दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों में हिस्सा लेने आई दक्षिण अफ्रीकी तैराक नताली पदक जीतकर सुखद विदाई चाहती है। मैनचेस्टर राष्ट्रमंडल खेलों से ठीक एक साल पहले हुए हादसे में उसने अपनी टांग गंवा दी लेकिन विकलांग और सामान्य दोनों श्रेणियों में क्वालीफाई करके उसने इतिहास रच दिया। आखिरी
बार राष्ट्रमंडल खेलों में भाग ले रही दक्षिण अफ्रीकी तैराक नताली के हौसले अभी भी बुलंद है और भारत में उसका लक्ष्य पदक जीतने पर लगा हुआ है।
नताली ने कहा कि वह शंघाई में होने वाली विश्व चैम्पियनशिप के जरिए लंदन ओलंपिक 2012 के लिए क्वालीफाई करना चाहती हैं। उसके बाद ही तैराकी को अलविदा कहेंगी। जिंदादिली और हौसले की मिसाल बनी नताली मैनचेस्टर खेलों के अनुभव को याद करते हुए कहती है, जहां 2002 में खेल होने थे और 2001में सड़क हादसे में मेरी टांग चली गई। इसके बाद भी उसने सामान्य और विकलांग दोनों श्रेणियों में क्वालीफाई किया। उस लम्हे को वह कभी नहीं भूल सकती। नताली ने विकलांगों के लिए 50 और 100 मीटर फ्रीस्टाइल में विश्व रिकॉर्ड टाइम के साथ स्वर्ण पदक जीता था। उसने 800 मीटर फ्रीस्टाइल सामान्य श्रेणी में भी क्वालीफाई करके इतिहास रच दिया क्योंकि ऐसा करने वाली वह पहली खिलाड़ी थी। उसे मैनचेस्टर खेलों का सर्वश्रेष्ठ एथलीट चुना गया। उसने कहा कि हादसे के बाद मुझे अपने स्ट्रोक्स में बदलाव करना पड़ा। लोगों को लगा था कि अब वह कभी इससे उबर नहीं सकेंगी, लेकिन उसने हौसला नहीं खोया और वापसी की। दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों में पदक जीतकर सुखद विदाई लेने की इच्छुक नताली ने कहा कि प्रतिस्पर्धा कड़ी है लेकिन वह इस अनुभव को यादगार बनाना चाहती है। भारत में अपने अनुभव के बारे में उसने कहा कि
वह बहुत खुश हैं कि एक बार फिर महात्मा गांधी के देश में है। दक्षिण अफ्रीका में उन्हें काफी सम्मान की नजर से देखा जाता है। उनके बारे में बहुत सुना है और यहां बहुत अच्छा लग रहा है। भारत हमारी अपेक्षा से अच्छा मेजबान है। इससे पहले एफ्रो एशियाई खेलों के लिए हैदराबाद आ चुकी नताली ने कहा कि दिल्ली बहुत अलग है लेकिन उसे यहां बहुत अच्छा लगा। उसने कहा कि दिल्ली हैदराबाद से एकदम अलग है। यहां के मंदिर और मस्जिदों का वास्तुशिल्प देखने लायक है। उसने ताजमहल के बारे में भी सुना है और वह निश्चित रूप से जाना चाहेगी।
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