ओ.पी. पाल
आखिर भारत ने दुनिया को दिखा दिया है कि वह भी राष्ट्रमंडल खेलों जैसे अंतर्राष्ट्रीय आयोजन को सफल और शानदार यादगार के रूप में आयोजित करने की क्षमता रखता है। दरअसल उन्नीसवें राष्ट्रमंडल खेलों के शुरू होने से पहले तक इस आयोजन को लेकर दुनिया के सामने भारत की तस्वीर को नकारात्मक ढंग से पेश किया जा रहा था। आज जब भारत राष्ट्रमंडल खेलों में यादगार लम्हें छोड़ रहा है तो निश्चित रूप से देश की दुनियाभर में एक छवि उभरकर सामने आई है। वहीं खेलों की दृष्टि से भारत की इस छवि को संवारने में भारतीय खिलाड़ियों ने जिस प्रकार से अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है उसकी बदौलत भारत हरेक दृष्टि से एक इतिहास रचने में भी सफल रहा है।
भारत के लिए राष्ट्रमंडल खेलों के इतिहास में यह पहला मौका है कि वह अपने आपको इंग्लैंड के साथ उलटफेर करके पदक तालिका में दूसरे स्थान पर कायम रखने में सफल रहा है। भारत की बैंडमिंटन स्टार सायना नेहवाल ने जैसे ही भारत को स्वर्ण पदक दिलाने के सपने को पूरा किया तो पदक तालिका में पिछले एक दिन से तीसरे स्थान पर चल रहा भारत दूसरे स्थान पर वापसी कर गया। भारतीय स्टार साइना नेहवाल ने अपेक्षानुरूप प्रदर्शन करते हुए गुरुवार को तीन गेम तक चले संघर्षपूर्ण मुकाबले में मलेशिया की म्यू चू वोंग को पराजित करके भारत को राष्ट्रमंडल खेलों में बैडमिंटन की महिला एकल का स्वर्ण पदक दिलाया। भारत की मेजबानी में उसकी यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है। राष्ट्रमंडल खेलों के इतिहास में भारत ने कई नये अध्याय जोड़े हैं, जिसमें पहली बार वह दूसरे स्थान पर रहा, तो वहीं भारतीय खिलाड़ियों के बेजोड़ प्रदर्शन की बदौलत मैनचेस्टर में सर्वाधिक 30 स्वर्ण के रिकार्ड को सुधारकर 38 स्वर्ण पदक के साथ पदकों का शतक बनाने में कामयाब रहा। इससे पहले सर्वाधिक 69 पदक हासिल करने का रिकार्ड मैनचेस्टर राष्ट्रमंडल खेलों में था। भारत की मेजबानी में संपन्न हुए राष्ट्रमंडल खेलों से पहले इस आयोजन को लगातार दुनिया में नकारात्मक रूप से पेश किया जाता रहा है, लेकिन भारत ने हो रही आलोचनाओं और विवादों की परवाह किये बिना राष्ट्रमंडल खेलों को संपन्न करके दुनिया के सामने ओलंपिक खेलों की मेजबानी करने की क्षमता को भी प्रदर्शित किया है। 19वें राष्ट्रमंडल खेलों की पदक तालिका में 74 स्वर्ण, 55 रजत और 48 कांस्य पदकों के साथ शीर्ष पर रहे आस्ट्रेलिया के बाद भारत ने 38 स्वर्ण, 27 रजत और 36 कांस्य पदकों सहित कुल 101 पद अपनी झोली में डालकर राष्टÑमंडल खेलों के इतिहास में पहली बार दूसरा स्थान लेकर नया मुकाम हासिल किया है। इससे पहले 18 में से 14 राष्ट्रमंडल खेलों में हिस्सा लेते हुए भारत केवल दो बार चौथे स्थान पर रहा है। जहां तक राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजनों का सवाल है तो भारत ने पहली बार वर्ष 1934 के लंदन में आयोजित ब्रिटिश एम्पायर गेम्स में भाग लिया और भारत को पहला पदक राशिद अनवान ने पुरुष कुश्ती के 74 किलोग्राम वर्ग में काँस्य पदक जीतकर दिलाया था। दरअसल 1930 के हैमिल्टन राष्ट्रमंडल खेल ब्रिटिश एम्पायर गेम्स के नाम से शुरू हुए यानि 1950 तक इसी नाम से ये खेल होते रहे। जबकि वर्ष 1970 और 1974 में इस खेल का नाम ब्रिटिश कॉमनवेल्थ गेम्स रहा, लेकिन वर्ष 1978 से अब तक