अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय पहलवानों ने दुनिया के अन्य देशों के पहलवानों को कुश्ती में खूब धूल चटाई है। सत्तर के दशक से ही 1970 में एडिनबर्ग राष्ट्रमंडल खेलों में भारत का कुश्ती ने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करके नौ पदक हासिल किये थे तो दुनिया के सामने भारतीय कुश्ती के इरादे नजर आने लगे थे। 19वें राष्ट्रमंडल खलों में भी भारत के पहलवानों के जलवे शायद पश्चिमी देशों को रास नहीं आ रहे हैं और अगले ग्लासगो में होने वाले 20वें राष्ट्रमंडल खेलो से अंतर्राष्ट्रीय राष्ट्रमंडल फैडरेशन ने कुश्ती को हटाने के संकेतों से पश्चिमी देशो और आस्ट्रेलिया जैसे देशों की भारत के खिलाफ साजिश की बू आ रही है।
उन्नीसवें राष्ट्रमंडल खेलों में भारतीय पहलवानों की एक के बाद एक कुश्ती में पदकों की झड़ी लगाना पश्चिमी देशों को रास नहीं आ रहा है। अभी दिल्ली राष्ट्रमंडल खेल समाप्त भी नहीं हुए हैं और आस्ट्रेलिया तथा पश्चिमी देशों की भारतीय कुश्ती के खिलाफ साजिश शुरू हो गई है, जिसमें ग्लासगो में होने वाले अगले राष्ट्रमंडल खलों से कुश्ती को हटाने की तैयारियां शुरू हो गई है। अंतर्राष्ट्रीय कॉमनवेल्थ गेम्स फेडरेशन की इस मुहिम को लेकर भारतीय कुश्ती में आक्रोश नजर आ रहा है। अंतर्राष्ट्रीय कुश्ती मुकाबलों में अपना दबदबा रखने वाले भारतीय पहलवानों ने ग्लासगो राष्ट्रमंडल खेलों से कुश्ती की ग्रीको-रोमन और महिला वर्ग श्रेणियों को बाहर करने के राष्ट्रमंडल खेल महासंघ के निर्णय पर नाराजगी जताई है और इस प्रस्तावित कदम को सीधे पश्चिमी देशों और आस्ट्रेलिया का 'षडयंत्र' करार दिया है। कुश्ती को हटाये जाने की हो रही तैयारियों के प्रति ग्रीको रोमन कुश्ती के 47 किलो ग्राम भार वर्ग में स्वर्ण पदक जीतने वाले पहलवान संजय कुमार का कहना है कि यदि ऐसा होता है तो यह भारतीय पहलवानों के भेदभावपूर्ण रवैया होगा उनका मानना है कि राष्ट्रमंडल खेलों से कुश्ती स्पर्धा के किसी भी रूप में बाहर करने का कोई तर्क भी नहीं है। संजय कुमार इस कदम से महसूस करते हेँ कि यह एक बड़ी साजिश का हिस्सा है जिसमें पश्चिमी देश भारतीय पहलवानों का सामना करने से डरते हैं। भारतीय पहलवान इस निर्णय के खिलाफ भारत, कनाडा और मलेशिया जैसे देशों को अपना कड़ा विरोध जताने की जरूरत है, ताकि कुश्ती को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जिंदा रखा जा सके। उनका मानना है कि राष्ट्रमंडल खेलों में भारत को पदों से वंचित करने का प्रयास है क्योंकि कुश्ती में भारत कहीं ज्यादा पदक हासिल करता आ रहा है। भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष जी.एस. मंदेर भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि राष्ट्रमंडल खेल महासंघ यानि सीजीएफ के ग्लासगो में होने वाले खेलों से ग्रीको रोमन और महिला कुश्ती को बाहर करने के निर्णय से खुश नहीं हैं। मंदेर का कहना है कि भारत सीजीएफ के इस निर्णय का विरोध कड़ा विरोध करेगा और कनाडा, मलेशिया, बांग्लादेश जैसे देशों से भी इस विरोध में समर्थन लिया जाएगा, जहां कुश्ती बेहद लोकप्रिय है। मंदेर का कहना है कि इस भारत विरोधी साजिश में अंतर्राष्ट्रीय कुश्तीसंघों और विश्व के कई कुश्ती संगठनों का उन्हें समर्थन प्राप्त है। दूसरी ओर मुख्य राष्ट्रीय कोच हरगोबिंद सिंह की माने तो भारत अभी ग्लासगो में होने वाली फ्रीस्टाइल कुश्ती को लेकर भी आश्वस्त नहीं हैं, जिसे चार साल पहले मेलबर्न राष्ट्रमंडल खेलों से हटा दिया गया था और सुशील जैसे पहलवान को पदक से वंचित होना पड़ा था।
दिल्ली से हटाने का भी हुआ था प्रयास
भारत कुश्ती में हमेशा से अव्वल रहा है और कुश्ती की बदौलत राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक बटोरता आया है, इसलिए यह साजिश कोई पुरानी नहीं है, बल्कि भारत की मेजबानी में हो रहे खेलों से भी कुश्ती को हटाने का काफी प्रयास हुए हैं। इस बात का खुलासा रेसलिंग फेडरेशन आॅफ इंडिया के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर किया है। उनका कहना है कि चूंकि मेलबोर्न राष्ट्रमंडल खेलों में कुश्ती का हटा दिया था तो उसी तर्क पर 19वें राष्ट्रमंडल खेलों में सीजीएफ कुश्ती को शामिल न करने का तर्क दे रहा था। यह तो भारत का विरोध और कुश्ती को भारतीय खेल का तर्क देकर लगातार किये गये प्रयासो का ही परिणाम है कि इन खेलों में कुश्ती का जलवा देखने को मिल रहा है। उनका कहना है कि पश्चिमी देश अगले राष्ट्रमंडल खेलों से कुश्ती हटाने का जो कदम उठा रहे हैं वह भारत के खिलाफ एक बड़ी साजिश कर रहे हैं।
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