ओ.पी. पाल
चीनी मिल मालिकों और गन्ना उत्पादक किसानों के बीच गन्ने के दामों को लेकर चीनी सत्र के दौरान हमेशा ठनती रही है। इस सीजन में भी खासकर यूपी के किसान 280 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से नीचे अपना गन्ना चीनी मिलों को नहीं देंगे, जबकि मिल मालिकों को उम्मीद है कि चीनी के गिरते भाव को देखते हुए किसान चीनी मिलों को बिना शर्त गन्ने की आपूर्ति करने को मजबूर
होंगे और वे अधिक गन्ना उत्पादन होने के कारण किसी लालच में नहीं पडेंगे।
सरकारी अनुमान के अनुसार इस वर्ष देश में गन्ने का कुल उत्पादन बढ़कर 32.49 करोड़ टन हो जाने का अनुमान है जो पिछले वर्ष 27.7 करोड़ टन था। यह 16 प्रतिशत की भारी वृद्धि को दशार्ता है जिसके कारण चीनी उत्पादन बढ़ने की पूरी उम्मीद है। वर्ष 2010-11 में चीनी उत्पादन बढ़कर 2.4 करोड़ टन पहुंचने का अनुमान है जो पिछले वर्ष एक करोड़ 90 लाख टन था। इसलिए चीनी सत्र शुरू होने से जहां गन्ना किसान उच्च कीमत पर गन्ने की आपूर्ति करने की सोच रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर चीनी मिल मालिक भी अपने पक्ष को मजबूत बनाने के लिए कयासों के आधार पर रणनीति बना रहे हैँ। देश में उत्तर प्रदेश ऐसा दूसरा राज्य है जो गन्ने का अधिक उत्पादन करता है। उत्तर
प्रदेश में चेयरमैन्स एसोसिएशन आफ केन सोसायटीज के अध्यक्ष अवधेश मिश्रा ने ऐलान किया है कि यूपी के किसान वर्ष 2009-2010 के चीनी वर्ष (अक्तूबर से सितंबर) में 280 रुपये प्रति क्विंटल भाव से नीचे किसी भी कीमत पर चीनी मिलों को गन्ने की आपूर्ति नहीं करेंगे, क्योंकि सोसायटी को यही औसत मूल्य प्राप्त हुआ। इसलिए वह किसी भी कीमत पर इससे नीचे चीनी मिलों को गन्ना नहीं बचेंगे। चीनी की कम कीमत पर विचार करते हुए किसानों की ओर से अधिक कीमत की मांग के मिश्रा का कहना है कि जब चीनी मिलें मुनाफा हमारे साथ नहीं बांटती तो हम घाटे में उनके साथ भागीदारी क्यों करें। जनवरी मध्य में चीनी की जो कीमत थी वह दिल्ली में अब 40 प्रतिशत घटकर 30 रुपये प्रति किलोग्राम रह गयी। चीनी मिलों से बाहर की कीमत 25 रुपये प्रति किलोग्राम से नीचे चल रही है। दूसरी ओर भारतीय चीनी मिल संघ के उप महानिदेशक एमएन राव का मानना है कि चालू सत्र में पिछले सत्र के बराबर मूल्य चुकाना लाभप्रद नहीं है इसके लिए उन्होंने चीनी की गिरती कीमतों का तर्क दिया। उनका कहना है कि किसान अपने गन्ने को बेचने के लिए इसलिए भी
बाध्य होंगे, क्योंकि गन्ने का उत्पादन काफी अधिक है। जब गन्ना उत्पादन अधिक हों, तो कोई भी किसान अधिक कीमत पाने के लालच में में अपने स्टाक को रोकना पसंद नहीं करेगा। चीनी मिल मालिकों को उम्मीद है कि पेराई में कोई देरी नहीं होगी। वर्ष 2009-10 के पेराई सत्र में चीनी मिलों ने किसानों को अधिक कीमत का भुगतान किया क्यों कि गन्ने का उत्पादन कम था। गौरतलब हैकि पिछले साल नवंबर में किसानों ने गन्ने के लिए 280 रुपये प्रति क्विंटल की मांग करते हुए राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में विरोध प्रदर्शन किया था। यह कीमत केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों की और से 2009-10 के चीनी वर्ष के लिए निर्धारित दरों से कहीं अधिक थी। एक और जहां केन्द्र सरकार ने उचित और लाभकारी मूल्य 130 रुपये प्रति क्विंटल तय किया था वहीं उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदेश परामर्शित मूल्य (एसएपी) 175 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया था।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें