ओ.पी. पाल
देश की जेलों और पुलिस थानों में अवैध हिरासत में यातना देने की शिकायतों के निवारण के लिए लोकसभा में पारित हो चुके यातना निवारण विधेयक 2010 के राज्यसभा में आते ही विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच उभरे मतभेद को दूर करने की कवायद तेजी के साथ की जा रही है। राज्यसभा में इस बिल पर सहमति न बन पाने के कारण अश्विनी कुमार की अध्यक्षता में सभापति द्वारा गठित समिति ने आम राय बनाने का दावा किया और कहा कि इस विधेयक के अस्तित्व में आने के बाद मानवाधिकार के हनन की इन घटनाओं में निश्चित रूप से कमी आएगी।
यातना निवारण विधेयक पर राज्यसभा की गठित समिति के अध्यक्ष एवं सांसद अश्विनी कुमार का कहना है कि लोकसभा में पारित इस विधेयक को जब 31 अगस्त 2010 को राज्यसभा में पेश किया गया तो इस पर विभिन्न राजनीतिक दलों ने आपत्ति जताई और इसे पारित नहीं किया जा सका। इस महत्वपूर्ण बिल पर मतभेद को देखते हुए सभापति हामिद अंसारी ने एक राज्यसभा की 13 सदस्यीय एक विशेष समिति का गठन करके उसके सुपुर्द कर दिया। वरिष्ठ सांसदों की इस समिति को नवंबर के पहले सप्ताह तक अपनी रिपोर्ट राज्यसभा को सौँपनी है। संसद भवन में एक संवाददाता सम्मेलन में समिति के अध्यक्ष अश्विनी कुमार ने यह इतना महत्वपूर्ण कानून है कि इसके देश में लागू होने पर जेलों और पुलिस अधिकारियों के खिलाफ आरोपियों को यातनाएं दिये जाने की शिकायतों का आसानी से निवारण हो सकेगा। इससे मानवाधिकारों के हनन का मामला भी सीधे तौर पर सामने आता रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि वर्ष 1994 से 2009 तक अवैध हिरासत के दौरान 16836 लोगों की जाने गई हैं, जिसे देखते हुए यह विधेयक इतना महत्वपूर्ण है कि इसके लिए सभी पहलुओं को देखते हुए उनकी समिति हर वर्ग से सुझाव लेकर विचार विमर्श कर रही है। समिति ने गृहमंत्रालय, विधि एवं न्याय मंत्रालय तथा विदेश मंत्रालय से भी विचार विमर्श किया है। अभी तक समिति की दो बैठकों के दौरान इस विधेयक के मसौदे में विभिन्न दलों के समिति सदस्यों ने आमराय बनाकर महत्वपूर्ण संशोधन किये हैं ताकि बिल को लेकर संसद में विरोधाभास की स्थिति पैदा न हो सके। इस बिल को कानून का रूप देने के लिए दलगत राजनीति से ऊपर उठकर मसौदे को अंतिम रूप देने का प्रयास किया जा रहा है। यह ऐसा कानून होगा कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यातनाओं को लेकर जो छवि बनी है उसको भी सुधारा जा सकेगा। समिति का मानना है कि मूलत: सैद्धांतिक रूप से इस कानून में यातना की परिभाषा को भी परिभाषित करने का प्रयास किया जा रहा है। वहीं इस बिल में बुनियादी अधिकारों की रक्षा का प्रावधान किया जा रहा है। इसमें दूसरे पहलू को भी शामिल किया गया ताकि जो अधिकारी कानून के दायरे में अपना काम कर रहे हैं उनके अधिकारों का भी हनन न हो सके। कानून पर एक सवाल के जवाब में अश्विनी कुमार का कहना था कि कोई भी विशेष कानून संविधान की मर्यादाओं से ऊपर नहीं हो सकता। इस बिल में खासतौर से समय सीमा का निर्धारण भी किया जा रहा है ताकि पुलिस उत्पीड़न की घटनाओं पर अंकुश लग सके। देश में यातना निवारण विधेयक की महत्ता को देखा जाए तो इस प्रस्तावित विधेयक में अत्याचार और अन्य क्रूर, अमानवीय और अपमानजनक व्यवहार की पुष्टि होने पर सख्त कार्रवाई का प्रावधान भी शामिल होगा। पुलिस हिरासत में अपराधियों और किसी भी व्यक्तियों के द्वारा अत्याचार और सरकारी कर्मचारियों का उत्पीड़न नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों की एक गंभीर व्यतिक्रमण मानी जाती है। इन्हीं मानवाधिकारों की रक्षा के लिए इस बिल के पारित होने पर पूरे देश की एक बेहतर छवि सामने आएगी। वहीं इस कानून के अस्तिव में आने के बाद निश्चित रूप से नागरिकों के मानव और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वालों को सबक मिल सकेगा। इस विधेयक पर अभी दो बैठकें 29 सितंबर और 19920 अक्टूबर को होनी है जिसके लिए समिति देश के किसी भी विशेषज्ञ और हर किसी व्यक्ति के सुझाव पर गौर करके विचार करने के लिए प्रतिबद्ध है।
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