें तो इसे 3.3 अंक के साथ 87वां स्थान भी कहा जा सकता है। इसमें चीन 78वें स्थान पर यानी भारत से बेहतर स्थिति में है। हालांकि पाकिस्तान पिछले साल के मुकाबले कहीं ज्यादा खिसकते हुए 42वें स्थान से आठ पायदान ऊपर चढ़कर 34वें स्थान पर पहुंच गया है। सर्वेक्षण के मुताबिक भ्रष्टाचार के कारण बदनाम हुए राष्ट्रमंडल खेलों का असर देश की छवि पर भी पड़ा है। यह सच है कि ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की सूची में राष्ट्रमंडल खेलों में भ्रष्टाचार की रिपोटों का असर देश में भ्रष्टाचार को लेकर आम धारणा पर पड़ा है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया के अध्यक्ष पीएस बावा का कहना है कि भारत के ईमानदारी अंक तथा पायदान दोनों घटे हैं जो खेदजनक व चिंताजनक है। ऐसा लगता है कि दक्ष प्रशासकों के बावजूद भारत में प्रशासन का स्तर नहीं सुधरा है। गौरतलब है कि यह इंडेक्स शून्य से 10 अंक के आधार पर निर्भर करता है और इसमें भ्रष्टाचार तथा भ्रष्ट गतिविधियों पर नियंत्रण की सरकार की क्षमता को ध्यान में रखा जाता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली में हाल ही में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में व्यापक भ्रष्टाचार की रिपोटों का नकारात्मक असर देश की छवि पर पड़ा है। यह भी सनद है कि केंद्रीय सतर्कता आयोग, प्रवर्तन निदेशालय, आयकर विभाग तथा कैग सहित अनेक संस्थाएं इन खेलों में भ्रष्टाचार की जांच में जुटी हैं।

ओलंपिक से महंगे दिल्ली राष्ट्रमंडल खेल

ओ.पी. पाल
भारत की मेजबानी में हुए 19वें राष्ट्रमंडल खेलों की दुनियाभर में तारीफ हुई, लेकिन तमाम परेशानियों और विवादों से घिरे दिल्ली राष्ट्रमंडल खेल अभी तक के अंतर्राष्ट्रीय खेलों यहां तक कि ओलंपिक खेलों से भी महंगे साबित हुए हैँ।
दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में आए खर्चे के सामने ओलंपिक खेलों के आयोजन भी फीके पड़ गये हैं। यदि वर्ष 2008 के बीजिंग ओलंपिक खेलों के आयोजन हेतु की गई तैयारियों के तहत एक दर्जन से अधिक भवनों, आठ अस्थाई खेल स्थलों और खेलगांव के निर्माण में 280 अरब रुपये के बराबर धनराशि खर्च हुई थी। इसके अंतर्गत ग्यारह स्टेडियमों का आधुनिकीकरण भी हुआ था। जहां तक सन 2012 के लंदन ओलंपिक खेलों का सवाल है, तो 31 स्थलों के निर्माण के लिए लगभग 350 अरब रुपये के बराबर खर्च की योजना है और दिल्ली के राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन के लिए 700 अरब रुपए खर्च किए गए। इस धनराशि से खेलगांव, त्यागराज स्टेडियम और इंदिरा गांधी स्टेडियम जैसे स्थलों के निर्माण के अलावा एक नया एयरपोर्ट टर्मिनल भी बनाया गया। इसके अलावा दिल्ली में अनेक भवनों, सड़कों और फ्लाइओवरों का निर्माण भी इसमें शामिल है। जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम और मेजर ध्यानचंद स्टेडियम जैसे पुराने स्टेडियमों को भी नया रूप दिया गया। सिर्फ जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम के आधुनिकीकरण में ही करीब दस अरब रुपए खर्च कर दिये गये। ये निर्माण खेल के बाद भी किसी हद तक काम आएंगे। लेकिन यह सभी जानते हैं कि इतनी लागत से दिल्ली या शायद दूसरे स्थानों में भी कहीं संगत ढंग से विकासोन्मुख निर्माण हो सकता था। वहीं इस तैयारी में हुए कथित घोटाले में लगभग 80 अरब रुपए की धांधली सामने आई है जिसकी जांच चल रही है। इसी जांच के तहत भारतीय एजेंसियों के साथ मिल काम करने वाली दुबई की कंपनी एमार प्रोपर्टीज पर राष्टÑमंडल खेलगांव के निर्माण में देरी और कमियों को लिए जुमार्ना लगाने का भी निर्णय लिया गया है जिसके लिए डीडीए जुमार्ना की राशि को तय किया रहा है। दिल्ली राष्टÑमंडल खेलों के लिए 63.5 हेक्टेयर में 23 करोड़ डॉलर की लागत से बनने वाले खेलगांव के लचर निर्माण और महीनों की देरी के लिए खूब आलोचना हुई। एमार और भारत के एमजीएफ डिवलेपर्स को कॉन्ट्रैक्ट देने वाले दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) की प्रवक्ता के मुताबिक दुबई की कंपनी पर जुमार्ना लगाया जाएगा, जिसका निर्धारण अभी किया जा रहा है।

भारत की सफलता से जलता है आस्ट्रेलिया?

क्रिकेट की हार से मचाया उत्पात
ओ.पी. पाल
देश में बेहद सफल रहे राष्ट्रमंडल खेलों को लेकर दुनियाभर में भारत की तारीफ हो रही है। यहां तक कि विदेशी मीडिया खासकर आस्ट्रेलियाई अखबारों ने भी इस सफलता के लिए भारत के लिए कसीदे पढ़े, लेकिन भारत अये आस्ट्रेलियाई दल को शायद क्रिकेट में भारत के हाथों पोंटिंग एंड पार्टी को क्लीन स्वीप होना बर्दाश्त नहीं हुआ और उन्होंने खेल गांव में जमकर उत्पात मचाते हुए तोड़फोड़ तक कर ड़ाली। इसी जुनून में हॉकी के फाइनल में आस्ट्रेलियाई टीम स्वर्ण पदक तो झटक ले गई, लेकिन भारत की सफलता आस्ट्रेलिया को हजम नहीं होती इसका जीता जागता सबूत छोड़ गई है।
दरअसल खेल जगत में आस्ट्रेलिया दुनिया पर बादशाहत करना चाहता है, जिसके कारण बंगलूरू क्रिकेट टेस्ट मैच में भारत के हाथों पोंटिंग की अगुवाई वाली आस्ट्रेलियाई टीम की हार को राष्ट्रमंडल खेलों में हिस्सा लेने आये आस्ट्रेलियाई खिलाड़ी बर्दाश्त नहीं कर सके, क्योंकि भारत ने दो टेस्ट मैचों की श्रृंखला में आस्ट्रेलिया को क्लीन स्वीप कर दिया था। जैसे ही महेन्द्र सिंह धोनी की टीम ने इतिहास में पहली बार आस्ट्रेलियाई टीम को क्लीन स्वीप किया तो खेल गांव में ठहरे आस्ट्रेलियाई दल ने अपनी पूरी प्राकाष्ठा लांघ दी और उसे आस्ट्रेलिया क्रिकेट टीम की खस्ता हालत बर्दाश्त नहीं हुई। इसी बौखलाहट का अंजाम यह हुआ कि आस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों ने खेल गांव में हुड़दंग मचाते हुए भारतीय सम्पत्ति को काफी नुकसान पहुंचाया। बताया जा रहा है कि कुछ एथलीटों ने खेल गांव में तोड़ फोड़ करने के बाद एक वॉशिंग मशीन को आठवीं मंजिल से नीचे फेंक दिया तथा फर्नीचर तोड़ डाला। क्रिकेट में हार से बौखलाए आस्ट्रेलियाई दल ने इलेक्ट्रिक वायरिंग भी उखाड़ फेंकी। यानि इन खिलाड़ियों में क्रिकेट की हार का सदमा इस कदर था कि महानतम बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर के खिलाफ भी नारे लगाने से भी वे बाज नहीं आए। दिल्ली पुलिस के सूत्रों की माने तो उसे खेल गांव के रिहायशी इलाके से एक टूटी वॉशिंग मशीन मिली है, जिसके टूटने के कारणों का पता लगाने में वह जुटी भी हुई है। ऐसा लगता है कि राष्ट्रमंडल खेलों की सफलता और फिर क्रिकेट में भारत की ही धरती पर आस्ट्रेलिया को करारी हार कतई बर्दाश्त नहीं हुई। सूत्र तो यह भी बता रहे हैं कि भारत के साथ हॉकी फाइनल में आस्ट्रेलियाई टीम ने पूरे जुनून के साथ क्रिकेट में मिली हार का बदला चुकाने की ठान ली थी और यह जुनून भारतीय हॉकी पर हावी होता भी दिखा। खेल गांव में आस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों द्वारा की गई तोड़फोड़ और उत्पाती हंगामे की पुष्टि आस्ट्रेलियाई अखबार हेरल्ड सन के हवाले से क्रॉसव्हाइट ने भी कर दी है। इस अखबार के सूत्रों के अनुसार खेल गांव में आस्ट्रेलियाई रिहायशी इलाके की आठवीं मंजिल से एक वॉशिंग मशीन फेंकी गई। क्रॉसव्हाइट ने अन्य देशों के खिलाड़ियों पर आरोप मढ़ने का भी प्रयास किया, लेकिन इस बिल्डिंग में केवल आस्ट्रेलियाई ठहरे हुए थे, इसलिए आस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों के इस हंगामे से छुटकारा पाना नामुमकिन होगा। खेल गांव के प्रभारी लेफ्टिनेंट जनरल अशोक कपूर का कहना है कि आठवीं मंजिल से वॉशिंग मशीन फेंकने की घटना के बारे में आस्ट्रेलियाई टीम प्रबंधन ने पहले ही माफी मांग ली है, जो इस घटना की पुष्टि को और भी पुख्ता करता है। राष्ट्रमंडल खेलों की सफलता के साथ आस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों पर लगे आरोपों से जाहिर हो रहा है कि उसे भारत की सफलता रास नहीं आती चाहे वह किसी भी क्षेत्र में ही क्यों न हो। हालांकि भारत ने राष्ट्रमंडल खेलों की सफलता के सामने एक सूक्ष्म घटना माना है। विदेश मंत्री एसएम कृष्णा ने इस घटना छोटा सा मामला बताते हए कहा कि इसका हल निकाला जाना चाहिए ताकि भारत और आस्ट्रेलिया के बीच जारी मधुर संबन्धों में दरार न आए। हालांकि कृष्णा ने कहा कि दोनों देश इस मामले को आपस में सुलझा लेंगे। दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता राजन भगत का कहना है कि अभी तक इस मामले में आयोजन समिति की ओर से कोई शिकायत नहीं मिली है और ना ही कोई मामला दर्ज किया गया है। जबकि आस्ट्रेलियाई ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन ने दल प्रमुख पेरी क्रॉसव्हाइट के हवाले से कहा कि एक आस्ट्रेलियाई खिलाड़ी को अनुशासनात्मक कारणों से दिल्ली से वापस स्वदेश भेजा गया है।

