बुरे पहलुओं से गुजरकर आया राष्ट्रमंडल खेल
ओ.पी. पाल
राष्ट्रमंडल खेल 2010 तीन अक्टूबर से शुरू हो गए हैं, लेकिन इस दिन को देखने के लिए खेलों की तैयारियों को लेकर उठे विवादों के कारण खेलों का आयोजन अनेक बुरे पहलुओं से गुजरने के बाद हो रहा है। इन सभी विवादों और नकारात्मक पहलुओं की बाधाओं को दूर करते हुए भारत इन खेलों का आयोजन करके दुनिया के सामने यह साबित करने जा रहा है कि भारत आगामी ओलंपिक की मेजबानी करने की भी क्षमता रखता है।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन कराने के लिए भारत ने दिल्ली की कायाकल्प की बड़ी योजनाएं बनाई थी, लेकिन खेलों के आयोजन के लिए खेल स्थलों, मार्गो और अन्य निर्माण कार्यो में देरी और अनियमितताओं के कारण लगातार खेलों का बजट बढ़ता चला गया। तीन से 14 अक्टूबर तक होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन के लिए तैयारियों का बजट मात्र 617 करोड़ आंका गया था, लेकिन अगले साल ही इस बजट को बढ़ार 1895 करोड़ तो वर्ष 2005 में तीन हजार करोड़ तक का खर्च का आकलन पहुंच गया। खेलों की तैयारियों में लगातार बजट का बढ़ता क्रम यहीं नहीं थमा। जैसे-जैसे खेलों की उलटी गिनती जारी रही ऐसे ही उसकी तैयारियों का बजट बढ़ता गया और वर्ष 2008 में सात हजार करोड़ तो वर्ष 2009 में यह बजट 12449 करोड़ तक जा पहुंचा। राष्ट्रमंडल खेल के इस बाजारीकरण ने ऐसा रूप लिया कि वर्ष 2010 में खेलों के आयोजन को अंतिम रूप देने के लिए खर्च की जाने वाली रकम 70 हजार करोड़ तक जा पहुंची। इनमें से करीब 961 करोड़ की रकम तो अकेल जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम के नवीनीकरण पर ही खर्च कर डाली, जिसका निर्माण 1982 के एशियाड़ खेलों के लिए किया जा चुका था। इसी स्टेडियम में राष्ट्रमंडल खेलों का उद्घाटन और समापन समारोह होने हैँ। जुलाई 2010 के पहले सप्ताह में राष्ट्रिया सतर्कता आयोग की एक रिपोर्ट ने तो केंद्र व दिल्ली सरकार के साथ ही आयोजन समिति के हौंसले पस्त कर दिये थे, जिसमें खेल स्थलों और अन्य निर्माण कार्यो में हजारों करोड़ रुपये के घोटाले से हलचल मची, जिसमें आयोजन समिति के कुछ सदस्यों तथा निर्माण एजेंसियों पर भी गाज गिरी। राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों पर पहले से ही देरी को लेकर उंगलियां उठ रही थी, जिसमें घोटाले और भ्रष्टाचार के मामले ने आग में घी डालने का काम किया और भारत की दुनियाभर में फजीहत होती नजर आई। अंतर्राष्ट्रिय राष्ट्रमंडल खेल फैडरेशन के प्रमुख माइकल फिनेल व महासचिव माइक हूपर ने कभी तैयारियों में देरी पर तो कभी स्टेडियम की साज-सज्जा पर सवाल उठाये तो अंतिम क्षणों में खेल गांव में आधी-अधूरी तैयारियों पर उंगलियां उठाकर भारत के प्रति दुनिया को यह संदेश देने का प्रयास किया कि खेलगांव खिलाड़ियों के रहने लायक नहीं है, जिसका नकारात्मक प्रभाव कुछ देशों पर ऐसा पड़ा कि उनके खिलाडियों ने भारत आने से ही मना कर दिया था। इससे पहले राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में विदेशी मेहमानों की सुरक्षा को लेकर भी उंगली उठी, लेकिन राष्ट्रमंडल खेलों में मनमोहन सरकार के हस्तक्षेप से स्थिति को संभाला गया और भारत में राष्ट्रमंडल खेलों के रंग को चढ़ाने की इतनी तेजी से कवायद हुई, कि राजधानी दिल्ली ही नहीं बल्कि पूरे एनसीआर भी राष्ट्रमंडल खेलों के रंगों से रंगा हुआ है। कुछ भी हो भले ही दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलो के आयोजन को लेकर नकारात्मक प्रचार रहा हो, लेकिन यह सच है कि जितना प्रचार-प्रसार इन खेलों का हुआ है उतना दुनियाभर में किसी अन्य आयोजन का नहीं हुआ होगा। राष्ट्रमंडल खेलों की गंभीरता को देखें तो एक पखवाड़े में दिल्ली को सजाने और संवारने के काम में जितनी तेजी आई इतनी इससे पहले तैयारियों को लेकर गंभीरता कभी नहीं देखी गई। राष्ट्रमंडल खेलों को लेकर नकारात्मक प्रचार ने दुनियाभर में भारत की छवि को खराब दिखाने की कोशिशें होती रही, लेकिन इन सभी बुरे पहलुओं के बावजूद भारत आज रविवार को राष्ट्रमंडल खेलों का आगाज करके दुनिया को यह दिखाने जा रहा है कि भारत आगामी ओलंपिक खेलों की मेजबानी का भी दावेदार है।
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