शनिवार, 23 अक्तूबर 2010

चौतरफा चढ़ने लगा राष्ट्रमंडल खेलों का रंग

ओ.पी. पाल
भारत ने राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों के लिए जितनी फजीहत झेली है उतना ही इन खेलों का रंग चौतरफा चढ़ता नजर आ रहा है। उन्नीसवें राष्ट्रमंडल खेलो के शुरू होने में अब केवल नौ दिन ही बचे हैं तो जाहिर सी बात है कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को साफ-सफाई, रंगाई पुताई और राष्ट्रमंडल खेलों के प्रचार संबन्धी साजसज्जा से के रंगों के साथ निखरना तो था ही। भारत के सामने एक प्रतिष्ठा बन चुके राष्ट्रमंडल खेलों में भारत सरकार तथा आयोजन समिति ने सभी कुछ तो दांव पर लगा रखा है ताकि नई दिल्ली राष्ट्रमंडल खेल 2010 के जरिए अंतर्राष्टÑीय स्तर पर एक अलग ही छवि उभर कर सामने आए।
राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी हैं और पिछले दिनों जिन घटनाओं के कारण उंगलियां उठने लगी थी उनको भी नजरअंदाज करते हुए बस राष्ट्रमंडल खेलों पर ही अधिक ध्यान दिया जा रहा है। राजधानी में दिखते राष्ट्रमंडल खेलो के रंग के साथ ही सुरक्षा व्यवस्था भी चाकचौबंद नजर आ रही है। राष्ट्रमंडल खेलो की तैयारियों, अनियमितताओं और अन्य भ्रष्टाचार जैसे झमेलों से नजर हटाकर आलोचक भी खेलों की सफलता की बात कर रहे है क्योंकि ये खेल राष्ट्र की अस्मिता और राष्ट्र सम्मान के साथ जुडे हैं। राष्ट्रमंडल खेलों के प्रचार में भी देश की सरकार ने कोई कसर नही छोड़ी या कुछ यूं कहा जाए कि लोगों को राष्ट्रमंडल खेलों के प्रति जागरूक करने के और नई दिल्ली कॉमनवेल्थ खेल 2010 की अच्छी छवि बनाने के लिए आयोजक और भारत सरकार प्रयासों में आलोचनाओं व किसी विरोध की परवाह भी नहीं की गई है। भारत के स्टार खिलाड़ियों निशानेबाज अभिनव बिंद्रा, बैडमिंटन स्टार साइना नेहवाल, 2006 कॉमनवेल्थ के स्टार रहे समरेश जंग, मुक्केबाज विजेंद्र कुमार, पहलवान सुशील कुमार और चार बार की वर्ल्ड चैंपियन मुक्केबाज एमसी मेरीकॉम को नई दिल्ली में होने जा रहे इन खेलों का ब्रैंड एम्बैस्डर बनाया गया है, जो जगह जगह जाकर खेलों पर रंग चढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। इन सरीखे खिलाड़ियों से भारत को शानदार प्रदर्शन की भी उम्मीदें हैं। राष्ट्रमंडल खेलों के हॉफ मैराथन दौड़, साइकिल रेस तथा अन्य परीक्षण स्पर्धाएं भी निरंतर जारी हैं ताकि लगे कि दिल्ली में राष्ट्रमंडल खेल हो रहे हैं। दरअसल, ये आयोजन तो राष्ट्रमंडल खेलों की एक छोटी सी झलक हैं जो खेलों का प्रचार और लोगों को जागरूक करने का जरिया है। जहां तक खेलों के प्रचार-प्रसार का सवाल है उसके लिए कॉमनवेल्थ बैटन रिले यानि मशाल 29 अक्तूबर 2009 को इंग्लैंड की महारानी ने लंदन में बकिंघम पैलेस से रवाना होकर 69 देशों की यात्रा पूरी करने के बाद आजकल भारत में ही सैर सपाटा कर रही है और देश के विभिन्न शहरों से होती हुई 30 सितंबर को दिल्ली पहुंचेगी। यह मशाल दिल्ली में तीन दिन तक अलग अलग जगहों की सैर करने के बाद यह मशाल राष्ट्रमंडल खेलों के उद्घाटन समारोह के लिए खेलगांव में आएगी। बैटन रिले भी खेलो के प्रचार का जरिया है, लेकिन भारत ने इन खेलों के प्रचार के लिए कुछ अलग तरह के फार्मूले भी अजमाए हैं। मसलन आकाशवाणी ने खेलों के लिए खास तौर पर एक एफएम चैनल शुरू किया है। एक सितंबर से शुरू हुआ यह चैनल सुबह 7 बजे से रात 11 बजे तक प्रसारण कर रहा है। इस पर हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में खेलों से जुड़ी तमाम जानकारियों के अलावा दिल्ली के पर्यटन स्थलों और देश की कला और संस्कृति से जुड़े कार्यक्रम प्रसारित किए जा रहे हैं। प्रसार भारती के मुताबिक इस चैनल का मकसद खेलों को उत्साह को सामने लाना और नौजवानों में खेल भावना को जगाना है। वैसे तो राष्ट्रमंडल खेलों का रंग विनायल रैपिंग की तरह दिल्ली की बसों पर भी चढ़ा हुआ है और आजकल तो राजधानी के हर मार्ग पर इन रंगों की झलक देखते ही बनती है। आधुनिक रूप से तैयार किये गये बस स्टाफों को भी विशेष डिजाइनों से सजाया गया है। खेलों के लिए खुद को तैयार कर रही दिल्ली ट्रांसपोर्ट कॉपोर्रेशन यानी डीटीसी भी सात करोड़ रुपये खर्च करके राष्ट्रमंडल खेलों के प्रचार प्रसार के तहत अपनी बसों को खेलों से जुड़े डिजाइन से सजाने की योजना पर काम कर रही है। यानि यूं कहा जा सकता है कि जैसे-जैसे राष्ट्रमंडल खेलों के उद्घाटन का दिन नजदीक आ रहा है उससे कहीं अधिक तेजी से राष्ट्रीय राजधानी खेलों के रंगों से सराबोर होती नजर आ रही है।
कॉमनवेल्थ ट्रेन बनाम बेटन रिले
राष्ट्रमंडल खेलों के इन रंगों में बैटन रिले के अलावा 24 जून को एक कॉमनवेल्थ एक्सप्रेस ट्रेन भी पूरे भारत की सैर पर निकली थी जो सबसे पहले अमृतसर गई थी, जहां उसने पाकिस्तान होकर आई रही बैटन रिले का स्वागत में प्रमुख आकर्षण थी। आगामी 2 अक्तूबर को दिल्ली वापस पहुंचने से पहले यह ट्रेन कुल 50 शहरों का सफर कर चुकी होगी। कुल 11 कोचों वाली कॉमनवेल्थ एक्सप्रेस ट्रेन में राष्ट्रमंडल खेलों के बारे में जानकारी देने वाली प्रदर्शनियां भी लगी हुई हैं और राष्ट्रमंडल की पृष्ठभूमि के साथ पूरे इतिहास को सजोया गया है। यानि राष्ट्रमंडल खेलों के पूरे इतिहास के बारे में जाना जा सकता है। एक डिब्बा तो भारत की उपलब्धियों का बखान करता है, तो दूसरे में खेलों की वजह से दिल्ली में हुए बदलाव और स्टेडियमों के छोटे छोटे मॉडल दिखाए गए हैं। एक कोच पूरी तरह 2010 के नई दिल्ली खेलों को दिया गया है। इसमें दिखाया गया है कि कौन से खेल कहां और कब होंगे. लेकिन आखिरी छह कोच देश में हुई सूचना क्रांति की गाथा गाते नजर आते है। जितना इंतजार लोगों को राष्ट्रमंडल खेलों का है, उससे कहीं ज्यादा इंतजार इसके थीम सॉन्ग का था, जो अब पेश किया जा चुका है। यारो इंडिया बुला लिया नाम का यह गीत आस्कर विजेता संगीतकार ए.आर. रहमान ने तैयार किया है। कॉमनवेल्थ खेलों के प्रचार के लिए इसे पूरी दुनिया में प्रसारित किया जा रहा है ताकि जगह जगह से लोग खेल देखने दिल्ली आएं। इसका सीधा तात्पर्य है कि राष्ट्रमंडल खेलों के लिए इंडिया बुला रहा है। यह प्रचार कितना कारगर साबित होगा इसका पता तीन अक्टूबर से शुरू होने वाले राष्ट्रमंडल खेल स्वयं बखान कर देंगे।

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