संसद में नहीं, तो खेलों में सही

ओ.पी. पाल
देश में भारत महिला सशक्तिकरण पर जोर दे रही है, तो वहीं भारतीय महिलाएं लंबे अर्से से संघर्ष के बावजूद भले ही राजनीति में 33 प्रतिशत आरक्षण हासिल न कर पाई हों, लेकिन यह सत्य है कि 19वें राष्ट्रमंडल खेलों में भारतीय महिलाओं ने अपने चमकदार प्रदर्शन की बदौलत भारत के हिस्से में आए पदकों में अपनी हिस्सेदारी हासिल की है यानि भारत ने जितने पदक हासिल किये हैं उसमें एक तिहाई से भी अधिक पदक महिलाओं की उस दहाड़ का परिणाम है जिसे दुनियाभर में लंबे समय तक याद रखा जाएगा।
19वें राष्ट्रमंडल खेलों में भारत की महिला खिलाड़ियों ने यादगार प्रदर्शन करते हुए देश के लिए एक तिहाई से ज्यादा पदक जीतकर एक ऐतिहासिक लम्हा तैयार किया है। भारत ने इन खेलों के इतिहास में अब तक का अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए कुल 101 पदक हासिल किए, जिनमें महिलाओं का योगदान एक तिहाई से कहीं ज्यादा है। महिला खिलाड़ियों ने 13 स्वर्ण 11 रजत और 12 कांस्य सहित कुल 36 पदक हासिल किए हैं। पुरुष खिलाड़ियों के खाते में 25 स्वर्ण, 15 रजत और 24 कांस्य हैं तथा एक टीम रजत भी शामिल है। भारत ने खेलों के अंतिम दिन जो दो स्वर्ण पदक हासिल किए वो दोनों ही महिला बैडमिंटन खिलाड़ियों के रैकेट से निकलकर भारत की झोली गये। भारत की महिला निशानेबाजों, पहलवानों, एथलीटों, भारोत्तोलकों, बैडमिंटन और टेनिस खिलाड़ियों ने काफी उम्दा प्रदर्शन किया और यह दिखाया कि वे पुरुष खिलाड़ियों से कंधे से कंधा मिलाकर देश के लिए गौरव ला सकती हैं। एथलेटिक्स में कृष्णा पूनिया, हरवंत कौर और सीमा अंतिल ने महिला डिस्कस थ्रो में स्वर्ण, रजत और कांस्य जीत कर नया इतिहास बनाया। कृष्णा ने तो भारत को 52 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद एथलेटिक्स में स्वर्ण पदक दिलाया। मनजीत कौर, सिनी जोस, अश्विनी चिरानंदा और मनदीप कौर की चौकडी ने चार गुणा 400 मीटर रिले का स्वर्ण जीता। स्टार बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल ने खेलों के अंतिम दिन महिला एकल स्पर्धा का स्वर्ण जीता जबकि ज्वाला गुट्टा और अश्विनी पोनप्पा की जोड़ी ने महिला युगल में स्वर्ण पदक जीतकर नया इतिहास रचा। टेनिस स्टार सानिया मिर्जा से भी भारत को स्वर्ण पदक की उम्मीद थी लेकिन वह कड़ा संघर्ष करने के बावजूद महिला एकल मुकाबले में रजत पदक ही हासिल कर सकीं। देश की महिला पहलवानों ने गजब के दांव पेंच दिखाते हुए कुश्ती में एक नया इतिहास रचा और इस खेल को एक नया आयाम दे दिया। गीता ने 55 किग्रा वर्ग में, अलका तोमर ने 59 किग्रा वर्ग में और अनीता ने 67 किग्रा वर्ग में स्वर्ण जीता। महिला तीरंदाजी में दीपिका कुमारी, डोला बनर्जी और बोम्बाल्या देवी की तिकड़ी ने कमाल के निशाने साधते हुए रिकर्व टीम स्पर्धा का स्वर्ण जीता जबकि 16 वर्षीय दीपिका ने व्यक्तिगत वर्ग में स्वर्ण जीत दोहरी स्वर्णिम उपलब्धि हासिल की। महिलाओं की भारोत्तोलन की 58 किग्रा स्पर्धा में रेणु बाला चानू ने करोड़ों देशवासियों की उम्मीदों का भार अपने मजबूत कंधों पर उठाते हुए स्वर्ण पदक अपने नाम किया। निशानेबाजी में अनीसा सईद ने 25 मीटर पिस्टल व्यक्तिगत स्पर्धा और फिर राही सरनोबत के साथ टीम स्पर्धा का स्वर्ण पदक जीतकर अपना नाम इतिहास में दर्ज करा दिया। हिना सिद्धू और अन्नु राज सिंह 10 मीटर पेयर्स एयर पिस्टल स्पर्धा का स्वर्ण पदक जीता। महिला खिलाड़ियों के इस प्रदर्शन ने कई पुरुष खिलाड़ियों के प्रदर्शन को भी पीछे छोड़ दिया। गौरतलब है कि महिलाओं को संसद में 33 प्रतिशत आरक्षण अभी तक नहीं मिल पाया हो, लेकिन महिला खिलाड़ियों ने राष्ट्रमंडल खेलों की भारतीय पदक तालिका में एक तिहाई से ज्यादा की भागीदारी करके ऐतिहासिक यादगार छोड़ दी है।