खेलों के इस आयोजन को राष्ट्रमंडल खेल का नाम दिया गया। भारत की राष्ट्रमंडल खेलों में इस बार जिस प्रकार से तकदीर बदली है वह कभी पहले नहीं रही। भारत ने दूसरी बार वर्ष 1938 में आस्ट्रेलिया के सिडनी शहर में आयोजित इस खेलों में हिस्सा तो लिया, लेकिन उसके हाथ एक भी पदक नहीं लग सका था। वर्ष 1942 और 1946 में द्वितीय विश्व युद्ध के कारण इसका आयोजन नहीं हो पाया, लेकिन वर्ष 1950 का राष्ट्रमंडल खेल न्यूजीलैंड के आकलैंड शहर में हुआ, लेकिन भारत उसका हिस्सेदार नहीं था। वर्ष 1954 में कनाडा के वैंकूवर शहर में आयोजित इन खेलों में भारत की पाँच स्पधार्ओं में भागीदारी तो थी लेकिन पदक से पूरी तरह खाली रहा। भारत को 1934 के बाद भारत को पदक हासिल करने के लिए 24 वर्षों का लंबा इंतजार करना पड़ा और उसे वर्ष 1958 में वेल्स के कार्डिफ शहर में दो स्वर्ण समेत तीन पदक हासिल हुए, जिनमें एक रजत पदक भी शामिल था। यही वह क्षण था जब पुरुषों की 440 गज दौड़ मिल्खा सिंह ने मात्र 46.6 सेकेंड में पूरी कर स्वर्ण पदक पर कब्जा कर लिया, लेकिन एथलेटिक्स में 52 वर्षो बाद चक्का फेंक में कृष्णा पूनिया के स्वर्ण समेत तीनों पदक भारत के नाम हुए। जबकि 1962 पर्थ राष्ट्रमंडल में भी भारत ने हिस्सा नहीं लिया था। वर्ष 1966 में जमैका के किंग्स्टन शहर में जब भारत की वापसी हुई तो वहाँ भारत ने बेहतरीन प्रदर्शन किया और 10 पदक जीतते हुए पदक तालिका में दसवें से छठे स्थान पर आ गया, जिनमें तीन स्वर्ण, चार रजत और तीन काँस्य शामिल थे। स्कॉटलैंड के एडिनबरा राष्ट्रमंडल खेल में भारत को वर्ष 1966 की तुलना में दो पदक का फायदा हुआ लेकिन पदक तालिका में छठे स्थान से आगे न बढ़ सका. यहाँ भारत को कुल 12 पदक हासिल हुए जिनमें पाँच स्वर्ण, चार रजत और तीन काँस्य पदक शामिल थे। 1970 के न्यूजीलैंड में क्राइस्टचर्च में भारत को वर्ष 1970 की तुलना में तीन पदक का फायदा तो हुआ, चार स्वर्ण समेत 15 पदक हासिल करके छठे स्थान पर ही रह गया। वर्ष 1982 में आस्ट्रेलिया के ब्रिसबेन शहर में आयोजित इस खेल में भारत की झोली में पांच स्वर्ण समेत 16 पदक आए। वर्ष 1986 में स्कॉटलैंड के एडिनबरा में भारत ने हिस्सा नहीं लिया। जबकि वर्ष 1990 में न्यूजीलैंड के आकलैंड राष्ट्रमंडल खेलों में भारत ने वर्ष 1982 के मुकाबले दोगुना पदक हासिल किए यानि इस बार भारत की झोली में 13 स्वर्ण समेत कुल 32 पदक आए। वर्ष 1994 में कनाडा के विक्टोरिया राष्ट्रमंडल खेलों भारत ने वर्ष 1990 की तुलना में आठ पदक कम हासिल किए यानि इस बार भारत की झोली में कुल 11 स्वर्ण समेत 24 पदक ही आए, लेकिन लगातार पाँच बार छठे स्थान से ऊपर उठकर पांचवे पायदान पर आने में सफल रहा। वर्ष 1998 में मलेशिया की राजधानी कुआलालम्पुर राष्ट्रमंडल खेलों भारत ने सात स्वर्ण समेत 25 पदक लिये। वर्ष 2002 में इंग्लैंड के मैनचेस्टर राष्ट्रमंडल खेलों में इतिहास बनाते हुए 30 स्वर्ण पदक समेत 69 पदक झोली में डालने के बाद भारत पांचवे पायदान पर आ गया। जबकि 18वें और वर्ष 2006 के मेलबर्न राष्ट्रमंडल खेलों भारत को वर्ष 2002 की तुलना में 20 पदक कम मिले और भारत को 22 स्वर्ण समेत कुल 49 पदक हासिल करने के बाद अपनी धरती पर सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन की बदौलत इतिहास ही रच दिया।
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