राष्ट्रमंडल:इतिहास रचने में सफल रहा भारत

ओ.पी. पाल
आखिर भारत ने दुनिया को दिखा दिया है कि वह भी राष्ट्रमंडल खेलों जैसे अंतर्राष्ट्रीय आयोजन को सफल और शानदार यादगार के रूप में आयोजित करने की क्षमता रखता है। दरअसल उन्नीसवें राष्ट्रमंडल खेलों के शुरू होने से पहले तक इस आयोजन को लेकर दुनिया के सामने भारत की तस्वीर को नकारात्मक ढंग से पेश किया जा रहा था। आज जब भारत राष्ट्रमंडल खेलों में यादगार लम्हें छोड़ रहा है तो निश्चित रूप से देश की दुनियाभर में एक छवि उभरकर सामने आई है। वहीं खेलों की दृष्टि से भारत की इस छवि को संवारने में भारतीय खिलाड़ियों ने जिस प्रकार से अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है उसकी बदौलत भारत हरेक दृष्टि से एक इतिहास रचने में भी सफल रहा है।
भारत के लिए राष्ट्रमंडल खेलों के इतिहास में यह पहला मौका है कि वह अपने आपको इंग्लैंड के साथ उलटफेर करके पदक तालिका में दूसरे स्थान पर कायम रखने में सफल रहा है। भारत की बैंडमिंटन स्टार सायना नेहवाल ने जैसे ही भारत को स्वर्ण पदक दिलाने के सपने को पूरा किया तो पदक तालिका में पिछले एक दिन से तीसरे स्थान पर चल रहा भारत दूसरे स्थान पर वापसी कर गया। भारतीय स्टार साइना नेहवाल ने अपेक्षानुरूप प्रदर्शन करते हुए गुरुवार को तीन गेम तक चले संघर्षपूर्ण मुकाबले में मलेशिया की म्यू चू वोंग को पराजित करके भारत को राष्ट्रमंडल खेलों में बैडमिंटन की महिला एकल का स्वर्ण पदक दिलाया। भारत की मेजबानी में उसकी यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है। राष्ट्रमंडल खेलों के इतिहास में भारत ने कई नये अध्याय जोड़े हैं, जिसमें पहली बार वह दूसरे स्थान पर रहा, तो वहीं भारतीय खिलाड़ियों के बेजोड़ प्रदर्शन की बदौलत मैनचेस्टर में सर्वाधिक 30 स्वर्ण के रिकार्ड को सुधारकर 38 स्वर्ण पदक के साथ पदकों का शतक बनाने में कामयाब रहा। इससे पहले सर्वाधिक 69 पदक हासिल करने का रिकार्ड मैनचेस्टर राष्ट्रमंडल खेलों में था। भारत की मेजबानी में संपन्न हुए राष्ट्रमंडल खेलों से पहले इस आयोजन को लगातार दुनिया में नकारात्मक रूप से पेश किया जाता रहा है, लेकिन भारत ने हो रही आलोचनाओं और विवादों की परवाह किये बिना राष्ट्रमंडल खेलों को संपन्न करके दुनिया के सामने ओलंपिक खेलों की मेजबानी करने की क्षमता को भी प्रदर्शित किया है। 19वें राष्ट्रमंडल खेलों की पदक तालिका में 74 स्वर्ण, 55 रजत और 48 कांस्य पदकों के साथ शीर्ष पर रहे आस्ट्रेलिया के बाद भारत ने 38 स्वर्ण, 27 रजत और 36 कांस्य पदकों सहित कुल 101 पद अपनी झोली में डालकर राष्टÑमंडल खेलों के इतिहास में पहली बार दूसरा स्थान लेकर नया मुकाम हासिल किया है। इससे पहले 18 में से 14 राष्ट्रमंडल खेलों में हिस्सा लेते हुए भारत केवल दो बार चौथे स्थान पर रहा है। जहां तक राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजनों का सवाल है तो भारत ने पहली बार वर्ष 1934 के लंदन में आयोजित ब्रिटिश एम्पायर गेम्स में भाग लिया और भारत को पहला पदक राशिद अनवान ने पुरुष कुश्ती के 74 किलोग्राम वर्ग में काँस्य पदक जीतकर दिलाया था। दरअसल 1930 के हैमिल्टन राष्ट्रमंडल खेल ब्रिटिश एम्पायर गेम्स के नाम से शुरू हुए यानि 1950 तक इसी नाम से ये खेल होते रहे। जबकि वर्ष 1970 और 1974 में इस खेल का नाम ब्रिटिश कॉमनवेल्थ गेम्स रहा, लेकिन वर्ष 1978 से अब तक खेलों के इस आयोजन को राष्ट्रमंडल खेल का नाम दिया गया। भारत की राष्ट्रमंडल खेलों में इस बार जिस प्रकार से तकदीर बदली है वह कभी पहले नहीं रही। भारत ने दूसरी बार वर्ष 1938 में आस्ट्रेलिया के सिडनी शहर में आयोजित इस खेलों में हिस्सा तो लिया, लेकिन उसके हाथ एक भी पदक नहीं लग सका था। वर्ष 1942 और 1946 में द्वितीय विश्व युद्ध के कारण इसका आयोजन नहीं हो पाया, लेकिन वर्ष 1950 का राष्ट्रमंडल खेल न्यूजीलैंड के आकलैंड शहर में हुआ, लेकिन भारत उसका हिस्सेदार नहीं था। वर्ष 1954 में कनाडा के वैंकूवर शहर में आयोजित इन खेलों में भारत की पाँच स्पधार्ओं में भागीदारी तो थी लेकिन पदक से पूरी तरह खाली रहा। भारत को 1934 के बाद भारत को पदक हासिल करने के लिए 24 वर्षों का लंबा इंतजार करना पड़ा और उसे वर्ष 1958 में वेल्स के कार्डिफ शहर में दो स्वर्ण समेत तीन पदक हासिल हुए, जिनमें एक रजत पदक भी शामिल था। यही वह क्षण था जब पुरुषों की 440 गज दौड़ मिल्खा सिंह ने मात्र 46.6 सेकेंड में पूरी कर स्वर्ण पदक पर कब्जा कर लिया, लेकिन एथलेटिक्स में 52 वर्षो बाद चक्का फेंक में कृष्णा पूनिया के स्वर्ण समेत तीनों पदक भारत के नाम हुए। जबकि 1962 पर्थ राष्ट्रमंडल में भी भारत ने हिस्सा नहीं लिया था। वर्ष 1966 में जमैका के किंग्स्टन शहर में जब भारत की वापसी हुई तो वहाँ भारत ने बेहतरीन प्रदर्शन किया और 10 पदक जीतते हुए पदक तालिका में दसवें से छठे स्थान पर आ गया, जिनमें तीन स्वर्ण, चार रजत और तीन काँस्य शामिल थे। स्कॉटलैंड के एडिनबरा राष्ट्रमंडल खेल में भारत को वर्ष 1966 की तुलना में दो पदक का फायदा हुआ लेकिन पदक तालिका में छठे स्थान से आगे न बढ़ सका. यहाँ भारत को कुल 12 पदक हासिल हुए जिनमें पाँच स्वर्ण, चार रजत और तीन काँस्य पदक शामिल थे। 1970 के न्यूजीलैंड में क्राइस्टचर्च में भारत को वर्ष 1970 की तुलना में तीन पदक का फायदा तो हुआ, चार स्वर्ण समेत 15 पदक हासिल करके छठे स्थान पर ही रह गया। वर्ष 1982 में आस्ट्रेलिया के ब्रिसबेन शहर में आयोजित इस खेल में भारत की झोली में पांच स्वर्ण समेत 16 पदक आए। वर्ष 1986 में स्कॉटलैंड के एडिनबरा में भारत ने हिस्सा नहीं लिया। जबकि वर्ष 1990 में न्यूजीलैंड के आकलैंड राष्ट्रमंडल खेलों में भारत ने वर्ष 1982 के मुकाबले दोगुना पदक हासिल किए यानि इस बार भारत की झोली में 13 स्वर्ण समेत कुल 32 पदक आए। वर्ष 1994 में कनाडा के विक्टोरिया राष्ट्रमंडल खेलों भारत ने वर्ष 1990 की तुलना में आठ पदक कम हासिल किए यानि इस बार भारत की झोली में कुल 11 स्वर्ण समेत 24 पदक ही आए, लेकिन लगातार पाँच बार छठे स्थान से ऊपर उठकर पांचवे पायदान पर आने में सफल रहा। वर्ष 1998 में मलेशिया की राजधानी कुआलालम्पुर राष्ट्रमंडल खेलों भारत ने सात स्वर्ण समेत 25 पदक लिये। वर्ष 2002 में इंग्लैंड के मैनचेस्टर राष्ट्रमंडल खेलों में इतिहास बनाते हुए 30 स्वर्ण पदक समेत 69 पदक झोली में डालने के बाद भारत पांचवे पायदान पर आ गया। जबकि 18वें और वर्ष 2006 के मेलबर्न राष्ट्रमंडल खेलों भारत को वर्ष 2002 की तुलना में 20 पदक कम मिले और भारत को 22 स्वर्ण समेत कुल 49 पदक हासिल करने के बाद अपनी धरती पर सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन की बदौलत इतिहास ही रच दिया।

महिलाओं ने रचा नया इतिहास

ओ.पी. पाल
उन्नीसवें राष्ट्रमंडल खेलों की मेजबानी भारतीय खिलाड़ियों को काफी रास आ रही है, जिसमें राष्ट्रमंडल के इतिहास के साथ भारतीय खिलाड़ियों ने भी इतिहास रचने का सिलसिला आगे बढ़ाया। खासतौर पर एथलेटिक्स में भारत ने फिर से अपना सिक्का जमाया, जिसमें महिला एथलेटिक्स ने कहीं ज्यादा शानदार प्रदर्शन करके इतिहास रचने का काम किया है। राष्ट्रमंडल खेलों के इतिहास में यह पहला अवसर है कि एथेलेटिक्स में भारत के हिस्से में दस या उससे ज्याद पदक आये हैं। महिलाओं एथलेटिक्स कृष्णा पूनिया और रिले टीम ने तो इस राष्ट्रमंडल खेलों में एथलेटिक्स में नए अध्याय जोड़े हैं।
देखा जाए तो भारत उड़नपरी पीटी ऊषा ने 1986 में सोल एशियाई खेलों से एथलेटिक्स में भारत को जिस वूमैन पावर को उजागर किया था उसे भारतीय महिला खिलाड़ियों ने नया मुकाम देने का काम किया है, जिसमें एथलेटिक्स में एक नई जान फूंकने का काम किया गया है। दरअसल पीटी ऊषा के संन्यास लेने के बाद ओलंपिक से लेकर राष्ट्रमंडल खेलों तक भारत को एथलेटिक्स में इतना कमजोर माना जाने लगा था कि अपने जमाने के दिग्गज धावक मिल्खा सिंह ने खेलों के दौरान एक विवादास्पद बयान भी दे दिया कि भारत एथलेटिक्स में एक भी पदक नहीं जीत पाएगा, लेकिन भारतीय महिलाओं ने उड़न सिख के इस दावे को खोखला साबित करने के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करके एथेलेटिक्स में पदकों की संख्या को पहली बार दहाई के अंक में पहुंचाने में अपनी भूमिका निभाई। भारत की कृष्णा पूनिया ने महिलाओं की चक्का फेंक में स्वर्ण पदक जीता, जो भारत का राष्ट्रमंडल खेलों की एथलेटिक्स में 52 साल बाद सोने का पहला तमगा था। इस स्पर्धा में रजत और कांस्य भी भारतीय महिलाओं के हिस्से में आए, जिसमें हरवंत कौर ने रजत और सीमा अंतिल ने कांस्य पदक जीतकर इतिहास रच दिया। चक्का फेंक की इस सफलता के बाद चार गुणा 400 की रिले दौड में मनजीत कौर, सिनी जोस, अश्विनी चिदानंदा अकुंज और मनदीप कौर ने स्वर्ण पदक जीतकर भारतीय एथलेटिक्स का झंडा बुलंद किया। भारत की इस स्वर्णिम सफलता पर मिल्खा सिंह को अपने बयान पर पछतावा हुआ होगा, तभी उन्होंने कहा कि भारतीय लडकियों ने एथलेटिक्स को एक नई राह दिखाई है। इसके अलावा भारत ने तीन रजत और सात कांस्य पदक सहित कुल 12 पदक हासिल किए जो एक नया रिकार्ड है। भारत को जो तीन रजत पदक मिले, उनमें से दो महिला खिलाड़ियों ने हासिल किए। हरवंत ने यदि चक्का फेंक में दूसरा स्थान हासिल किया तो प्रजूषा मल्लिकल ने महिलाओं की लंबी कूद में रजत पदक हासिल किया। जबकि महिलाओं ने तीन कांस्य पदक (कविता राउत ने दस हजार मीटर) सीमा अंतिल और चार गुणा 100 मीटर रिले टीम)भी जीते। इस तरह से महिला एथलीटों ने कुल सात पदक हासिल करके भारतीय महिलाओं की क्षमता को प्रदर्शित किया है, जो भारत के लिए भविष्य की राह तय करता है। इन राष्ट्रमंडल खेलों में महिलाओं ने यदि परचम लहराया तो पुरुष एथलीट में हरमिंदर सिंह ने 20 किमी पैदल चाल में भारत को पहला पदक दिलाया, जबकि विकास गौड़ा ने चक्का फेंक में रजत पदक हासिल किया तो रंजीत माहेश्वरी (त्रिकूद), काशीनाथ नाइक (भाला फेंक) और चार गुणा 100 मीटर रिले टीम ने कांसे का तमगा हासिल किया। इस प्रकार पुरुष के हिस्से में आए पांच पदक भी भारत में एथलेटिक्स के उज्जवल भविष्य को दर्शाते हैं।

समरेश की पिस्टल को जंग?

ओ.पी. पाल
भारतीय स्टार निशानेबाज समरेश जंग 19वें राष्ट्रमंडल खेलों में उस उम्मीद पर खरे नहीं उतरे, जिसकी भारत को उम्मीद थी। जबकि मेलबोर्न राष्ट्रमंडल में अपने नाम पांच स्वर्ण पदक करने वाले समरेश को 'सर्वश्रेष्ठ एथलीट' का सम्मान भी मिला था, जिसके वे भारत की ओर से पहले ऐसे खिलाड़ी बनें जिन्हें इस सम्मान से नवाजा गया। इसके बावजूद अपनी ही सरजमीं पर हो रहे राष्ट्रमंडल खेलों में उनका प्रदर्शन निराशा जनक रहा और उन्हें कांस्य पदक से ही संतोष करना पड़ा है। हालांकि इन खेलों में समरेश ऐसे अकेले ही स्टार नहीं जो अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने से चूके हैं, लेकिन उनकी उपलब्धियों के आधार पर भारत को उनसे काफी उम्मीदें थी।
दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलो में भारतीय निशानेबाजों के दल में गगन नारंग एक बड़े स्टार के रूप में उभरकर सामने आएं हैं जिन्होंने अपने ही रिकार्ड ध्वस्त किये हैं। इसके विपरीत भारतीय निशानेबाजों में सबसे ज्यादा उम्मीदें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्टार बनकर उभरे समरेश जंग पर लगी थी, लेकिन यहां उनका प्रदर्शन लुप्त होता नजर आया। राष्ट्रमंडल खेलों के दसवें दिन यानि बुधवार को समरेश जंग निशानेबाजी प्रतियोगिता की 25 मीटर स्टैंडर्ड पिस्टल स्पर्धा में कांस्य पदक हथिया सके। हालांकि उन्होंने मंगलवार को इस स्पर्धा के युगल वर्ग में चंद्रशेखर कुमार चौधरी के साथ मिलकर रजत जीता था। लेकिन एकल मुकाबले में कांस्य पदक पर ही उन्हें संतोष करना पड़ा। देशवासियों को इन खेलों में निराश कर चुके निशानेबाज समरेश जंग की पिछली उपलब्धि कोई सामान्य नहीं हैं, जिन्होंने सिंगापुर के गेयबिन में 570 अंकों के साथ स्वर्ण पदक जीता था। भारत की मेजबानी में हो रहे राष्ट्रमंडल खेलों में निशानेबाजी स्पर्धा में भारत को अपने स्टार से सबसे ज्यादा प्रदर्शन की उम्मीद थी, जो राष्ट्रमंडल खेलों के ब्रांड अम्बेसडर भी थे, लेकिन उनके भाग्य ने साथ नहीं दिया। जहां तक समरेश जंग की निशानेबाजी में मेलबोर्न राष्ट्रमंडल खेलों की उपलब्धियों का सवाल है उसमें उन्होंने पुरुषों की 50 मीटर पिस्टल, 10 मीटर एयर पिस्टल, 25 मीटर पिस्टल, 10 मीटर पिस्टल तथा 25 मीटर स्टैंडर्ड पिस्टल प्रतियोगिता में भारत को स्वर्ण पदक दिलाए थे। मेलबोर्न में उनके प्रदर्शन से अन्य देश हैरत में पड गये थे, जिन्होंने पुरुषों की 50 मीटर पिस्टल में रजत और 25 मीटर पिस्टल स्पर्धा में कांस्य पदक भी अपने नाम किया था। जबकि इससे पूर्व समरेश जंग ने मेनचेस्टर राष्ट्रमंडल खेल-2002 में 50 मीटर पिस्टल और 25 मीटर पिस्टल स्पर्धा मे दो स्वर्ण जीते। वहीं इन खेलों में उन्होंने तीन रजत पदक भी हासिल किए थे। इन्हीं उपलब्धियों के आधार पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक स्टार निशानेबाज के रूप में उभरे समरेश जंग की पिस्टल में जंग कैसे लग गया इस बात को लेकर भारतीयों को आश्चर्य में पड़ने को मजबूर होना पड़ रहा है। सत्तर के दशक में जन्मे समरेश जंग केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल में इंस्पेक्टर के पद पर तैनात है। चीन में आयोजित बीजिंग ओलंपिक को छोड़ दें तो राष्ट्रमंडल खेलों में समरेश जंग का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा है। दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों से पूर्व स्वयं समरेश जंग भारत की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए अपनी मेहनत का गुनगान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी और वे मानते रहे कि घरेलू दर्शकों का उन पर बेहतर प्रदर्शन करने का दबाव जरूर रहेगा। इसके विपरीत इन राष्ट्रमंडल खेलों में स्टार निशानेबाज समरेश जंग ने घरेलू दर्शकों को ऐसा निराश किया कि पिछले दो राष्टÑमंडल खेलों में हीरो बनकर उभरे समरेश यहां एक तरह से जीरो साबित हुए जैसे उनकी पिस्टल को जंग लग गया हो। हालांकि इन खेलों में समरेश अकेले नहीं हैं उनकी तरह कई अन्य अंतर्राष्ट्रीय सितारे बनकर उभरे भारतीय खिलाड़ी अपनी स्पर्धाओं निराशाजनक प्रदर्शन कर चुके हैं, लेकिन भारत का सिर ऊंचा करने में कई छुपे रूस्तम भारतीय खिलाड़ियों ने बेजोड़ प्रदर्शन कर इतिहास बनाकर इनकी कमियों को पर्दे के पीछे धकेलने का काम किया है।

मेजबान देशों ने हमेशा ही बटोरे पदक

ओ.पी. पाल
उन्नीसवें राष्ट्रमंडल खेलों में मेजबान खिलाड़ियों के बेजोड़ प्रदर्शन से भारत ने पिछले सभी रिकार्ड तोड़ दिये हैं और पदकों के लिहाज से भी भारत के लिए यह पहला मौका है जो सर्वाधिक स्वर्ण पदक लेकर पदक तालिका में शीर्ष पर चल रही आस्टेÑलिया के बाद दूसरे स्थान पर है। इससे पहले राष्टÑमंडल खेलों में भारत कभी चौथे स्थान से ऊपर नहीं पहुंच पाया था। राष्ट्रमंडल खेलो का इतिहास भी गवाह है कि मेजबान देशों के खिलाड़ियों ने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन की बदौलत भरपूर पदक बटोरे हैँ। राष्ट्रमंडल के इतिहास में स्वर्ण पदक हासिल करने के आधार पर न्यूजीलैंड को पछाडकर भारत ने चौथा स्थान भी बना लिया है।
दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों में मंगलवार को नौवें दिन तक की स्पर्धाओं में भारत के लिए सबसे अच्छी खबर यह रही कि उसने राष्ट्रमंडल खेलों में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करके पदकों की तालिका में भी दूसरा स्थान पर कायम रखा है और पदकों के लिहाज से पिछले सभी रिकार्ड तोड़ दिये हैँ। जहां तक पदक तालिका में मेजबान भारत का दूसरा स्थान पाने का सवाल है वह भी पहला मौका है कि आस्ट्रेलिया के बाद वह अपना दबदबा बनाये हुए है। भारतीय खिलाड़ियों का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 2002 के मैनचेस्टर राष्ट्रमंडल खेलों में रहा जिसमें 30 स्वर्ण पदकों के साथ कुल 69 पदक हासिल किये थे और पदक तालिका में वह चौथे स्थान पर था। हालांकि 2006 के मेलबोर्न राष्ट्रमंडल में भी पदक तालिका में अपने आपको चौथे स्थान पर कायम रखा। इसलिए कहा जा सकता है कि राष्ट्रमंडल खेलों का वह इतिहास दिल्ली में भी गवाह बना, जिसमें मेजबान देशों का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन देखने को मिलता है। भारत की मेजबानी के कारण कम से कम भारत को अपने प्रदर्शन को संवारने का मौका तो मिल ही गया है। राष्ट्रमंडल खेलो से पहले भारतीय खिलाड़ियों से पदक तालिका में तीसरे स्थान की उम्मीद की जा रही थी, लेकिन इस उम्मीद से भी आगे बढ़कर भारतीय खिलाड़ियों ने बेहतरीन प्रदर्शन किया। इसके विपरीत यह दिगर बात है कि आस्ट्रेलिया और इंग्लैंड जैसे देश अपनी जमीन के अलावा विदेशों में भी दबदबा कायम रखने में सफल रहते हैं। यही कारण है कि राष्ट्रमंडल खेलों के इतिहास में 19वें राष्ट्रमंडल खेलों के नौवें दिन तक शीर्ष पर है जिसने अभी तक 707 स्वर्ण पदक समेत कुल 1851 पदक समेटे हैं। जबकि इंग्लैंड के हिस्से में आज तक 606 स्वर्ण पदक समेत 1806 पदक आये हैं। अब तक के 19 राष्टÑमंडल खेलों में तीसरे स्थान पर कनाडा रहा है जिसके हिस्से में दिल्ली में बटोरे गये 23 स्वर्ण पदक समेत 379 स्वर्ण पदक के साथ कुल 1254 पदक हैँ। जबकि 19वें राष्ट्रमंडल खेलों से पहले तक भारत 102 स्वर्ण, 97 रजत और 72 कांस्य पदकों समेत 271 पदकों के साथ पांचवें स्थान पर था, जिसने भारत की मेजबानी में हो रहे खेलों के दौरान सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन की बदौलत अपने पदकों में 31 स्वर्ण, 25 रजत व 28 कांस्य पदक अपनी झोली में डालकर न्यूजीलैंड को पछाड़ कर चौथा स्थान कायम कर लिया है और उसके आज 12 अक्टूबर 2010 तक 133 स्वर्ण, 122 रजत और 100 कांस्य पदकों समेत 355 पदक अपने नाम कर लिये हैं। जबकि चौथे स्थान से खिसक कर पांचवे स्थान पर पहुंचे न्यूजीलैंड के खाते में अभी तक 126 स्वर्ण समेत 550 पदक हो गये हैं।
उन्नीसवें राष्ट्रमंडल खेलों में पदक तालिका में चोटी पर काबिज आस्ट्रेलिया का भारत की मेजबानी के बावजूद दबदबा कायम है, जिसे पार पाना अन्य देश के लिए नामुमकिन हो चुका है। पहली बार दूसरे स्थान पर चल रहे भारत के पदक आस्ट्रेलिया के मुकाबले अभी तक आधे भी नहीं हैँ। आस्ट्रेलिया और कनाडा ने अब तक चार चार बार राष्ट्रमंडल खेलों की मेजबानी कर चुका है, जबकि इंग्लैंड और न्यूजीलैंड को दो-दो बार मेजबानी करने का मौका मिला है। हालांकि ग्रेट ब्रिटेन के अन्य शहरों में भी इन खेलों का आयोजन होता रहा है। राष्ट्रमंडल खेलों की पदक तालिका में आस्ट्रेलिया और इंग्लैंड शीर्ष स्थान के लिए हमेशा जूझते रहे हैं, लेकिन जैसे ही आस्टेÑलिया को 1938 में सिडनी राष्ट्रमंडल खेल आयोजित कराने का मौका मिला तो उसने उसका फायदा उठाया और इंग्लैंड को पछाडकर अपने को पदक तालिका में शीर्ष पर कायम किया, लेकिन उससे अगले लंदन राष्ट्रमंडल खेलों में फिर से इंग्लैंड शीर्ष पर पहुंचा, तो आस्ट्रेलिया फिर लगातार दो बार इंग्लैंड से पिछडा रहा। जैसे ही आस्ट्रेलिया को 1962 में पर्थ में इन खेल कराने का मौका मिला तो उसने इंग्लैंड जैसे कई देशों को कोसो दूर छोड़कर शीर्ष स्थान कायम किया। इसके बाद जमैका में इंग्लैंड ने आस्टेÑलिया को पीछे छोडकर फिर बाजी मारी। 1978 में कनाडा को भी पदक तालिका में शीर्ष पर आने का मौका मिला। शीर्षता को कायम रखने में चली आस्ट्रेलिया और इंग्लैंड की होड यहीं खत्म नहीं होती और आस्ट्रेलिया ने ब्रिस्बेन में मेजबानी करते हुए शीर्ष स्थान काबिज किया। मैनचेस्टर और मेलबोर्न में भी ये दोनों देश पदक तालिका में मेजबानी के बल पर अपने-अपने बादशाह रहे। भारत में हो रहे राष्ट्रमंडल खेलों में भारतीय खिलडियों के शानदार प्रदर्शन के सामने इंग्लैंड को तो उबरने का मौका नहीं मिला, लेकिन आस्ट्रेलिया ने अपना दबदबा कायम रखा। फिर भी भारत के लिए मेजबानी करने के कई फायदे हुए जिसने राष्ट्रमंडल खेलों में पदकों के रिकार्ड तोड़ने के साथ राष्ट्रमंडल में स्वर्ण पदकों के आधार पर भी अपने को पांचवे पायदान से उठकर चौथे स्थान पर छलांग लगाई है।

आखिर लग ही गया डोपिंग का दाग

ओ.पी. पाल
आखिर दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों में भी डोपिंग का दाग लग ही गया है, वहीं राष्ट्रमंडल खेलों में 100 मीटर की फर्राटा दौड में यह पहला ऐसा मौका होगा, जब स्वर्ण पदक तीसरा स्थान हासिल करने वाली धावक को मिलेगा और इस प्रकार से चौथे और पांचवे स्थान पर रही धावको को क्रमश: रजत और कांस्य पदक मिलेगा। दरअसल इन राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान सीजीएफ के 1500 डोपिंग परीक्षण के लक्ष्य में दूसरे दौर के 450 परीक्षण में नाइजीरियन महिला ओसायेगी ओलूदामोला को डोपिंग परीक्षण में पॉजीटिव पाया है यानि डोपिंग टेस्ट में फेल हो गई। यह नाइजीरियन धावक महिलाओं की फरार्टा 100 मीटर दौड़ की विजेता है जिसे तत्काल प्रभाव से अस्थायी तौर पर निलंबित कर दिया गया है।
उन्नीसवें राष्ट्रमंडल खेलों में डोपिंग का यह पहला मामला सामने आया है। इससे पहले 500 डोपिंग परीक्षण किये गये थे, जो सभी निगेटिव यानि कोई भी खिलाड़ी उसमें दोषी नहीं पया गया, लेकिन दूसरे दौर के डोपिंग परीक्षण में नाइजीरिया की महिला धावक ओसायेगी ओलूदामोला पकड़ में आ गई, जिसने 100 मीटर की फर्राटा दौड़ अपने नाम की है। अभी तक राष्ट्रमंडल खेल महासंघ ने 950 खिलाड़ियों के नमूने टैस्ट कराएं हैँ, जिनमें से 700 के परिणाम सामने आ चुके हैं और इसमें यह महिला धावक डोपिंग के डंक का शिकार हो गई। राष्ट्रमंडल खेल महासंघ (सीजीएफ) के अध्यक्ष माइकल फेनेल ने डोपिंग के मिले इस मामले के बारे में सोमवार को बताया कि नाइजीरियाई एथलीट के नमूने में प्रतिबंद्धित पदार्थ मीथाइलहेक्सानिमाइन पाया गया। हालांकि ओसायेमी ने अपने इ नमूने के टेस्ट की अपील दायर की है। फेनेल ने कहा कि इस मामले में तुरंत सुनवाई की जा रही है और सीडब्लूडी की कोर्ट इस मामले की जल्द से जल्द सुनवाई पूरी कर अपना फैसला सामने ला देगी। फेनेल ने कहा कि यह बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक खिलाड़ी डोप टेस्ट में दोषी पाई गई है। उन्होंने कहा कि डोपिंग का यह मामला अफसोसजनक है जब तक बी सैंपल की जांच के नतीजे नहीं आ जाते तब तक 24 साल की इस धावक को सस्पेंड माना जाएगा और उनका मेडल भी रोक लिया जाएगा। उनका कहना है कि प्रतियोगिता चाहे बड़ी हो या छोटी, डोपिंग में पॉजिटिव पाया जाना बहुत दुखद है इसलिए हम लोग साफ सुथरे खेलों और साफ सुथरे मुकाबले के लिए काम कर रहे हैं। नाइजीरिया की ओलुडामोला को इन राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक बहुत ही नाटकीय तरीके से मिला। रेस में पहले नंबर पर आस्ट्रेलिया की सैली पियरसन रही थीं, लेकिन गत गुरुवार को हुई इस रेस के बाद पियरसन को डिस्क्वॉलिफाइ कर दिया गया था और उसके स्थान पर स्वर्ण पदक नाइजीरियन ओलुडामोला को दिया गया। दुर्भाग्यवश अब अगर उनका बी सैंपल भी पॉजिटिव पाया जाता है तो यह स्वर्ण पदक तीसरे नंबर पर रही नताशा मायर के खाते में चला जाएगा। नाइजीरियाई टीम के प्रमुख एलियास उस्मान गोरा का कहना है कि डोपिंग के इस मामले से वह बहुत ज्यादा निराश और सदमे में हैँ, क्योंकि हम अपने खिलाड़ियों को यहां सही खेल भावना से मुकाबला करने के लिए लेकर आए हैं। यदि दूसरे टेस्ट की जांच भी पॉजिटिव पाई जाती है तो हमारे लिए यह काफी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति होगी। गोरा ने ओलुडामोला को एक अच्छी एथलीट करार देते हुए कहा कि इससे पहले ओलुडामोला का इस प्रकार का कोई रिकार्ड नहीं है।

भारत व इंग्लैंड में लगी रही होड़

ओ.पी. पाल
उन्नीसवें राष्ट्रमंडल खेलों में विभिन्न खेलों की स्पर्धाओं में सभी देशों के खिलाड़ी बेहतर प्रदर्शन करके अपने देश को पदकों की तालिका में सम्मानजनक स्थान देने का प्रयास कर रहे हैँ। इस पदक तालिका के मुकाबले में खासकर दूसरे स्थान पर बने रहने के लिए भारत और इंग्लैंड में रस्साकशी चल रही है, लेकिन भरतीय खिलाड़ियों के बेजोड़ प्रदर्शन की बदौलत अभी तक भारत दूसरे स्थान पर कायम है, जबकि शीर्ष पर चल आस्ट्रेलिया को पार पाना अब मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव ही है।
भारतीय खिलाड़ियों ने पदक हासिल करने में राष्ट्रमंडल खेलों के इतिहास में अपने पिछले सभी रिकार्ड ध्वस्त कर दिये हैं, जिनका श्रेय खिलाड़ियों के बेजोड़ प्रदर्शन का परिणाम है। राष्ट्रमंडल खलों के आठवे दिन यानि सोमवार को भी इंग्लैंड के खिलाड़ी अपने देश को पदक तालिका में भारत से आगे नहीं ले जा सके। हालांकि सोमवार को भारत के हाथ एक भी स्वर्ण पदक नहीं लग सका, लेकिन इंग्लैंड को भी स्वर्ण पदक तक नहीं जाने दिया गया। भारत 29 स्वर्ण पदकों के साथ पदक तालिका में दूसरे स्थान पर बना हुआ है, जबकि इंग्लैंड के पास 26 स्वर्ण पदक है और वह तीसरे स्थान पर है। इंग्लैंड का प्रयास है कि किसी तरह उनके खिलाड़ी बेहतर प्रदर्शन करके भारत को पछाड़कर पदक तालिका में किसी तरह दूसरे स्थान पर चला जाए, लेकिन भारतीय खिलाड़ियों के बेजोड़ प्रदर्शन के सामने इंग्लैंड की यह कोशिश अभी तक तो नाकाम है। गत शनिवार को तो इंग्लैंड एक बार पदक तालिका में आस्ट्रेलिया के बाद दूसरे स्थान पर आ गया था, लेकिन इंग्लैँड का यह सपना कुछ ही मिनटो बाद फिर उस समय चकनाचूर हो गया था, जब गोल्डन ब्वाय गगन नारंग ने राष्ट्रमंडल खेलों में अपना चौथा स्वर्ण पदक हासिल करते ही पदक तालिका में भारत को फिर से दूसरे स्थान पर विराजमान कर दिया। इसके बाद कभी एक तो कभी दो और कभी तीन स्वर्ण पदकों से इंग्लैंड पिछड़ता आ रहा है, लेकिन अभी तक भारत के मुकाबले वह दूसरे स्थान पर लाख कोशिशों के बाद भी नहीं आ पाया। रविवार को भारत ने पांच स्वर्ण, इतने ही रजत और कांस्य सहित कुल 15 पदक हासिल करके इंग्लैंड को पीछे छोड़े रखा। भारतीय पुरुष हाकी टीम ने पाकिस्तान पर 7-4 की जोरदार जीत से सेमीफाइनल में जगह बनाकर भारतीयों को पदक तालिका में पदक की उम्मीद कायम की, तो इससे पहले ही कुश्ती में सुशील कुमार ने स्वर्ण पदक जीतकर इंग्लैँड के साथ पदकों को लेकर दूसरे स्थान के लिए चल रही रस्साकशी में भारत को अव्वल ही रखा। वहीं इन खेलों में भारत राष्ट्रमंडल में पदक हासिल करने के अपने पिछले रिकार्ड भी ध्वस्त कर रहा है और अब राष्ट्रमंडल खेलों में मैनचेस्टर के 30 स्वर्ण पदक के अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन को पीछे छोड़ने के लिए केवल दो सोने के तमगे और चाहिए। मैनचेस्टर में भारोत्तोलन के प्रत्येक भार वर्ग में तीन स्वर्ण पदक दिए जाते थे, जो अब नहीं होता है। पदक तालिका में दूसरे स्थान को लेकर भारत और इंग्लैंड के बीच लगी होड़ में भारतीय खिलाड़ियों से उम्मीद है कि आने वाली स्पर्धाओं में वह अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के जरिए इंग्लैड को पदक तालिका में अपने से पीछे ही रखे, क्योंकि भारतीय खिलाड़ियों को जरा सी चूक भी इंग्लैंड को पदक तालिका में दूसरे स्थान पर ले जा सकता है, जिसके लिए उसके खिलाड़ी जीतोड़ प्रयास भी कर रहे हैं। अभी तक जहां भारत 29 स्वर्ण, 22 रजत और 24 कंस्य के साथ पदक तालिका में दूसरे स्थान पर है तो इंग्लैंड 26 स्वर्ण 46 रजत और 33 कांस्य के साथ दूसरे स्थान पर बना 61 स्वर्ण, 39 रजत और 37 कांस्य के साथ पदक तालिका में शीर्ष पर है।

कुश्ती के महानायक बने सुशील कुमार

ओ.पी. पाल
भारतीय कुश्ती के महानायक बनते जा रहे विश्व चैँपियन और ओलंपिक पदक विजेता पहलवान सुशील कुमार ने 19वें राष्ट्रमंडल खेलों में दूसरा और लगातारा चौथा खिताब अपने नाम करके यह साबित कर दिया है कि भारत ही कुश्ती का मक्का है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय कुश्ती का कोई सानी नहीं होगा।
रेलवे के अधिकारी सुशील कुमार ने हाल ही में मास्को में हुई विश्व चैंपियनशिप में 66 किलोग्राम फ्रीस्टाइल वर्ग में स्वर्ण पदक जीतकर यह उपलब्धि हासिल करने वाले पहले भारतीय बने सुशील ने कहा था कि उसके लिए 19वें राष्ट्रमंडल खेल अत्यंत महत्वपूर्ण हैं जिसमें उन्होंने यह भी दावा किया था कि इन खेलों में भारतीय पहलवान कम से कम 14 स्वर्ण पदक भारत की झोली में डालेंगे। इन खेलों में जिस प्रकार भारत के पहलवान सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर रहे हैं उससे उनका दावा उससे भी कहीं बेहतर साबित हो रहा है। वह स्वयं ऐतिहासिक प्रदर्शन करते हुए फ्रीस्टाइल कुश्ती स्पर्धा में 66 किलोग्राम वर्ग के मैच में पहले सेमीफाइनल में गाम्बिया के फमारा जार्जोउ को मात्र नौ सेकेंड में परास्त करने के बाद फाइनल में दक्षिण अफ्रीका के पहलवान को चीत करके स्वर्ण पदक हासिल किया। इस कुश्ती के गवाह यहां गवाह कांग्रेस युवराज राहुल गांधी भी बने, जिनमें पहलवान सुशील कुमार के प्रति उनकी दीवानगी बढ़ती नजर आ रही है। राष्टÑमंडल खेलों के शुरू होने से पहले ही पहलवान सुशील कुमार ने भारतीय कुश्ती के लिहाज से महत्वपूर्ण बताया था। उनका कहना है कि इतिहास भी इस बात का गवाह है कि अधिकांश पहलवानों ने एशियाई व विश्व स्तरीय स्पधार्ओं में भारत को पदक दिलाये है। उनका कहना है कि चार साल पहले मेलबोर्न राष्ट्रमंडल खेलों से कुश्ती को हटा दिया गया था, जिसके कारण वह पदक जीतने से वंचित रह गये थे, इसलिए भारत की मेजबानी में हो रहे राष्ट्रमंडल खेलों का उसे और उसके साथी पहलवानों को बेसब्री से इंतजार था। अब यह घड़ी आ गई तो इसमें वह किसी भी कीमत पर चूकना नहीं चाहते। इसी लक्ष्य का परिणाम भारतीय पहलवान देश के सामने भी दे रहे हैं। उनका कहना है कि भारतीय कुश्ती अंतर्राष्ट्रीय पर अपनी धाक बनाने में सफल होगी। सुशील कुमार ने राष्ट्रमंडल खेलों में अन्य पुरुष एवं महिला पहलवानों के शानदार प्रदर्शन को भी सराहा और कहा कि कुश्ती के बल पर भारत पदक तालिका में भी सम्मानजनक स्थिति में है। जहां तक कुश्ती के महानायक सुशील कुमार की उपलब्धियों का सवाल है उसमें उनका कोई सानी नहीं है। सुशील ने वर्ष 2008 में पेईचिंग ओलिम्पिक में काँस्य पदक जीतकर सभी को हैरान कर दिया था। वह राष्ट्रमंडल कुश्ती चैम्यिनशिप में लगातार चार बार स्वर्ण पदक जीत चुके हैं। यही नहीं उन्होंने इस वर्ष मई में नई दिल्ली में हुई एशियाई चैम्पियनशिप में भी स्वर्ण पदक अपने नाम किया था। राष्ट्रमंडल खेलों के ब्रांड एम्बेसडर सुशील को कुश्ती में शानदार प्रदर्शन के लिए गत वर्ष देश के सर्वोच्च खेल पुरस्कार 'राजीव गाँधी खेल रत्न' से भी नवाजा जा चुका है। भारत को सुशील कुमार जैसे पहलवान पर नाज है, जिसने भारत का सिर ऊंचा करने में अपने प्रदर्शन को शानदार बनाया है।

शनिवार, 30 अक्तूबर 2010

भारतीय कुश्ती के खिलाफ बड़ी साजिश!

ओ.पी. पाल
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय पहलवानों ने दुनिया के अन्य देशों के पहलवानों को कुश्ती में खूब धूल चटाई है। सत्तर के दशक से ही 1970 में एडिनबर्ग राष्ट्रमंडल खेलों में भारत का कुश्ती ने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करके नौ पदक हासिल किये थे तो दुनिया के सामने भारतीय कुश्ती के इरादे नजर आने लगे थे। 19वें राष्ट्रमंडल खलों में भी भारत के पहलवानों के जलवे शायद पश्चिमी देशों को रास नहीं आ रहे हैं और अगले ग्लासगो में होने वाले 20वें राष्ट्रमंडल खेलो से अंतर्राष्ट्रीय राष्ट्रमंडल फैडरेशन ने कुश्ती को हटाने के संकेतों से पश्चिमी देशो और आस्ट्रेलिया जैसे देशों की भारत के खिलाफ साजिश की बू आ रही है।
उन्नीसवें राष्ट्रमंडल खेलों में भारतीय पहलवानों की एक के बाद एक कुश्ती में पदकों की झड़ी लगाना पश्चिमी देशों को रास नहीं आ रहा है। अभी दिल्ली राष्ट्रमंडल खेल समाप्त भी नहीं हुए हैं और आस्ट्रेलिया तथा पश्चिमी देशों की भारतीय कुश्ती के खिलाफ साजिश शुरू हो गई है, जिसमें ग्लासगो में होने वाले अगले राष्ट्रमंडल खलों से कुश्ती को हटाने की तैयारियां शुरू हो गई है। अंतर्राष्ट्रीय कॉमनवेल्थ गेम्स फेडरेशन की इस मुहिम को लेकर भारतीय कुश्ती में आक्रोश नजर आ रहा है। अंतर्राष्ट्रीय कुश्ती मुकाबलों में अपना दबदबा रखने वाले भारतीय पहलवानों ने ग्लासगो राष्ट्रमंडल खेलों से कुश्ती की ग्रीको-रोमन और महिला वर्ग श्रेणियों को बाहर करने के राष्ट्रमंडल खेल महासंघ के निर्णय पर नाराजगी जताई है और इस प्रस्तावित कदम को सीधे पश्चिमी देशों और आस्ट्रेलिया का 'षडयंत्र' करार दिया है। कुश्ती को हटाये जाने की हो रही तैयारियों के प्रति ग्रीको रोमन कुश्ती के 47 किलो ग्राम भार वर्ग में स्वर्ण पदक जीतने वाले पहलवान संजय कुमार का कहना है कि यदि ऐसा होता है तो यह भारतीय पहलवानों के भेदभावपूर्ण रवैया होगा उनका मानना है कि राष्ट्रमंडल खेलों से कुश्ती  स्पर्धा के किसी भी रूप में बाहर करने का कोई तर्क भी नहीं है। संजय कुमार इस कदम से महसूस करते हेँ कि यह एक बड़ी साजिश का हिस्सा है जिसमें पश्चिमी देश भारतीय पहलवानों का सामना करने से डरते हैं। भारतीय पहलवान इस निर्णय के खिलाफ भारत, कनाडा और मलेशिया जैसे देशों को अपना कड़ा विरोध जताने की जरूरत है, ताकि कुश्ती को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जिंदा रखा जा सके। उनका मानना है कि राष्ट्रमंडल खेलों में भारत को पदों से वंचित करने का प्रयास है क्योंकि कुश्ती में भारत कहीं ज्यादा पदक हासिल करता आ रहा है। भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष जी.एस. मंदेर भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि राष्ट्रमंडल खेल महासंघ यानि सीजीएफ के ग्लासगो में होने वाले खेलों से ग्रीको रोमन और महिला कुश्ती को बाहर करने के निर्णय से खुश नहीं हैं। मंदेर का कहना है कि भारत सीजीएफ के इस निर्णय का विरोध कड़ा विरोध करेगा और कनाडा, मलेशिया, बांग्लादेश जैसे देशों से भी इस विरोध में समर्थन लिया जाएगा, जहां कुश्ती बेहद लोकप्रिय है। मंदेर का कहना है कि इस भारत विरोधी साजिश में अंतर्राष्ट्रीय कुश्ती
संघों और विश्व के कई कुश्ती संगठनों का उन्हें समर्थन प्राप्त है। दूसरी ओर मुख्य राष्ट्रीय कोच हरगोबिंद सिंह की माने तो भारत अभी ग्लासगो में होने वाली फ्रीस्टाइल कुश्ती को लेकर भी आश्वस्त नहीं हैं, जिसे चार साल पहले मेलबर्न राष्ट्रमंडल खेलों से हटा दिया गया था और सुशील जैसे पहलवान को पदक से वंचित होना पड़ा था।
दिल्ली से हटाने का भी हुआ था प्रयास
भारत कुश्ती में हमेशा से अव्वल रहा है और कुश्ती की बदौलत राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक बटोरता आया है, इसलिए यह साजिश कोई पुरानी नहीं है, बल्कि भारत की मेजबानी में हो रहे खेलों से भी कुश्ती को हटाने का काफी प्रयास हुए हैं। इस बात का खुलासा रेसलिंग फेडरेशन आॅफ इंडिया के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर किया है। उनका कहना है कि चूंकि मेलबोर्न राष्ट्रमंडल खेलों में कुश्ती का हटा दिया था तो उसी तर्क पर 19वें राष्ट्रमंडल खेलों में सीजीएफ कुश्ती को शामिल न करने का तर्क दे रहा था। यह तो भारत का विरोध और कुश्ती को भारतीय खेल का तर्क देकर लगातार किये गये प्रयासो का ही परिणाम है कि इन खेलों में कुश्ती का जलवा देखने को मिल रहा है। उनका कहना है कि पश्चिमी देश अगले राष्ट्रमंडल खेलों से कुश्ती हटाने का जो कदम उठा रहे हैं वह भारत के खिलाफ एक बड़ी साजिश कर रहे हैं।

गन्ने का 280 के भाव लेकर रहेंगे किसान

उम्मीद लोभ में नहीं पड़ेंगे उत्पादक
ओ.पी. पाल
चीनी मिल मालिकों और गन्ना उत्पादक किसानों के बीच गन्ने के दामों को लेकर चीनी सत्र के दौरान हमेशा ठनती रही है। इस सीजन में भी खासकर यूपी के किसान 280 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से नीचे अपना गन्ना चीनी मिलों को नहीं देंगे, जबकि मिल मालिकों को उम्मीद है कि चीनी के गिरते भाव को देखते हुए किसान चीनी मिलों को बिना शर्त गन्ने की आपूर्ति करने को मजबूर
होंगे और वे अधिक गन्ना उत्पादन होने के कारण किसी लालच में नहीं पडेंगे।
सरकारी अनुमान के अनुसार इस वर्ष देश में गन्ने का कुल उत्पादन बढ़कर 32.49 करोड़ टन हो जाने का अनुमान है जो पिछले वर्ष 27.7 करोड़ टन था। यह 16 प्रतिशत की भारी वृद्धि को दशार्ता है जिसके कारण चीनी उत्पादन बढ़ने की पूरी उम्मीद है। वर्ष 2010-11 में चीनी उत्पादन बढ़कर 2.4 करोड़ टन पहुंचने का अनुमान है जो पिछले वर्ष एक करोड़ 90 लाख टन था। इसलिए चीनी सत्र शुरू होने से जहां गन्ना किसान उच्च कीमत पर गन्ने की आपूर्ति करने की सोच रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर चीनी मिल मालिक भी अपने पक्ष को मजबूत बनाने के लिए कयासों के आधार पर रणनीति बना रहे हैँ। देश में उत्तर प्रदेश ऐसा दूसरा राज्य है जो गन्ने का अधिक उत्पादन करता है। उत्तर
प्रदेश में चेयरमैन्स एसोसिएशन आफ केन सोसायटीज के अध्यक्ष अवधेश मिश्रा ने ऐलान किया है कि यूपी के किसान वर्ष 2009-2010 के चीनी वर्ष (अक्तूबर से सितंबर) में 280 रुपये प्रति क्विंटल भाव से नीचे किसी भी कीमत पर चीनी मिलों को गन्ने की आपूर्ति नहीं करेंगे, क्योंकि सोसायटी को यही औसत मूल्य प्राप्त हुआ। इसलिए वह किसी भी कीमत पर इससे नीचे चीनी मिलों को गन्ना नहीं बचेंगे। चीनी की कम कीमत पर विचार करते हुए किसानों की ओर से अधिक कीमत की मांग के मिश्रा का कहना है कि जब चीनी मिलें मुनाफा हमारे साथ नहीं बांटती तो हम घाटे में उनके साथ भागीदारी क्यों करें। जनवरी मध्य में चीनी की जो कीमत थी वह दिल्ली में अब 40 प्रतिशत घटकर 30 रुपये प्रति किलोग्राम रह गयी। चीनी मिलों से बाहर की कीमत 25 रुपये प्रति किलोग्राम से नीचे चल रही है। दूसरी ओर भारतीय चीनी मिल संघ के उप महानिदेशक एमएन राव का मानना है कि चालू सत्र में पिछले सत्र के बराबर मूल्य चुकाना लाभप्रद नहीं है इसके लिए उन्होंने चीनी की गिरती कीमतों का तर्क दिया। उनका कहना है कि किसान अपने गन्ने को बेचने के लिए इसलिए भी
बाध्य होंगे, क्योंकि गन्ने का उत्पादन काफी अधिक है। जब गन्ना उत्पादन अधिक हों, तो कोई भी किसान अधिक कीमत पाने के लालच में में अपने स्टाक को रोकना पसंद नहीं करेगा। चीनी मिल मालिकों को उम्मीद है कि पेराई में कोई देरी नहीं होगी। वर्ष 2009-10 के पेराई सत्र में चीनी मिलों ने किसानों को अधिक कीमत का भुगतान किया क्यों कि गन्ने का उत्पादन कम था। गौरतलब है
कि पिछले साल नवंबर में किसानों ने गन्ने के लिए 280 रुपये प्रति क्विंटल की मांग करते हुए राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में विरोध प्रदर्शन किया था। यह कीमत केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों की और से 2009-10 के चीनी वर्ष के लिए निर्धारित दरों से कहीं अधिक थी। एक और जहां केन्द्र सरकार ने उचित और लाभकारी मूल्य 130 रुपये प्रति क्विंटल तय किया था वहीं उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदेश परामर्शित मूल्य (एसएपी) 175 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया था।

उम्मीदवार चुनाव क्षेत्र में बैनर लगा सकेंगे!

एक दशक से बैनरों पर लगी रोक हटाने की तैयारी
ओ.पी. पाल
केंद्रीय चुनाव आयोग ने धनबल और पेड़ न्यूज की प्रवृत्ति को रोकने के लिए गंभीरता से नीतियों को तैयार करना शुरू कर दिया है। इस बहाने अब चुनाव मैदान में उतरने वाले उम्मीदवार अपने चुनाव क्षेत्र में बैनर लगा सकेंगे,
जिन पर पिछले एक दशक से प्रतिबंध लगा हुआ है। चुनाव आयोग का मानना है कि बैनरों पर लगे प्रतिबंध के कारण वहां की जनता को यह भी पता नहीं होता था कि उसके क्षेत्र में कौन-कौन प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। इसलिए आयोग शीघ्र ही इस प्रतिबंध को हटाने जा रहा है। इस प्रकार के संकेत स्वयं मुख्य चुनाव आयुक्त डा. एस.वाई. कुरैशी ने पिछले सप्ताह सर्वदलीय बैठक के दौरान विभिन्न राजनीतिक दलों से मिली राय पर विचार विमर्श करने के बाद दिये हैं। आयोग चाहता है कि धन लेकर खबर देने वाले पेड न्यूज की बढ़ती प्रवृत्ति की पृष्ठभूमि पर आयोग ने गहन विचार विमर्श किया है और इसे रोकने के लिए उम्मीदवारों को अपने क्षेत्र में बैनर लगाने की अनुमति देना जरूरी है। पेड न्यूज की प्रवृत्ति के कारण धनवान और बाहुबली उम्मीदवारों का तो अखबारों के जरिए चुनाव प्रचार हो जाता है, लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर या निर्दलीय प्रत्याशियों की जानकारी
 स्वयं वहां के लोगों को भी नहीं हो पाती है। इसका कारण पिछले एक दशक से बैनर लगाने पर लगा प्रतिबंध सामने आया है। मुख्य चुनाव आयुक्त का कहना है कि चुनाव आयोग चुनाव प्रचार को लेकर अपने सख्त नियम कायदे को उदार बनाने पर विचार कर रहा है, जिससे उम्मीदवारों को जनता से सीधा संपर्क बनाने में मदद मिल सके। मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी का कहना है कि अनेक राजनीतिक दलों का भी यह सुझाव रहा है कि चुनावों में धनबल और पेड न्यूज पर रोक लगाने के लिए मतदाताओं से संपर्क के परंपरागत तरीकों को उदार बनाने की आवश्यकता है। कुरैशी ने कहा कि राजनीतिक दलों की यह शिकायत थी कि दस दिनों के चुनाव प्रचार के दौरान जनता को यह पता नहीं चल पाता कि उसके क्षेत्र से उम्मीदवार कौन-कौन हैं, क्योंकि मीडिया किन्हीं कारणो से उनके बारे में खबरें ही नहीं छाप पाता। राजनीतिक दलों के इस तर्क पर स्वयं कुरैशी ने सहमत होते हुए इस शिकायत को दूर करने के लिए नीति में बदलाव करने के संकेत दिये हैं। चुनाव आयोग मतदाताओं को उम्मीदवारों के बारे में जानकारी देने के लिए विभिन्न सुझावों पर गंभीरता से विचार कर रहा है। मुख्य चुनाव आयुक्त के इस संकेत का आशय यह है कि चुनाव प्रचार अब के नहीं रहेंगे और प्रचार के दौरान उम्मीदवार और राजनीतिक दल अपने बैनर लगा सकेंगे, जिन पर पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से प्रतिबंध था। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग जल्द ही इस बारे में निर्णय करेगा, कि नियमों को उदार बनाने की दिशा में कैसे आगे कदम बढ़ाया जाये, ताकि उम्मीदवारों को मतदाताओं तक अपनी पहुंच बनाने में सुविधा हो और राजनीतिक दलों के नेताओं ने चुनावों में धनबल के बढ़ते इस्तेमाल, राजनीति के अपराधीकरण और हाल के दिनों में सामने आयी पेड न्यूज की प्रवृति पर पर रोक लग सके। इस संबन्ध में गंभीर चिंता जताते हुए चुनाव आयोग ने विभिन्न राजनीतिक दलों और विशेषज्ञों की राय भी जानी है। हाल ही में पिछले सप्ताह दो सत्रों मे आयोजित सर्वदलीय बैठक में राष्ट्रीय दलों के नेताओं और क्षेत्रीय दलों के नेताओं ने इन मुद्दों पर अपनी राय चुनाव आयोग के सामने रखी थी। कुरैशी ने कहा कि इस बैठक में आयोग ने राजनीतिक दलों से भी अपील की गई थी कि वे आयोग को पूरा सहयोग करें और साथ ही चुनाव व्यय के मामले में नियमों का उल्लंघन न करें।

भारत को शीर्ष पर लाने को तैयार एथलीट

ओ.पी. पाल
राष्ट्रमंडल खेलों में भारतीय निशानेबाजों, पहलवानों और भारोत्तोलकों ने अपने शानदार प्रदर्शन से देश को पदक तालिका में दूसरे स्थान पर विराजमान कर दिया है और अब भारत के एथलीट भी इस बार इन खेलों में अपना हुनर दिखाने को पूरी तरह से तैयार हैं। भारतीय एथेलिटों का मकसद है कि पदक तालिका में भारत को शीर्ष पर पहुँचाया जाये।
भारतीय एथलेटिक्स महासंघ के अध्यक्ष ललित भनोट का दावा है कि भारतीय एथलीटों ने राष्ट्रमंडल खेलों में इतिहास में एक स्वर्ण पदक मिलाकर अब तक नौ पदकों पर अपना कब्जा किया है लेकिन भारतीय एथलीट 19वें राष्ट्रमंडल खेलों में कम से कम छह पदक जरूर जीतेंगे। उन्होंने कहा कि इस बार हमारे पास राष्ट्रमंडल खेलों के इतिहास में सबसे अधिक पदक जीतने का मौका है। हालांकि एथलेटिक्स में ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, कनाडा, जमैका, केन्या और कनाडा जैसे देशों के एथलीट हिस्सा ले रहे हैं इसलिए मुकाबला कड़ा होगा. लेकिन हम इस खेलों में छह से आठ पदक जीत सकते हैं। भनोट ने कहा कि वर्ष 2006 में हुई मेलबोर्न राष्ट्रमंडल खेलों में हमने दो रजत पदक जीते थे लेकिन इस बार हम उम्मीद कर रहे हैं कि हम एथलेटिक्स में बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले देशों में शामिल होंगे। भारत ने एथलेटिक्स में राष्ट्रमंडल खेलों की अपेक्षा एशियाई खेलों में ज्यादा अच्छा प्रदर्शन किया है। उड़न सिख मिल्खा सिंह एकमात्र ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्होंने राष्ट्रमंडल खेलों में एथलेटिक्स का स्वर्ण जीता है। उन्होंने वेल्स में वर्ष 1958 में देश को पहला स्वर्ण पदक दिलाया था। इस बार एथलीट अपने घरेलू मैदानों पर खेल रहे हैं इसका उन्हें फायदा मिल सकता है। हालांकि पदकों की संख्या इस बात पर निर्भर करती है कि एथलीट अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दे पाते हैं या नहीं।
एथलेटिक्स में पुरूष शॉट पुट, पुरुष चक्का फेंक, महिला चक्का फेंक और चार गुणा 400 महिला रिले प्रतियोगिताओं में भाग लेने वाले भारतीय एथलीट राष्ट्रमंडल खेलों में भाग ले रहे एथलीटों में शीर्ष पांच में शुमार हैं। महिला चक्का फेंक में भाग लेने वाली एथलीट कृष्णा पूनिया और हरवंत कौर
शीर्ष पांच एथलीटों में शामिल हैं जबकि एक अन्य एथलीट राष्ट्रीय रिकॉर्डधारी सीमा अंतिल छठे स्थान पर है। भारत को महिला चक्का फेंक में दो पदकों की उम्मीद है। इसके अलावा महिला 800 मीटर दौड की एथलीट टिंटू लुका ने भी पिछले कुछ महीनों में अपने प्रदर्शन में जबरदस्त सुधार किया है और उन्होंने 15 वर्षीय राष्ट्रीय रिकॉर्डधारी शिनी विल्सन का 1.59.85 का रिकॉर्ड तोड़कर 1.59.17 में दौड़ पूरी कर वीटीबी बैक कोन्टिनेंटल कप जीता है। लुका इस बार राष्ट्रमंडल खेलों में छह शीर्ष एथलीटों में शामिल हैं। हालांकि पी टी ऊषा की शिष्या लुका के लिए पदक जीतना इतना आसान नहीं होगा। उनका मुकाबला पेइचिंग ओलंपिक पदक विजेता केन्या की नैन्सी जेबेट लागट 1.57.75. केन्या की ही एक अन्य एथलीट जानीथ जेप्कोस्गेई 1.57.84. और जमैका की सिन्क्लेयर 1.58.16. जैसी एथलीटों से होगा। इसलिए 800 मीटर महिला दौड़ में पदक जीतने के लिए कड़ा मुकाबला होगा। भारत को उम्मीद है कि एथलीट शानदार प्रदर्शन करेंगे।

नताली ने टांग गंवाई है हौंसला नहीं

ओ.पी. पाल
दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों में हिस्सा लेने आई दक्षिण अफ्रीकी तैराक नताली पदक जीतकर सुखद विदाई चाहती है। मैनचेस्टर राष्ट्रमंडल खेलों से ठीक एक साल पहले हुए हादसे में उसने अपनी टांग गंवा दी लेकिन विकलांग और सामान्य दोनों श्रेणियों में क्वालीफाई करके उसने इतिहास रच दिया। आखिरी
Natalie Du Toit Natalie Du Toit of South Africa poses with the gold medal during the medal ceremony for the Women's 50m Freestyle S9 Final at the Dr. S.P. Mukherjee Swimming Complex during day two of the Delhi 2010 Commonwealth Games on October 5, 2010 in Delhi, India.बार राष्ट्रमंडल खेलों में भाग ले रही दक्षिण अफ्रीकी तैराक नताली के हौसले अभी भी बुलंद है और भारत में उसका लक्ष्य पदक जीतने पर लगा हुआ है।
नताली ने कहा कि वह शंघाई में होने वाली विश्व चैम्पियनशिप के जरिए लंदन ओलंपिक 2012 के लिए क्वालीफाई करना चाहती हैं। उसके बाद ही तैराकी को अलविदा कहेंगी। जिंदादिली और हौसले की मिसाल बनी नताली मैनचेस्टर खेलों के अनुभव को याद करते हुए कहती है, जहां 2002 में खेल होने थे और 2001में सड़क हादसे में मेरी टांग चली गई। इसके बाद भी उसने सामान्य और विकलांग दोनों श्रेणियों में क्वालीफाई किया। उस लम्हे को वह कभी नहीं भूल सकती। नताली ने विकलांगों के लिए 50 और 100 मीटर फ्रीस्टाइल में विश्व रिकॉर्ड टाइम के साथ स्वर्ण पदक जीता था। उसने 800 मीटर फ्रीस्टाइल सामान्य श्रेणी में भी क्वालीफाई करके इतिहास रच दिया क्योंकि ऐसा करने वाली वह पहली खिलाड़ी थी। उसे मैनचेस्टर खेलों का सर्वश्रेष्ठ एथलीट चुना गया। उसने कहा कि हादसे के बाद मुझे अपने स्ट्रोक्स में बदलाव करना पड़ा। लोगों को लगा था कि अब वह कभी इससे उबर नहीं सकेंगी, लेकिन उसने हौसला नहीं खोया और वापसी की। दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों में पदक जीतकर सुखद विदाई लेने की इच्छुक नताली ने कहा कि प्रतिस्पर्धा कड़ी है लेकिन वह इस अनुभव को यादगार बनाना चाहती है। भारत में अपने अनुभव के बारे में उसने कहा कि
वह बहुत खुश हैं कि एक बार फिर महात्मा गांधी के देश में है। दक्षिण अफ्रीका में उन्हें काफी सम्मान की नजर से देखा जाता है। उनके बारे में बहुत सुना है और यहां बहुत अच्छा लग रहा है। भारत हमारी अपेक्षा से अच्छा मेजबान है। इससे पहले एफ्रो एशियाई खेलों के लिए हैदराबाद आ चुकी नताली ने कहा कि दिल्ली बहुत अलग है लेकिन उसे यहां बहुत अच्छा लगा। उसने कहा  कि दिल्ली हैदराबाद से एकदम अलग है। यहां के मंदिर और मस्जिदों का वास्तुशिल्प देखने लायक है। उसने ताजमहल के बारे में भी सुना है और वह निश्चित रूप से जाना चाहेगी।